महामहिम! फिल्मकारों की नाराजगी से बचा जा सकता था; राष्ट्रपति और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

महामहिम! फिल्मकारों की नाराजगी से बचा जा सकता था; राष्ट्रपति और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार नई दिल्ली: राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भारतीय फिल्मकारों के लिए ऑस्कर सरीखा है और इसकी गरिमा और निष्पक्षता ही इसकी सबसे बड़ी ताकत. केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय की मुखिया स्मृति ईरानी, विभाग में उनके सहयोगी कनिष्ठ मंत्री राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़, सचिव एन के सिंह, फिल्म समारोह निदेशालय के मुखिया चैतन्य प्रसाद से लेकर ज्यूरी के अध्यक्ष, सदस्यों सहित हर कर्मचारी ने दिनरात की मेहनत करके इस साल के समारोह को अप्रतिम रूप दिया.

कायदे से ऐसा पहली बार हुआ जब हमारी भाषाई और कम बजट की फिल्मों, उनके निर्देशक और कलाकारों ने भी अपने कथानक, प्रस्तुति और अभिव्यक्ति से न केवल कई पुरस्कार जीते बल्कि उनकी मार्फत भारत की राष्ट्रीय एकता, अखंडता, गौरव और संस्कृति की एक महान झांकी रची गई. असमिया, लक्षद्वीप और लद्दाख जैसी जगह उनके फिल्मकारों की मार्फत राष्ट्रीय मंच पर थे. पर राष्ट्रपति सचिवालय की एक चूक ने इतने अच्छे आयोजन और सबकी मेहनत पर विवाद की छाया लगा दी.

हालांकि हर साल की तरह इस साल भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में प्रदान किए गए, लेकिन समारोह का 65 वां संस्करण तब विवादों में आ गया जब कई विजेताओं ने राष्ट्रपति के हाथों चुनिंदा विजेताओं को ही सम्मानित किए जाने का विरोध किया. कई लोगों ने इसके विरोध में समारोह में हिस्सा नहीं लिया.

परंपरा के उलट इस बार विज्ञान भवन में आयोजित समारोह दो हिस्सों में बंटा था. पहले चरण में पुरस्कार केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री एवं राज्य मंत्री क्रमश: स्मृति ईरानी एवं राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ ने प्रदान किए. दूसरे चरण में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रमुख पुरस्कार भेंट किए, जिनमें विनोद खन्ना एवं श्रीदेवी के लिए मरणोपरांत क्रमश: दादा साहेब फाल्के और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार शामिल थे. इसकी वजह यह थी कि राष्ट्रपति सचिवालय ने कार्यभार संभालने के बाद से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा कहीं भी एक घंटे से अधिक न रुकने के कथित प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए ज्यादा समय देने से मना कर दिया.

बुधवार को जब समारोह का रिहर्सल हुआ था, तब पहली बार विजेताओं को पुरस्कार भेंट किए जाने के तरीके में बदलाव की जानकारी दी गई. इसके बाद तो अधिकांश ने एक स्वर से राष्ट्रपति के हाथों सभी को पुरस्कार नहीं दिए जाने को लेकर विरोध जताया. पारंपरिक रूप से राष्ट्रपति ही राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के सभी विजेताओं को पुरस्कार प्रदान करते हैं.

राष्ट्रपति सचिवालय के मुताबिक जब से नए राष्ट्रपति ने कार्यभार संभाला है वह एक घंटे से अधिक कहीं नहीं रुकते, ऐसा प्रोटोकाल बना रखा है. पर इस आयोजन से पहले किसी को भी इस बात की हवा तक नहीं थी. अब जिस देश ने राष्ट्रपति के रूप में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और अभी इनके पूर्ववर्ती प्रणब मुखर्जी की कार्यपद्धति देखी है, जो न केवल एक-एक दिन में दस-दस सभाएं करते थे, बल्कि जनता और कलाकारों के लिए सहर्ष घंटों उपलब्ध रहते थे, उनके लिए यह आश्चर्य की बात थी. नतीजतन विरोध की सुगबुगाहट होने लगी.

