![]() |
11 अमेरिकी राष्ट्रपति उत्तर कोरिया से वार्ता नहीं कर सके, पर ट्रंप ने कर दिखाया
जय प्रकाश पाण्डेय ,
Jun 10, 2018, 17:51 pm IST
Keywords: US-North Korea summit Kim Jong-Un Singapore summit Kim Jong-Un in Singapore North Korea' denuclearisation President Donald Trump Trump-Kim summit US North Korea relation अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी-उत्तर कोरियाई शिखर बैठक सिंगापुर बैठक
![]() ट्रंप ने चिट्ठी में लिखा था कि 'मैं आपसे 'किसी दिन' मिलने के लिए बेहद उत्सुक था. लेकिन आपके हाल के बयान में ज़ाहिर हुई गंभीर नाराज़गी और शत्रुता को देखते हुए मुझे लगता है कि इस वक़्त ऐसी योजनाबद्ध मुलाकात उचित नहीं है.' ट्रंप ने आगे लिखा कि 'आप अपनी परमाणु क्षमता की बात करते हैं, लेकिन हमारी क्षमता इतनी ज़्यादा और शक्तिशाली है कि मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उन्हें कभी इस्तेमाल करने का अवसर न आए.' ट्रंप ने किम को एक तरह से धमकाते हुए यहां तक दावा कर दिया था कि हमारी सेना पहले से ज्यादा मुस्तैद और तेज है, और अगर उत्तर कोरिया पर हमले की नौबत आती है तो दक्षिण कोरिया और जापान न केवल उसका साथ देंगे, बल्कि लड़ाई का खर्च भी उठाएंगे. ट्रंप के इस फैसले से उनके देश में विरोधी दल के नेताओं के साथ-साथ समूची दुनिया के कूटनीतिक खेमे में हलचलमच गई थी. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा था कि यह वार्ता रद्द होने से वह गंभीर रूप से चिंतित हैं. उन्हीं के शब्दों में 'मैं दोनों पक्षों से आग्रह करता हूं कि वो संवाद जारी रखें ताकि कोरियाई प्रायद्वीप को शांतिपूर्ण तरीके से परमाणु मुक्त करने के लिए रास्ते की तलाश की जा सके.' इस इलाके में अमेरिका का खास सहयोगी दक्षिण कोरिया भी ट्रंप के फैसले से भौचक्का है. शायद ट्रंप के उत्तर कोरिया से बातचीत रद्द के फ़ैसले की भनक दक्षिण कोरिया को भी नहीं थी. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेइ इन ने खेद जताते हुए अपने तमाम आला सुरक्षा सहयोगियों को आपात बैठक के लिए तलब किया, तो दक्षिण कोरियाई सरकार के प्रवक्ता किम इयू कियोम ने कहा था कि, 'हम इस बात का अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप का इरादा क्या है और इस क़दम का सही अर्थ क्या है.' ट्रंप के इस फैसले से पिछले कई महीनों से इन दोनों देशों के बीच बने सद्भावपूर्ण संबंधों पर भी ग्रहण लग गया था. अमेरिकी कांग्रेस में राष्ट्रपति ट्रंप के विरोधियों ने भी उनके इस फ़ैसले के लिए कटु आलोचना की थी. डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता नैंनी पेलोसी ने कहा था कि इससे पता चलता है कि उत्तर कोरिया से निपटने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप के दिमाग में कितनी गहराई है. हम युद्ध के और भी करीब पहुंच चुके हैं. यह ठीक है कि उत्तर कोरिया पर लगाम कसने की कोशिशों ने अमेरिकी हुक्मरानों और उत्तर कोरियाई नेताओं के बीच हमेशा दुश्मनी का सा ही माहौल बना रखा था. हाल में उत्तर और दक्षिण कोरिया के रिश्तों में आए सुधार से पहले दोनों के बीच जिस तरह की भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल हो रहा था, उससे कोरियाई प्रायद्वीप में संघर्ष की आशंका पैदा हो गई थी. लेकिन उत्तर और दक्षिण कोरिया के रिश्तों में आई नरमाहट ने ट्रंप और किम जोंग उन के बीच मुलाकात का रास्ता साफ़ किया. उत्तर कोरिया अमेरिका से बातचीत को लेकर काफी संजीदा भी था. कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव कम करने और अमेरिका को भरोसा दिलाने के लिए उत्तर कोरिया ने ट्रंप