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पंजाब में सरकारी मुलाजिम का डोप टेस्ट पॉजीटिव, तो सजा नहीं इलाजः मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह

पंजाब में सरकारी मुलाजिम का डोप टेस्ट पॉजीटिव, तो सजा नहीं इलाजः मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह चंडीगढ़: सरकारी कर्मचारियों के डोप टेस्ट को लेकर पंजाब सरकार पांव पीछे खींचने को तैयार नहीं है। मुलाजिमों के विरोध को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि अगर कोई सरकारी मुलाजिम डोप टेस्ट में पॉजीटिव पाया गया, तो उनको सजा नहीं मिलेगी और न ही उसे नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जाएगा, वरन सरकार उसका इलाज कराएगी, ताकि वह नशामुक्त हो सके। सरकार उस मुलाजिम की पहचान गुप्त रखने का भी प्रयास करेगी।

राज्य सरकार की नशा विरोधी मुहिम की प्रगति का जायजा लेने के लिए बुलाई गई कैबिनेट सब-कमेटी की मीटिंग में मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को पुलिस कर्मचारियों सहित सरकारी कर्मचारियों का डोप टेस्ट करवाने और उचित प्रक्रिया तैयार करने के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने नशा विरोधी कानून को और सख्ती से अमल में लाने, नशे की रोकथाम, नशा मुक्ति और पुनर्वास की बेहतर व्यवस्था करने के आदेश दिए। नशे के मामलों की जांच में तेजी लाने के आदेश

मुख्यमंत्री ने कहा कि थाना प्रमुख निर्धारित समय में अपने इलाकों में पड़ते गांवों में से नशे की समस्या को दूर करने के लिए जवाबदेह होंगे। उन्होंने नशे से संबंधी मामलों की जांच में तेजी लाने के आदेश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि थाना प्रमुखों सहित एसडीएम और डीएसपी भी अपने इलाके को नशा मुक्त बनाने के लिए जिम्मेदार होंगे। इलाज का खर्च सरकार उठाएगी

मुख्यमंत्री ने कहा कि नशे का सेवन करने वाले जो व्यक्ति सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए खर्च वहन नहीं कर सकते, उनके इलाज का खर्च सरकार उठाएगी। उन्होने नशा मुक्ति केंद्रों का साम‌र्थ्य बढ़ाने और ओओएटी केंद्रों के विस्तार के आदेश दिए। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को कहा कि इन केंद्रों को मजबूत बनाने के लिए प्राइवेट क्लीनिकों को भी साथ शामिल कर किया जाए। बैठक में स्वास्थ्य मंत्री ब्रह्म मोहिंदरा, परिवहन मंत्री अरुणा चौधरी, मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल, मुख्यमंत्री के मुख्य प्रमुख सचिव सुरेश कुमार, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव तेजवीर सिंह समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे।

इससे पहले, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सुखबीर सिंह बादल की तरफ से नशे और बेअदबी के मुद्दों का राजनीतिकरण न करने को कहा। उन्होंने सुखबीर बादल की तरफ से नशें के मुद्दे पर एकजुट होने की पेशकश को भी ठुकरा दिया है। कैप्टन ने कहा कि  सुखबीर बादल ने अपनी पार्टी के 10 सालों के कुशासन के दौरान इन दोनों नाजुक मसलों को फलने-फूलने के लिए समर्थन देते रहे, अब इस पर पर्दा डालने के लिए ऐसे आह्वान करने का राजनीतिक ढकोसला कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि नौजवानों की एक पूरी पीढ़ी बर्बाद करने वाले सुखबीर बादल अब इस बीमारी के खि़लाफ एकजुट होकर लड़ने की बातें कर रहे हैं। उन्होंने अकाली दल के अध्यक्ष को चुनौती दी कि वह बताएं कि अपने शासन में अकाली दल ने कभी भी नशे सहित किसी भी मुद्दे पर कांग्रेस से राजनीतिक सर्वसम्मति और मदद नहीं मांगी हो। सच्चाई तो यह है कि नशे की समस्या ने अकालियों के शासनकाल के दौरान ही गंभीर रूप धारण किया था। इसलिए सुखबीर अब नैतिकता का पाठ पढ़ाना बंद करें।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार को ऐसी किसी भी पार्टी या लीडरशिप की सलाह की जरूरत नहीं जो इस समस्या के लिए जिम्मेदार हो। कैप्टन ने कहा कि वह अपने काबिल कैबिनेट साथियों और अफसरों की मदद से अपने स्तर पर ही नशे की स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह समर्थ हैं।

सुखबीर बादल की तरफ से सरकार की नशा के खिलाफ मुहिम में साझे तौर पर प्रयास करने की पेशकश के जवाब में कैप्टन ने कहा 'हम राज्य को वित्तीय संकट से निकालने के लिए सफल हुए हैं जो अकाली -भाजपा सरकार के दौरान कर्जे में डूबा हुआ था। यही नहीं हम अमन कानून की स्थिति को स्थिर करने और बेअदबी के मामलों को रोकने में भी कामयाब हुए हैं जबकि गठबंधन सरकार के कुशासन के दौरान यह दोनों समस्याओं ने बड़े स्तर पर सिर उठा लिया था। सुखबीर बादल को चेताया कि हमने यह सब कुछ आपकी सलाह या मदद के बिना किया है।'

सुखबीर बादल की तरफ से यह कहना कि कोई भी संजीदा राजनीतिज्ञ कभी भी नशे को उत्साहित नहीं करता, इससे सहमत होते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि बदकिस्मती से 10 सालों के दौरान राज्य राजनीतिज्ञों के कंट्रोल में तो था परन्तु संजीदगी और संवेदनशीलता इन राजनीतिज्ञों के आस-पास भी नहीं थी।
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