फिर क्या था, इस बाबत करीब 70 कलाकारों दिन में राष्ट्रपति और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के नाम एक खुला पत्र लिखा. इस खुले पत्र के माध्यम से तमाम कलाकारों ने कहा कि वे पुरस्कार वितरण समारोह में शामिल नहीं होंगे क्योंकि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद स्थापित परंपरा से अलग हटकर केवल 11 लोगों को पुरस्कार देंगे. इस पत्र में कलाकारों ने लिखा, ‘‘यह भरोसे के टूटने जैसा लगता है, जब अत्यधिक प्रोटोकॉल का पालन करने वाला एक संस्थान/समारोह हमें पूर्व सूचना नहीं देता है और समारोह के इस महत्वपूर्ण आयाम की सूचना देने में विफल रहता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण लगता है कि 65 साल से चली आ रही परंपरा को एक पल में बदला जा रहा है.’’

अपनी फ़िल्म 'द अनरिज़र्व्ड' के लिए पुरस्कार पाने वाले समर्थ महाजन का कहना था, ''हमें बोला गया था कि राष्ट्रपति से पुरस्कार मिलेगा. हमें मिले निमंत्रण पत्र में भी यही लिखा था. फिर अचानक बुधवार को बताया गया कि राष्ट्रपति पुरस्कार नहीं देंगे. वह सिर्फ़ 11 लोगों को पुरस्कार देंगे. पता नहीं उन 11 लोगों को कैसे चुना गया है.''

पत्र में निर्देशक कौशिक गांगुली, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार जीतने वाले फहद फासिल और गायक केजे येसुदास जैसी प्रमुख हस्तियों ने हस्ताक्षर किए थे, हालांकि बाद में येसुदास समारोह में शामिल हुए. गांगुली की फिल्म ‘नगरकीर्तन’ ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, विशेष ज्यूरी, मेक अप और कॉस्ट्यूम सहित कई पुरस्कार जीते. वे समारोह से दूर रहे हालांकि फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीतने वाले रिद्धि सेन मौजूद थे.

गांगुली ने कहा, ‘इसका यह मतलब नहीं है कि हम पुरस्कारों को नामंजूर कर रहे हैं. लेकिन राष्ट्रपति को हमें पुरस्कार देना चाहिए था. यह एक खास पहलू है जिसमें बदलाव नहीं किया जा सकता और हमें कोई सूचना नहीं दी गई थी.’ उन्होंने कहा, ‘65 से 70 लोगों ने समारोह में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया. इसलिए मैंने बिरादरी के साथ जाने का फैसला किया.’

कलाकार इस बात से भी काफ़ी नाराज़ दिखे कि इसकी सूचना भी उन्हें सम्मानजनक तरीके से नहीं दी गई. हालांकि कईयों का कहना था कि सूचना पहले मिल भी जाती तो कोई फर्क नहीं पड़ता. केंद्रीय मंत्री कोई छोटा व्यक्ति नहीं होता. स्मृति जी तो फिर भी हमारी अपनी हैं. पर राष्ट्रपति को वक्र्त निकालना ही चाहिए था. हमारी नाराजगी राष्ट्रपति और उनके कार्यालय से है. यह ठीक है कि हम संवैधानिक पद की महत्ता को देखते हुए कुछ कह नहीं सकते. पर इतने उच्च पद पर आसीन व्यक्ति को अपने पद की गरिमा व परंपरा का ध्यान तो करना ही चाहिए था.

फ़िल्म 'टोकरी' के लिए बेस्ट एनिमेशन अवॉर्ड लेने आईं नीलिमा का कहना था कि, ''बुधवार को विज्ञान भवन में रिहर्सल के दौरान बहुत ही हल्के तरीके से बताया गया कि राष्ट्रपति हमें अवॉर्ड नहीं देंगे. यह सुनकर लोगों को अच्छा नहीं लगा. वहीं पर बहस होने लगी.''

