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विधानसभा चुनाव 2018: मेघालय और नागालैंड के 59-59 सीटों पर मतदान, पूर्वोत्तर में भाजपा को उम्मीद

विधानसभा चुनाव 2018: मेघालय और नागालैंड के 59-59 सीटों पर मतदान, पूर्वोत्तर में भाजपा को उम्मीद नई दिल्लीः पूर्वोत्तर भारत के दो राज्यों मेघालय और नागालैंड में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग जारी है, जहां सुबह से ही पोलिंग बूथ पर लोगों की लंबी कतारें देखी जा रही है.

दोनों राज्यों में ज्यादातर जगहों पर वोटिंग सुबह सात बजे शुरू हो गई, जो शाम चार बजे तक चलेगी. वहीं नागालैंड के दूरदराज के जिलों में कुछ पोलिंग बूथ पर वोटिंग तीन बजे समाप्त हो जाएगा. इन दोनों ही राज्यों के अलावा त्रिपुरा में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे 3 मार्च को घोषित किए जाएंगे.

नागालैंड के सीएम टीआर जेलियांग ने वोट डालने के बाद मीडिया के बातचीत में राज्य में शांतिपूर्ण ढंग से वोटिंग संपन्न होने की उम्मीद जताई है. उन्होंने कहा कि हम यहां पूर्ण बहुमत हासिल करेंगे. हमें उम्मीद है कि राज्य में शांति स्थापित होगी और हम नागा समस्या के राजनीतिक समाधान की तरफ बढ़ सकेंगे.

नागालैंड के तिजित विधानसभा क्षेत्र में एक पोलिंग पर उग्रवादियों के हमले की खबर हैं. प्राप्त जानकारी के मुताबिक, उग्रवादियों ने यहां पोलिंग बूथ पर बफ फेंक दिया, जिसमें एक शख्स घायल हुआ है.

नागालैंड के पेरेन जिले स्थित पोलिंग बूथों पर भी वोटरों की लंबी कतारें लगी हैं, जिसमें महिलाओं और बुजुर्ग भी बढ़ चढ़कर अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रही हैं.

मेघालय में विधानसभा चुनाव के लिए प्रदेश की कई बड़ी राजनीतिक हस्तियां अपनी पत्नियों और अन्य रिश्तेदारों के साथ मैदान में हैं. यहां मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के परिवार के तीन सदस्य गारो हिल्स क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं. मुकुल खुद दो सीटों- अम्पाति और सोंगसाक- से चुनाव मैदान में हैं. वहीं एनपीपी के उमीदवार और दिवंगत पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के रिश्तेदार भी इसी क्षेत्र में चार सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं.

नॉर्थ शिलॉन्ग में पोलिंग बूथ पर वोटरों की भारी भीड़ लगी है. यहां से कांग्रेस नेता रोशन वर्जरी मौजूदा विधायक हैं.

बेहद रोचक है नागालैंड की राजनीति, आज तक नहीं बनीं कोई महिला विधायक.

शिलॉन्ग में मॉडल पोलिंग स्टेशन 'नॉर्थ' ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत के बाद वोटिंग रोकनी पड़ी. हालांकि थोड़ी ही देर में उस गड़बड़ी को ठीक लिया गया, जिसके बाद वहां दोबारा वोटिंग शुरू हो गई.

दोनों ही राज्यों में तथा त्रिपुरा में चुनाव के परिणाम 3 मार्च को घोषित किए जाएंगे. दोनों राज्यों में चल रहा धुआंधार चुनाव प्रचार रविवार शाम थम गया. असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में सरकार बनाने से उत्साहित भाजपा अब नागालैंड तथा मेघालय में अपने पांव पसारने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस के लिए मेघालय में मिलने वाले चुनाव के परिणाम महत्त्वपूर्ण रहेंगे क्योंकि इस राज्य में वह बीते दस साल से सत्ता पर है.

राजनीतिक पर्यवेक्षक पूर्वोत्तर राज्यों में सरकार बनाने की भाजपा की कोशिश पर उत्सुकता से नजर बनाए हुए हैं. वैसे भी पूर्वोत्तर कांग्रेस का गढ़ रहा है और परंपरागत रूप से भगवा दल यहां हाशिये पर ही रहा है. मेघालय में कांग्रेस ने 59 और भाजपा ने 47 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. इस राज्य में लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष पी ए संगमा के पुत्र कॉनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और भाजपा अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं लेकिन नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) में एनपीपी भाजपा की सहयोगी है.

पूर्वोत्तर में पांव पसारने की जुगत में भाजपा
नगालैंड में भाजपा को नीफियू रियो की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ किनारे लगने की उम्मीद है. दोनों गठबंधन भागीदारों में से एनडीपीपी ने 40 सीटों पर और भाजपा ने शेष 20 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. वर्ष 1963 में नागालैंड के अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस ने तीन मुख्यमंत्री दिए. लेकिन वह अब केवल 18 सीटों पर लड़ रही है जबकि भाजपा यहां 20 सीटों पर खड़ी है.

मेघालय में 370 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. कुल 18.4 लाख मतदाता राज्य में फैले 3,083 मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकारों का उपयोग करेंगे. मेघालय के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एफ आर खारकोंगोर ने बताया कि राज्य में पहली बार 67 महिला मतदान केंद्र और 61 आदर्श मतदान केंद्र स्थापित किए गए हैं. राज्य विधानसभा चुनाव में 32 महिलाएं भी उम्मीदवार हैं.

नगालैंड में 11,91,513 मतदाताओं में से 6,01,707 पुरुष और 5,89,806 महिला मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे. सैन्य सेवाओं में कार्यरत मतदाताओं की संख्या 5,925 हैं.

नगालैंड में चुनाव से पहले नगा राजनीतिक मुद्दे के समाधान की मांग कर रही नगालैंड ट्राइबल होहोज एंड सिविल ऑर्गनाइजेशन्स (सीसीएनटीएचसीओ) की कोर समिति ने ‘चुनाव नहीं’ का फरमान जारी किया है जिसके चलते राजनीतिक दलों ने खुद को चुनाव प्रक्रिया से अलग कर रखा है.
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