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साक्षात्कार: लेखक डा. महबूब हसन उर्दू साहित्य का एक जाना पहचाना नाम

अमिय पाण्डेय , Mar 28, 2018, 9:35 am IST
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साक्षात्कार: लेखक  डा. महबूब हसन उर्दू साहित्य का एक जाना पहचाना नाम
चंदौली : नौजवान लेखक डॉ महबूब हसन समकालीन उर्दू साहित्य का एक जाना पहचाना नाम है.उन्होंने अपनी निरंतर साहित्यिक गतिविधियों के बल पर उर्दू साहित्य के वर्तमान पृष्टभूमि पर एक विशिष्ट पहचान कायम की है गद्द और पद्द विधाओं में उनकी लेखन शैली का अपना अलग रंग है।डॉ महबूब हसन ने अपने साहित्यिक जीवन का प्रारंभ बाल साहित्य से क्या.उनकी बल कविताएं और कहानियां देश की प्रतिष्टित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं.उन्हों ने शोध एवं आलोचना के छेत्र में भी अपना महवपूर्ण योगदान दिया है. जनता जनार्दन संवाददाता अमिय पांडेय और डॉ. महबूब हसन बातचीत: 
 
परिचय:   
डा. महबूब हसन
जन्म:1985
ग्राम:नवागंज
चकिया
ज़िला: चंदौली (उ प्र)
शिक्षा: एम ए (उर्दू,गोल्ड मेडल),बी.एच. यू ,वाराणसी
पी.एच. डी (उर्दू) जे.एन.यू नई दिल्ली
एम फिल(उर्दू) जे.इन.यू नई दिल्ली
जेअरएफ यू नई दिल्ली
 
प्रकाशित पुस्तकें:
१: इस्मत चुगताई और ऑस्टिन (शोध आलोचना)
२: निकात ए फिक्शन (शोध आलोचना)
३: तितली रानी (बाल साहित्य)
४: तुण्ड कबाब (हास्य व्यंग्य)
५:उर्दू अंग्रेज़ी नावेल और तक़सीम ए हिन्द (प्रकाशनाधीन)
 
तुण्ड कबाब(पुस्तक समीक्षा)
काबिल ए गौर है कि उर्दू साहित्य में उनकी आधारभूत एवं बुनयादी पहचान एक व्यंगकार के रूप में है।उनकी व्यंगतामक रचनाएँ राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय की सोभा बढ़ाती रही हैं.उन्होंने कम समय मे उर्दू साहित्य के एक बड़े तबक़े अपनी खास पहचान स्थापित की है।उनकी नज़र में अस्वीकृति एवं असहमति व्यंग का बुनयादी अंग है.

एक लेखक सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक,धार्मिक,शैक्षिक एवं सांस्कृतिक कुर्रतियों एवं अवव्यवस्थाओं से असहमत हो कर अपने व्यंग के तीर चलाता है.समाज के गले सादे रीतिरिवाज एवं ज़ख्मों व नसूरों के खिलाफ अपनी मज़बूत आवाज़ बुलंद करता है।
 
युवा क़लमकार डॉ महबूब हसन की ताजा पुस्तक "टुंडे कबाब"उर्दू में हस्यव्यंग की परंपरा की अहम कड़ी हैं।वह अपनी रचनाओं का विषय-वस्तु के लिए बाज़ारों में नही भटकते और न ही तल्ख हक़ीक़त से आंखें चुराने का हौसला रखते हैं।
 
उनकी बहुचर्चित पुस्तक "टुंडे कबाब"इसका वाजिब सबूत पेश करती है जिसे यू पी उर्दू अकादमी से 20,000 का नकदी पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।इस पुस्तक में कुल 13 मज़मून शामिल हैं,इन तमाम रचनाओं में समाज की टेढ़ी- मेढ़ी लकीरेनस्पष्ट तौर पर नज़र आती हैं।
 
पुस्तक में शामिल महत्पूर्ण लेखों में "मेरे अल्लाह पी एच डी से बचाना मुझको","रोमियो  की आज़माइश" "चले भी आओ के टुंडे का कारोबार चले", "सारे जहां से चौपट हिंदुस्तान हमारा","ऐसी आज़ादी से बेहतर है ग़ुलामी या रब","रिश्वत बराए रहमत "।
 