'ऐसे बदलाव रातोंरात तो नहीं होते हैं न ही होने चाहिए थे. अगर हमें इसके बारे में पहले बताया गया होता कि तो हम पहले फैसला कर सकते थे कि हमें ये अवॉर्ड किससे लेना है या लेना भी है या नहीं. इस तरह आखिरी वक्त में बताना बहुत अपमानजनक है. जैसे हम अवॉर्ड के लालची हैं और इसके लिए तैयार हो जाएंगे.''

'नगरकीर्तन' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीतने वाले रिद्धि सेन ने का कहना था, 'हर कोई हल्का नाराज है क्योंकि हमें आखिरी समय में इस बदलाव के बारे में पता चला. यह सही नहीं लगता क्योंकि देश भर से लोग राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार लेने के लिए अपने परिवार के साथ यहां आए हैं.’ सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार जीतने वाली शाशा तिरूपति ने कहा कि उन्हें अपनी जीत पर खुशी है लेकिन जिस तरह से विजेताओं को यह खबर दी गई उससे उन्हें ‘काफी समस्या’ है.

एनिमेशन श्रेणी में पुरस्कार पाने वाले विनीश कहते हैं, ''हमें जो बोला गया था वो नहीं हुआ. मेरी जान-पहचान में कोई नहीं है, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला हो. ऐसे में राष्ट्रपति से पुरस्कार मिलना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. पर फिर भी मुझे न जाने का कोई अफसोस नहीं है. हम धोखा होने जैसा महसूस कर रहे हैं.''

पर इस मसले पर सिनेमा पर सर्वोत्तम लेखन ज्यूरी के अध्यक्ष अनंत विजय का कहना है कि "यह व्यर्थ का विवाद था. मंत्रालय ने पुरस्कृत फिल्मों के चयन में जो निष्पक्ष भूमिका निभाई उसकी हर संभव तारीफ की जानी चाहिए. इसकी तारीफ करने की जगह चंद लोग, जो हर जगह नकारात्मकता ही देखते हैं, एक मसला खड़ा करना चाहते थे. आखिर केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी खुद भी इसी क्षेत्र से जुड़ी रही हैं और कलाकारों, महिलाओं और संस्कृति को लेकर उनके मन में विशेष सम्मान भी है. फिर प्रोटोकाल के हिसाब से वह खुद तो राष्ट्रपति महोदय को अधिक समय रुकने के लिए नहीं कह सकती थी. ऐसे में अगर मंत्री ने खुद से आगे बढ़कर पुरस्कारदाताओं को सम्मानित करने और मंत्रालय और अपनी ओर से सबकी बात सुनने का हर संभव प्रयास किया, तो गलत क्या किया? सच तो यह है कि क्षेत्रीय फिल्मों और महिलाओं के लिए यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि का मौका था. जो नहीं आए वे खुद इतिहास का साक्षी बनने से रह गए." 

खबर है कि विरोध कर रहे पुरस्कार विजेताओं को निर्देशक शेखर कपूर ने भी समझाने की कोशिश की. उन्होंने ये भी कहा था कि सरकार से टकराव ठीक नहीं है. लेकिन समारोह में शामिल न होने का फैसला कर चुके लोगों ने उनकी भी न सुनी. एक विजेता इंद्राणी किसी तरह के टकराव से इनकार करती हैं. इंद्राणी को बेस्ट एडवेंचर वुमन का अवॉर्ड मिला है. उनका कहना था कि 'ये कोई टकराव नहीं है. बस ये अनुरोध किया जा रहा था कि सभी को राष्ट्रपति से अवॉर्ड मिले. साथ ही इसका भी कोई कारण नहीं दिया गया कि राष्ट्रपति अवॉर्ड क्यों नहीं दे रहे हैं.'

असमिया फिल्म 'विलेज रॉकस्टार्स' के लिए सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार जीतने वाली रीमा दास ने हालांकि पुरस्कार समारोह में हिस्सा भी लिया और राष्ट्रपति से भी पुरस्कृत हुईं, पर उनका भी कहना था कि, ‘यह काफी दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि सभी राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार मिलने की उम्मीद कर रहे थे.’