के पैर खींचने से पहले ही अपने एक मात्र परमाणु परीक्षण स्थल से संबंधित सुरंगों को ध्वस्त कर दिया था. फिर भी अमेरिका-उत्तर कोरिया के बीच बात तभी बिगड़नी शुरू हो गईं थी जब उत्तर कोरिया ने अमेरिका और दक्षिण कोरिया के उस संयुक्त सैन्य अभ्यास पर ऐतराज़ जताया था, जिसमें उन लड़ाकू विमानों को भी शामिल किया गया था जो परमाणु बम ले जाने में सक्षम थे और जिन्हें उत्तर कोरिया लंबे समय से खुद को डराने-धमकाने के रूप में देखता आया है. वैसे भी सिंगापुर शिखर बैठक को लेकर जैसा उत्साह उत्तर कोरिया ने दिखाया, वैसा अमेरिका में नहीं था. अमेरिकी पक्ष शुरू से ही आश्वस्त नहीं था. इस शिखर सम्मेलन के धराशाई होने की शुरुआत ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन की नियुक्ति से ही हो गई थी, जिनके जिम्मे उत्तर कोरिया से वार्ता में अपेक्षाओं को रेखांकित करना था. बॉल्टन उत्तर कोरियाई नेता किम के मिजाज को समझे बिना उनके सामने मुकम्मल परमाणु निरस्त्रीकरण का लक्ष्य रखवाना चाहते थे. वह चाहते थे कि सिंगापुर शिखर बैठक तभी हो जब उत्तर कोरिया अपने सारे परमाणु और रासायनिक हथियारों को तबाह करने पर राज़ी हो. इसीलिए बॉल्टन ने कभी भी उत्तर कोरिया के साथ कूटनीतिक प्रक्रिया में दिलचस्पी नहीं ली. उनके मुताबिक अमरीका को उत्तर कोरिया के साथ बातचीत में लीबिया मॉडल का पालन करना चाहिए. लीबिया में साल 2003 में हुई निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया के बाद लीबियाई नेता मुअम्मर गद्दाफ़ी को परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से रोक देना पड़ा था. जिसके बाद उनकी हत्या हो गई थी. दोनों तरफ से हुई बयानबाजी ने भी आग में घी का काम किया. हुआ यह कि फॉक्स न्यूज के साथ बातचीत में अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग को चेताते हुए कह दिया था कि 'ट्रंप को आजमाना और उनके साथ खिलवाड़ करना भारी भूल होगी. राष्ट्रपति स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर किम जोंग-उन कोई समझौता नहीं करते हैं तो इस विवाद का अंत भी लीबिया मॉडल की तरह होगा.’ यह पूछे जाने पर कि क्या यह उत्तर कोरिया को धमकी है, माइक पेंस ने कहा था, ‘यह काफी हद तक सच्चाई है.’ उत्तर कोरिया जो अरसे से लीबिया के साथ तुलना से भड़कता रहा है, ने इस बयान को अमेरिका की उस नीति का हिस्सा माना- कि या तो किम सिंगापुर आएं और अमरीका की बातों को मानें वरना अमेरिकी फ़ौज की कार्रवाई का सामना करें. जाहिर है उसकी प्रतिक्रिया कड़ी हो गई. उत्तर कोरिया के मंत्री चो सोन-हुई ने अमरीकी उप-राष्ट्रपति माइक पेंस को 'पॉलिटिकल डमी' बताते हुए कहा कि उत्तर कोरिया एक परमाणु ताक़त है, जिसके पास इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल हैं, जिन्हें थर्मोन्यूक्लियर हथियारों पर फिट कर, इस्तेमाल किया जा सकता है. इसकी तुलना में लीबिया ने सिर्फ़ थोड़े-बहुत उपकरणों का जुगाड़ किया था. लीबिया के अनुभव से किम जोंग-उन ने सीखा कि अमेरिका के कहने पर परमाणु निरस्त्रीकरण का अर्थ है कि एक दिन उनका भी अंत निश्चित है. बहरहाल जो बीत गया सो बीत गया. अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उत्तर कोरिया से बातचीत की टेबल पर हैं. परमाणु युद्ध के खतरों के बीच विश्व की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है. लेख लिखे जाने तक दोनों देश इतिहास बनाने के इस अवसर को छोड़ना नहीं चाहते. इनकी वार्ता सफल हो, आमीन! |
क्या आप कोरोना संकट में केंद्र व राज्य सरकारों की कोशिशों से संतुष्ट हैं? |
|
हां
|
|
नहीं
|
|
बताना मुश्किल
|
|
|
सप्ताह की सबसे चर्चित खबर / लेख
|