कर्नाटक में कांग्रेस की वह तरकीब और लोग, जिससे बहुमत में पिछड़ने के बाद भी उसने आखिरी बाजी जीती
जनता जनार्दन संवाददाता ,
May 19, 2018, 17:38 pm IST
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नई दिल्ली: मणिपुर और गोवा में सबसे बड़े दल होने और कुछ विधायकों की कमी केर बावजूद सत्ता से महज इसलिए मरहूम रही कांग्रेस क्योंकि भाजपा मनोनित राज्यपाल ने वहां आननफानन में बने बहुमत वाले गठबंधन को बुला सत्ता सौंप दी थी. कांग्रेस यह गलती नहीं दोहराना चहती थी, इसलिए जैसे ही वह विधानसभा चुनाव में भाजपा से पिछड़ी उसने जनतादल सेकुलर को समर्थन दे साथ देने का फैसला किया जिसका उसे लाभ भी मिला.
कर्नाटक में शनिवार को मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने अपने भाषण में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को षडयंत्र बताया. उन्होंने दावा किया कि अगले चुनाव में अब वह 150 सीटें जीतकर आएंगे. 55 घंटे की इस सियासी उठा-पटक में कांग्रेस के 5 बड़े नेताओं ने अहम भूमिका निभाई. इन नेताओं ने चुनाव शुरू होने से पहले न सिर्फ कांग्रेस के प्रचार को निर्णायक स्तर पर पहुंचाया बल्कि नतीजों के बाद बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने में भी अहम भूमिका निभाई.
विधानसभा चुनावों में बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और उसके पास 104 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस के पास 78 तथा जेडीएस के पास 38 सीटें हैं. 2 सीटें निर्दलीय को मिली हैं. 224 सदस्यीय विधानसभा में मतदान 222 सीटों पर हुआ था. आइए जानते हैं इन 5 कांग्रेसी महारथियों के बारे में :
गुलाम नबी आजाद: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस के पक्ष में समीकरण बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. येदियुरप्पा सरकार के बहुमत हारने के पीछे उनकी रणनीति ही थी. उन्होंने ही चुनाव परिणाम आने के बाद ऐलान किया था कांग्रेस जेडीएस का समर्थन करेगी. उन्होंने माना था कि जनादेश कांग्रेस के खिलाफ है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जेडीएस से उन्होंने ही बात की थी. इसके बाद ही कांग्रेस-जेडीएस ने मिलकर शाम को गवर्नर से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया गया था. अशोक गहलोत: कांग्रेस के संगठन महासचिव अशोक गहलोत ने भी येदियुरप्पा की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई. राजस्थान के पूर्व सीएम गहलोत हर घटनाक्रम पर नजदीकी से निगाह रखे रहे थे और आजाद की अगुवाई में डैमेज कंट्रोल में जुटे रहे. उन्होंने परिणाम आने के बाद कहा था कि कर्नाटक की लड़ाई विचाराधारा और सिद्धांतों की है. ऐसे में विकल्प उसी के साथ खुले रहते हैं जिसके साथ हमारी विचाराधारा मिलती-जुलती है. मल्लिकार्जुन खड़गे: मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक हैं. कर्नाटक में पार्टी के दलित चेहरे के साथ-साथ जमीनी नेता के तौर पर उनका नाम है. 2013 के विधानसभा चुनाव खड़गे के नाम को आगे बढ़ाकर लड़ा गया था. यही वजह थी कि बहुमत आने के बाद खड़गे का नाम सीएम के रेस में भी शामिल था. लेकिन उस समय सिद्धारमैया को सीएम बनाना पार्टी की मजबूरी बन गई. खड़गे स्वच्छ छवि वाले नेता माने जाते हैं और 9 बार जीतकर विधायक बन चुके हैं और दूसरी बार सांसद हैं. कर्नाटक की राजनीति में लंबा अनुभव रखने वाले नेता हैं. सिद्धारमैया: कर्नाटक के पूर्व सीएम रहे सिद्धारमैया कुशल शासक रहे हैं. उनके कार्यकाल में कांग्रेस सरकार कभी अस्थिर नहीं हुई. सिद्धारमैया का ताल्लुक जेडीएस से रहा है. उन्हें भी जेडीएस नेता एचडी देवगौड़ा ने राजनीति सिखाई. बाद में मतभेद होने पर उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी. उनके कार्यकाल में कर्नाटक में कांग्रेस ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. डीके शिवकुमार: शिवकुमार तत्कालीन मुख्यमंत्री एस बंगरप्पा और एसएम कृष्णा से नजदीकियों के कारण विख्यात रहे हैं. वह कर्नाटक में युवा कांग्रेस के महासचिव भी रह चुके हैं. कर्नाटक में चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस और जेडीएस विधायकों को बीजेपी की पहुंच से दूर रखने में पार्टी की मदद की थी. शिवकुमार को कांग्रेस ने राज्य की सतानुर विधानसभा सीट से जनता पार्टी के दिग्गज नेता एचडी देवगौड़ा के खिलाफ उतारा लेकिन वह चुनाव हार गये. बाद में 1989 में उन्होंने यह सीट जीती थी. |
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