इस बवाल के बाद राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अशोक मलिक का तर्क था कि राष्ट्रपति ने जब से कार्यभार संभाला है वह सभी पुरस्कार कार्यक्रमों और दीक्षांत समारोहों में अधिकतम एक घंटे रुकते हैं. यह प्रोटोकाल उनके पदभार ग्रहण करने के समय से ही चला आ रहा है. इस बारे में सूचना और प्रसारण मंत्रालय को कई सप्ताह पहले ही अवगत करा दिया गया था और मंत्रालय को इसकी जानकारी थी. उन्होंने कहा कि 'अंतिम समय में इस तरह से सवाल उठाने से राष्ट्रपति भवन आश्चर्यचकित है.'

जवाब में एक नाराज फिल्मकार का तर्क था कि प्रोटोकाल क्या एक दिन में बनता है? क्या वह राष्ट्रीय परंपरा से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? फिर राष्ट्रपति सचिवालय यह स्पष्ट करने में क्यों नाकाम है कि किसी भी कार्यक्रम में राष्ट्रपति के एक ही घंटे रुकने की असली वजह वाकई क्या है? राष्ट्रपति कोविंद ऐसा क्यों करते हैं? क्या वह बीमार हैं? क्या उन्हें एक घंटे से अधिक कहीं रुकने में दिक्कत है? अब से पहले तो यह बात नहीं सुनी गई थी. अगर ऐसा है तो जनता को यह जानने का हक है कि 'प्रथम नागरिक' ऐसा क्यों करते हैं?

विरोध पत्र में हस्ताक्षर करने वाले येसुदास ने समारोह में शामिल होने के बाद कहा कि, ‘‘मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता. राष्ट्रपति ने मुझे आमंत्रित किया था, इसलिए मैं यहां हूं."

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में श्रीदेवी का मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का सम्मान लेने दिल्ली आए उनके पति और फिल्म निर्माता बोनी कपूर ने कहा कि परिवार के लिए यह खास क्षण है और उन्होंने श्रीदेवी की कमी बहुत महसूस की. श्रीदेवी की गत 24 फरवरी को दुबई में 54 साल की उम्र में मौत हो गई थी. श्रीदेवी को हिन्दी फिल्म ‘मॉम’ के लिए पुरस्कृत किया गया. इस समारोह में कपूर के साथ उनकी बेटियां जाह्नवी और खुशी भी मौजूद थीं.

अपने पिता विनोद खन्ना को मरणोपरांत मिला दादा साहेब फाल्के पुरस्कार ग्रहण करने के लिए आए अभिनेता अक्षय खन्ना ने कहा कि यह उनके परिवार के लिए ‘खुशी और गम दोनों का पल’ है. उन्होंने कहा, ‘हम एक परिवार के रूप में बेहद गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. यह हमारे लिए खुशी और गम दोनों का पल है. काश मेरे पिता यह पुरस्कार लेने के लिए यहां होते. मुझे उनकी कमी खल रही है. यह हमारे लिए जज्बातों से भरा दिन है.’ समारोह में ‘मॉम’ फिल्म के अभिनेता अपनी सौतेली मां कविता दफ्तरी के साथ आए थे.

‘इरादा’ फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने वाली दिव्या दत्ता ने कहा , ‘यह मेरा पहला राष्ट्रीय पुरस्कार है. मेरे प्रमाणपत्र पर राष्ट्रपति का मुहर होगा और यह मायने नहीं रखता कि मुझे पुरस्कार उनके हाथों से मिले या नहीं. ’ दिव्या को स्मृति ने पुरस्कार प्रदान किया. पहली बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता कर रहे कोविंद ने इसे एक खास पल बताया.

राष्ट्रपति ने कहा, ‘मैं शुरूआत 125 पुरस्कार विजेताओं में शामिल हर व्यक्ति और उन अनगिनत कलाकारों को बधाई देने से करना चाहता हूं जिन्हें आज सराहा जा रहा है. यह एक खास पल है. ’ उन्होंने दोनों दिवंगत कलाकारों को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी ‘ सबसे बेहतरीन ’ फिल्मों - खन्ना की ‘ मेरे अपने ’ और श्रीदेवी की ‘ लम्हें ’ को याद किया.

