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धरती को बचाना है तो हर कोई लगाए 5 पेड़ः 'वृक्ष बंधु' परशुराम सिंह

धरती को बचाना है तो हर कोई लगाए 5 पेड़ः 'वृक्ष बंधु' परशुराम सिंह चन्दौलीः आज ही खबर थी कि देश की राजधानी दिल्ली को गरमी, आंधी-तूफान और धूल से बचाने के लिए वहां की सरकार बत्तीस लाख पेड़ लगाकर चतुर्दिक ऐसी प्राकृतिक दीवार खड़ी कर देगी कि राजधानी की रक्षा हो सके. पर बिना किसी खास सरकारी मदद के चंदौली जिले के नक्सल प्रभावित इलाके में एक व्यक्ति ऐसे भी हैं, जो लोकगीत के माध्यम से लोगों को वृक्षारोपण के लिए जागरूक कर पर्यावरण बचाने का अनूठा प्रयास कर रहे हैं.

जी हां, हम बात कर रहे हैं परशुराम सिंह की. पिछले दो दशक में एक लाख  से ज्यादा पेड़ लगा कर उनकी देखभाल करने वाले परशुराम सिंह का मानना है कि बच्चों को शुरू से ही पर्यावरण के प्रति सचेत रहने कि शिक्षा दी जाये ताकि वे भविष्य में पर्यावरण को संतुलित रख सकें. गांव-गांव जाकर पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के चलते सिंह को 'वृक्ष बंधु' की उपाधि मिल चुकी है और उन्हें मिले अवार्डों से उनका पूरा एक कमरा भरा है.

जनता जनार्दन के पूर्वांचल संवाददाता अमिय पाण्डेय ने वृक्ष बंधु ब्रांड एम्बेसडर से पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण की महत्ता के बारे में मुलाकात कर उनके जीवन और प्रयासों के बारे में जानने की कोशिश की.

 सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
 सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भाग भवेत्।।

कुछ ऐसी ही सोच है चन्दौली के कटवा माफ़ी गांव के किसान परशुराम सिंह की. इन्हें बचपन से ही पर्यावरण  के प्रति ऐसा लगाव हुआ कि इन्होंने उसे ही अपनी जिन्दगी का लक्ष्य बना लिया. वृक्षों की अंधाधुंध  हो रही कटाई से चिंतित होकर इन्होंने खुद ही पेड़ लगाना शुरू कर दिया. पिछले दो दशक में जिले भर में करीब एक लाख  से ज्यादा पेड़ लगा चुके परशुराम सिंह ने उन वृक्षों की अपने बच्चों से भी बढ़ कर देखभाल की. पर्यावरण के प्रति इनके जूनून को देखते हुए वन विभाग ने इन्हें 'वृक्ष बंधू' की उपाधि से नवाजा.

पर्यावरण में लगातार हो रहे बदलाव को लेकर जहां पुरा विश्व चिंतित है वहीं परशुराम सिंह ने इससे जूझने का उपाय सोचा और माध्यम बनाया लोक गीत को. लोकगीत के माध्यम से वह लोगों को इसके प्रति जागरूक करने का अनूठा व सराहनीय प्रयास कर रहे हैं. भोजपुरी भाषा जब यहां की जनभाषा है, तो भोजपुरी लोक गीत के माध्यम से दिए गए उनके संदेश को लोग आसानी से समझते हैं. सिंह भोजपूरी लोकगीतों के माध्यम से गांव-गांव व विद्यालय-विद्यालय घूम कर पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों और छात्रों में चेतना जगाने का काम करते हैं.|

उनका मानना है कि भारतीय संस्कृति में पर्यावरण की शुद्धता पर प्राचीनकाल से ही ध्यान दिया जाता रहा है. प्राचीनकाल में हमारे यहाँ पंच भौतिक तत्त्वों यथा- पृथ्वी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि के बारे में काफी लिखा गया, इन्हें पवित्र एवं मूल तत्त्वों के रूप में माना गया.  वेदों व उपनिषदों में पंच तत्त्वों, वनस्पति तथा पर्यावरण संरक्षण पर विशद् चर्चा की गई है. प्रकृति में वायु, जल, मिट्टी, पेड-पौधों, जीव-जन्तुओं एवं मानव का एक संतुलन विद्यमान है, जो हमारे अस्तित्व का आधार है. जीवनधारी अपनी आवश्यकताओं के लिए प्रकृति पर निर्भर हैं. सच पूछा जाये तो मानव को प्रकृति द्वारा प्रदान की गई सबसे मूल्यवान् निधि पर्यावरण है, जिसका संरक्षण एक बड़ा दायित्व है.

आधुनिक वैज्ञानिक युग में यह आवश्यक है कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त इस निधि का बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से उपयोग किया जाए और आने वाली पीढ़ी को भी इसके प्रति जागरूक बनाया जाए. पर्यावरणीय चेतना व पर्यावरण संरक्षण आज के युग की प्रमुख माँग है.

परशुराम सिंह का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के चपेट में पूरा विश्व अब आ रहा, जिसको देखते हुए पेड़ लगाना अति आवश्यक है, साथ ही ऑक्सीजन की कमी हमारी पीढ़ी को न झेलना पड़े इसको भी देखना होगा. पेड़ लगाने से हमें शुद्ध वातावरण तो मिलेगा ही, पानी की समस्या साथ ही ऑक्सीजन की समस्या नही होगी. उन्होंने जनता जनार्दन के माध्यम से देश, प्रदेश और जनपद के युवाओं से अपील की है कि आज ही आप सिर्फ 5- 5 पेड़ लगाएं और हरियाली लाएं, जिससे वातावरण सुखद हो और हरितिमा भरे माहौल से देश, प्रदेश और जनपद का पर्यावरण खिल उठे.
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