 डॉ महबूब हसन अपनी इस पुस्तक में बेहद सरल आर सुंदर रचना शैली का प्रयोग क्या है।उन्हों ने टूटते बिखरते मानवीय मूल्यों पर भी अपने ख्यालात का इज़हार क्या है।"रिश्वत बरा ए रहमत" में उन्हों ने समाज और देश मे व्याप्त आर्थिक भ्रष्टाचार और असमानता को निशाना बनाया है।"अल्लाह के नाम पर पढ़ ले बाबा" के पर्दे में उन्होंने किताबों की घटती हुई लोकप्रियता और मोबाइल,इंटरनेट के नकारात्मक प्रभाव से आगाह किया है।आवश्यकता के अनुसार डॉ महबूब आपन खुद को मज़ाक़ उड़ाने से भी नही हिचकते।अपने एक लेख में उन्हों ने अपनी ज़िंदगी के काबिल ए रहम हालात से पर्दा उठाया है।
 
मुख़्तसर ये कि डॉक्टर महबूब हसन की पुस्तक "टुंडे कबाब" उर्दू साहित्य के हास्य व्यंग्य की परंपरा को आगे बढ़ाने में सहायक होगी।हम उनकी इस पुस्तक के प्रकाशन पर मुबारकबाद पेश करते हैं।हम यक़ीन है कि "टुंडे कबाब अपने विषय वस्तु, सामाजिक सरोकार,मानवीय बोध,साहित्यिक कलात्मकता,समकालीन, प्रसंगिकता और अपनी अनोखी रचना शैली के कारण पाठकों में लोकप्रियता हासिल करेगी।
 
"अगले जन्म मोहे गौ माता न कीजियो", "मिस उर्दू से मुलाक़ात" और "किस्सा एक सेमिनार का वग़ैरा यह तमाम रचनाएँ उनके गहरे अनुभव और सामाजिक सरोकार की ओर इशारा करती है।।लेखक ने उपयुक्त लेखों के माध्यम से सामाजिक, राजनैतिक,धार्मिक,सांस्कृतिक, साहित्यिक व आर्थिक कमज़ोरियों व खामियों पर अपने गहरे तंज़ के नश्तर चलाए हैं।डॉ महबूब हसन ने शासन प्रशासन और लोकतांत्रिक कमज़ोरियों को भी नही बख्शा है।पुस्तक में शामिल लेखों के शीर्षक की रोशनी में भी लेखक के विचारों,भावनाओं और साहित्यिक चेतना का अंदाज़ा होता है।
 
"मेरे अल्लाह पी एच डी से बचना मुझको"के ज़रिये उन्हों ने बेरोज़गारी जैसी भीषण और दुखद समस्या को किस्सा गोई के अंदाज़ में पेश किया है।इस लेख के पात्र हाकिम अज़मत के पर्दे में मुल्क में हज़ारों लाखों बेरोज़गार युवाओं के दुख दर्द को ददर्शता है।
 
अफसोस के निठल्ली सरकारें पढ़े लिखे एयर ऊंच शिक्षा प्राप्त युवाओं से पकौड़े बेचने को कहती है।यह सच है कि  स्वार्थी व अनपढ़ नेताओं ने देश के संसाधनों पर कब्ज़ा जमा रखा है।डॉ महबूब हसन ने जिस यथार्थ अंदाज़ में इस बेरहम हालात से पर्दा उठाया है वो क़ाबिल ए तारीफ है।
 
"अगले जन्म मोहे गौ माता ना किजियो" के माध्यम से देश मे भड़क रही संप्रदायकता कि आग को अपने व्यंग का निशाना बनाया है,लेखक ने साक्षात्कार के माध्यम से गाय और गोबर के पर्दे में होने वाली घटिया राजनीति पर अपने तंज के तीर बड़े ही सुंदर तरीके से चलाय हैं।
 
मानवीय मूल्य के अलंबरदार डॉ.महबूब हसन समाज मे घटित होने वाली नकारात्मक गतिविधियों पर कड़ी नजर रखते नज़र आते हैं।


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