जांच होगी कि कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के साथ खालिस्तानी आंतकवादी जसपाल अटवाल को वीजा कैसे मिला
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Feb 22, 2018, 17:57 pm IST
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नई दिल्लीः कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की पत्नी सोफी ट्रूडो के खालिस्तानी आंतकवादी जसपाल अटवाल से मिलने वाले मुद्दे पर कनाडा के पीएमओ ने माफी मांग ली है. पूरे मामले पर पीएम ट्रूडो ने कहा कि उसे आमंत्रित करना एक भूल थी जिसे सुधारा लिया गया. ट्रूडो ने कहा कि कनाडा और भारत डिमॉक्रेसी की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध देश हैं, दोनों देश दुनिया की बड़ी डिमॉक्रेसी में से एक हैं.
वहीं विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि कनाडा ने उसे दिया आमंत्रण कैंसल कर दिया है, लेकिन उसे वीजा कैसे मिला यह पता नहीं चल पाया है. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह दोषी साबित हो चुके खालिस्तानी आतंकवादी जसपाल अटवाल को वीजा जारी करने के मामले में अपने मिशन से जानकारी हासिल कर रहा है. आपको बता दें कि समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, कनाडा के पीएम की पत्नी की कथित आतंकवादी के साथ कई तस्वीरें सामने आई थी. यह तस्वीर मुंबई में 20 फरवरी को हुए एक कार्यक्रम की बताई जा रही थी. इसके अलावा कनाडा के पीएम की ओर से खालिस्तान समर्थक आतंकवादी जसपाल अटवाल को औपचारिक डिनर के लिए भी निमंत्रण पत्र भेजा गया था, जो कि अब रद्द कर दिया गया है. बता दें कि खालिस्तान आतंकवादी जसपाल अटवाल प्रतिबंधित भारतीय सिख युवा संघ में सक्रिय था. जसपाल अटवाल को 1986 वैंकूवर द्वीप पर पंजाब के मंत्री, मल्लिकात सिंह सिद्धू की हत्या के प्रयास में दोषी ठहराया गया था, वह चार व्यक्तियों में से एक था, जिन्होंने सिंधु की कार पर हमला किया और गोली मार दी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रधानमंत्री कार्यालय से इस बारे में पूछने पर बताया गया कि निमंत्रण को रद्द कर दिया गया है. इस आमंत्रण को भारत में कनाडा के हाई कमिश्नर द्वारा दिया गया था. जसपाल अटवाल को औपरचारिक दिल्ली डिनर के लिए निमंत्रित किया गया था. इसे रद्द कर दिया गया है. मंगलवार को मुंबई में आयोजित हुए एक कार्यक्रम में ट्रूडो परिवार और बॉलिवुड हस्तियों समेत कनाडा में कैबिनेट मंत्री अमरजीत सोही ने भी शिरकत की थी. और इसी इवेंट में अटवाल और सोफी ट्रूडो की तस्वीर ली गई है. अमरजीत सोही भी जसपाल अटवाल के साथ तस्वीरों में दिख रहे हैं. भारत के दौरे पर भारत आए कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो बुधवार को परिवार सहित अमृतसर पहुंचे. जस्टिन ट्रूडो ने परिवार सहित स्वर्ण मंदिर जाकर मत्था टेका. इसके बाद उन्होंने पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह से मुलाकात की. दोनों के बीच खालिस्तान के मुद्दे पर भी चर्चा हुई. मुलाकात के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जस्टिन ट्रूडो के सामने खालिस्तान का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा, 'मैंने खालिस्तान के मुद्दे को उठाया क्योंकि यह एक प्रमुख मुद्दा है. कनाडा समेत बहुत सारे देशों से पैसे आ रहे हैं'. हालांकि इस पर ट्रूडो ने आश्वासन दिया है कि वह इस मामले पर विचार करेंगे. बता दें कि अटवाल पर 1986 में वैंकूवर आइलैंड पर भारतीय कैबिनेट मंत्री मलकीयत सिंह सिंधू की हत्या का प्रयास करने के आरोप है. उस समय अटवाल कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और भारत में एक आतंकवादी समूह के तौर पर बैन किए गए इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन का सदस्य था. इसके अलावा अटवाल को 1985 में एक ऑटोमोबाइल फ्रॉड केस में भी दोषी पाया गया था। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अटवाल का नाम मुंबई और दिल्ली के इवेंट की गेस्ट लिस्ट में कैसे आया. इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन को कनाडा सरकार ने 1980 में एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था. अटवाल उन चार लोगों में से एक थे जिन्होंने 1986 में वैंकूवर में सिंधू की कार पर गोलियां चलाईं थीं. अटवाल ने सिंधू पर हुए हमले में अपनी भूमिका होने की बात स्वीकार की थीं. कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो की पहली भारत यात्रा के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें यहां उतना प्यार नहीं मिला, जितने की उम्मीद थी. दोनों देशों के मीडिया में यह मुद्दा गरमा गया है कि भारत सरकार ने उनके प्रति बेरुखी दिखाई, क्योंकि ट्रूडो ने अपने देश में खालिस्तानी संगठनों का समर्थन किया था. ट्रूडो सरकार में खालिस्तानी समर्थकों के प्रति नरमी के पीछे असल में वहां की घरेलू राजनीति है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने यह कोशिश की थी कि ट्रूडो खालसा डे परेड में हिस्सा न लें, लेकिन यह नहीं हो सका. ट्रूडो से पहले स्टीफन हार्पर कनाडा के पीएम थे और अपने कार्यकाल में वह इस रैली में नहीं गए थे. इसी वजह से 2012 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और 2015 में नरेंद्र मोदी की कनाडा यात्रा का रास्ता साफ हो सका था. हाल में कनाडा के 16 गुरुद्वारों ने भारतीय अधिकारियों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी, जिसके खिलाफ ट्रूडो सरकार ने कोई ऐक्शन नहीं लिया. इसके बाद अमेरिका और ब्रिटेन के गुरुद्वारों ने भी ऐसा ही कदम उठाया. कनाडा में अधिकारियों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी बताया था. |
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