पत्रकारों को सीजीएचएस सुविधाः सरकार ने बदले नियम, लगन हो तो अकेले भी करवा सकते हैं समूह हित में फैसला

पत्रकारों को सीजीएचएस सुविधाः सरकार ने बदले नियम, लगन हो तो अकेले भी करवा सकते हैं समूह हित में फैसला नई दिल्लीः पत्रकारों के हित को लेकर यों तो ढेर सारे संगठन हैं, और सरकार भी जब-तब उनके हित में बड़े-बड़े दावे करती रहती है. पर सच तो यह है कि आधुनिकता और बदलाव की सबसे बड़ी मार इसी तबके पर पड़ी और वह बुरी तरह से बदहाली और बेरुखी का शिकार है. बेरोजगारी और भविष्य का डर या फिर सुविधाओं के लालच ने इस दौर में पत्रकार संगठनों की भूमिका भी महज ताली बजाने वाली भीड़ में तब्दील कर दी है. फिर भी इस दौर में कुछ ऐसे भी पत्रकार, पत्रकार नेता बचे हैं, जो अपने व्यक्तिगत हितलाभ से ऊपर समूह हित में न केवल कुछ कर गुजर रहे हैं, बल्कि नतीजा भी ला रहे हैं.

पत्रकार शिशिर सोनी, इस जमात के सबसे अग्रिम नामों में से एक हैं. वह लंबे समय से पत्रकारहितों को लेकर जूझते रहे हैं और नतीजा लेकर आते हैं. ताजा वाकिआ सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम यानी सीजीएचएस से जुड़ा है. पता नहीं आपमें से कितनों को पता है कि भारत सरकार ने काफी लंबे समय से पत्रकारों को सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम से जुड़ी डिस्पेंसरी और उससे जुड़े अस्पतालों पर स्वास्थ्य सुविधा दे रखी थी. जहां पत्रकार और उनके परिजन अपने स्वास्थ्य कार्ड के साथ सीजीएचएस द्वारा निर्धारित रकम का भुगतान कर स्वास्थ्य जांच व इलाज का लाभ उठा सकते थे. पर पिछले दिनों एक सरकारी सर्कुलर से सभी सीजीएचएस कार्ड धारकों को निजी अस्पतालों में इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए अपने-अपने हल्कों की डिस्पेंसरी से रेफर कराने की अनिवार्यता रख दी गई. चूंकि सरकारी कर्मचारियों और उनके परिजनों को यह सुविधा मुफ्त मिलती है, इसलिए उन्हें लेकर जारी शासनादेश का शिकार पत्रकार भी हो गए.

जब पत्रकारों को असुविधा होनी शुरू हुई तो उन्होंने एतराज शुरू किया. चूंकि सीजीएचएस की यह सुविधा केंद्र द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही मिलती है और इससे ज्यादातर दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी के पत्रकार जुड़े हैं, इसलिए सबने अपने-अपने संबंधित संगठनों और मंचों पर यह बात रखी. प्रेस एसोसिएशन और नेशनल युनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया के अलावा दूसरे संगठनों के सामने भी यह मसला पुरजोर ढंग से उठा. पर मसले को सही मंच पर उठाने में संगठनों के विलंब को देखकर प्रेस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष शिशिर सोनी ने इसे निजी तौर पर उठाने का फैसला किया. मंत्री से लेकर बाबूशाही तक उन्होंने हर स्तर पर अपनी बात रखी और अंततः स्वास्थ्य सेवाओं के संबंधित निदेशक को वह यह समझाने में सफल रहे कि डिस्पेंसरी से रेफर कराकर निजी अस्पतालों में जांच और इलाज कराने का सरकारी निर्देश पत्रकारों पर लागू नहीं है, क्योंकि वह ये सुविधाएं भुगतान कर हासिल करते हैं. सरकार की इस स्पष्टता से उन वरिष्ठ पत्रकारों, तथा तमाम पत्रकारों के परिजनों को बड़ी राहत मिली है, जो उम्र से जुड़ी बीमारियों के चलते लगातार स्वास्थ्य जांच कराते रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सोनी पहले भी रेलवे से जुड़े एक मसले का समाधान इसी तरह निजी स्तर पर करा चुके हैं. यह हम सभी को पता है कि रेलवे के आरक्षण फार्म में नाम लिखने के लिए शब्दों की संख्या सीमित, लगभग सोलह अक्षर है. इधर रेलवे ने मान्यता प्राप्त पत्रकारों को पचास फीसदी रियायती दर पर यात्रा की सुविधा भी प्रदान कर रखी है. ममता बैनर्जी जब रेल मंत्री थी तो उन्होंने पत्रकारों के जीवनसाथी को भी साल में दो बार यह छूट प्रदान की. रेलवे कूपन वाला जमाना जब हटा तो पत्रकार इस सुविधा का लाभ रेलवे वेबसाइट पर भी टिकट बुक कर उठाने लगे. यह छूट आईआरसीटीसी की वेबसाइट से ऑनलाइन टिकट की बुकिंग पर भी लागू थी. पर उन पत्रकारों को दिक्कत पेश आने लगी जिनके नाम अंग्रेजी में सोलह अक्षरों से ज्यादा थे. ऐसे लोग जब ऑनलाइन टिकट बुकिंग के लिए गए तो नाम की लंबाई के चलते सिस्टम ने नाम मिसमैच की चेतावनी के साथ टिकट पर छूट की सुविधा देना बंद कर दिया. जब कई पत्रकारों को असुविधा हुई, और उन्होंने रेलवे से सम्पर्क किया, तो बिना सिस्टम अपग्रेडेशन ऑप्शन के अधिकारियों ने कुछ भी मदद करने में असमर्थता जाहिर की. पत्रकार साथियों की असुविधा बढ़ी तो इस मसले के नोटिस में आने के दो दिनों के भीतर ही शिशिर ने रेलवे बोर्ड में अपने प्रयासों से सभी ऐसे पत्रकारों को संक्षिप्त, संशोधित नाम से ऑनलाइन टिकट बुक कराने का ऑप्शन उपलब्ध करवाया. शिशिर ने तब पत्रकार मित्रों को बाकायदा खुद से पहल कर इस दिशा में मदद की पेशकश भी की थी.

कहते हैं अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, पर इन वाकियों में उदाहरण है कि ऐसा हो भी सकता है. इन घटनाओं को यहां रखने का मकसद यही है कि पत्रकार संगठनों को या तो अपनी भूमिका सदस्य हित में बदलनी चाहिए या फिर आप को अपने मसले खुद के स्तर पर या शिशिर सोनी जैसे पत्रकार साथियों की मदद से उठाने चाहिए.
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स्वास्थ्य विभाग का पहला निर्देश- जिसमें डिस्पेंसरी से होकर निजी अस्पताल की बाध्यता थी-


वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सोनी के प्रयासों के बाद दूसरा निर्देश, जिससे डिस्पेंसरी की बाध्यता हटी-

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