राष्ट्रपति ने कहा , ‘वे बॉक्स ऑफिस पर सफलता से इतर बेहतरीन फिल्में थीं. वे हमारे दिलों में बस गईं.'  राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘ फिल्म जगत उन कुछेक चीजों में से है जो हमें जोड़ती हैं. हमें पता है कि विविधता में एकता हमारी सबसे बड़ी ताकत है. हमारी फिल्में ना केवल विविधिता को दिखाती हैं बल्कि इसे बनाए रखने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. हमारी फिल्मों का कथानक भी हमारी संस्कृति से जुड़ा है.’’

सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ने भी श्रीदेवी को याद करते हुए कहा, ‘‘ आज हमने इस मंच पर एक ऐसी महिला को भी सम्मानित किया है जो हमारे बीच नहीं हैं. यह उनका पहला राष्ट्रीय पुरस्कार है. मुझे श्रीदेवी को इस रूप में याद करती हूं कि उन्होंने ना केवल फिल्म जगत बल्कि हमारे जीवन पर भी एक गहरा असर छोड़ा है. ’’

उन्होंने खन्ना को श्रद्धांजलि देते हुए कहा ,‘राष्ट्रपति ने एक ऐसी हस्ती को भी सम्मानित किया जिन्होंने अपनी क्षमता के आधार पर ना केवल सिनेमा बल्कि राजनीति में भी इतिहास रचा. ’

समारोह में मौजूद प्रमुख हस्तियों में संगीतकार ए आर रहमान, रीमा दास, सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म चुनी गई ‘ न्यूटन ’ के निर्देशक अमित मासुरकर, रिद्धि सेन, सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार जीतने वाली शाशा तिरूपति सहित अन्य शामिल हैं.

फीचर फिल्म खंड की ज्यूरी का नेतृत्व करने वाले मशहूर फिल्मकार शेखर कपूर, गैर फीचर फिल्म ज्यूरी के अध्यक्ष नकुल कामते, सिनेमा पर सर्वोत्तम लेखन ज्यूरी के अध्यक्ष अनंत विजय, फिल्म अनुकूल प्रदेश निर्णायक समिति के अध्यक्ष रमेश सिप्पी सहित ज्यूरी के सम्मानित सदस्य इम्तियाज हुसैन, गोपाल कृष्ण पाई, गौतमी तड़ीमल्ला, राहुल रवैल, पी शेषाद्री, अनिरुद्ध रॉय चौधरी, रूमी जाफरी, रंजीत दास, राजेश मापुस्कर, त्रिपुरारी शर्मा, भास्कर हजारिका, रणजीत रे, आरवी रमानी, क्रिस्टो टोपी, आराधना प्रधान, मनीषा कुलश्रेष्ठ, रवि सुब्रमण्यन, नेहा तिवारी, जदुमोनी दत्ता, जीएस भास्कर, इंद्रजीत नेयोगी, सांगे डोरजी, सुजाता शिवेन, संजीव रतन, राजीव भाटिया, जूधाजीत सरकार, जी धनंजय, प्रिया कृष्णस्वामी, विनोद मानकर, विनोद अनुपम, महबूब, राजेश टचरिवेर, चंद सिद्धार्थ, शेखर दास, साइबल चटर्जी, राजेश जोशी, अमृत गंगार, सुनील सुकथांकर, नागराज मंजूले, राजाकृष्ण मेनन, उदय सिंह और विवेक अग्निहोत्री स्वयं या उनके प्रतिनिधि समारोह में मौजूद थे. यह सभी अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं.

इनके अलावा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार समिति की सदस्य जाहुन बरुआ, शाजी एन करुण, उषा किरण खान, राम गोपाल बजाज और मनमोहन महापात्रा भी मौजूद थे. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा दिए गए रात्रि भोज में सभी पुरस्कार विजेता और अतिथि शामिल हुए. केंद्रीय मंत्री ने ज्यूरी के सभी सदस्यों का आभार व्यक्त किया.
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