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फिलीस्तीन 128 अमेरिका 9: संयुक्त राष्ट्र ने यरुशलम को इजराइल की राजधानी बनाने के ट्रंप के प्रयास को नकारा

फिलीस्तीन 128 अमेरिका 9: संयुक्त राष्ट्र ने यरुशलम को इजराइल की राजधानी बनाने के ट्रंप के प्रयास को नकारा संयुक्त राष्ट्र: यरुशलम को इजराइल की राजधानी बनाने के फैसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को संयुक्त राष्ट्र से जोरदार झटका लगा है. भारत सहित 100 से अधिक देशों ने गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनी की अवहेलना कर संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राष्ट्र यरुशलम को इजराइल की राजधानी के रुप में अमेरिका द्वारा मान्यता दिये जाने वाले फैसले के खिलाफ वाले प्रस्ताव पर मतदान किया.

बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट करने वाले देशों को अनुदान में कटौती की धमकी दी थी.

संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का कुल 128 देशों ने समर्थन दिया. वहीं 9 देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ में वोट किया और 35 देशों ने अपने आप को इससे अलग रखा. हालांकि, ट्रंप की धमकी का कुछ देशों पर प्रभाव पड़ा. यही वजह है कि कुछ देशों ने अपने आप को इससे अलग रखा.

भले ही वैश्विक मंच पर इस मसले को लेकर अमेरिका अलग-थलग पड़ गया, मगर उसके पश्चिमी और अरब देशों के सहयोगी देशों ने उसके पक्ष में मतदान कर अमेरिका को अकेला पड़ने से बचा लिया. इससे पहले संयुक्त राष्ट्र की 15 सदस्यीय प्रभावशाली संस्था की आपात बैठक में केवल अमेरिकी राजदूत निक्की हैली ने ही यरुशलम पर ट्रंप के फैसले का समर्थन किया था.

193 सदस्यों वाले संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत निकी हेली ने महासभा के प्रस्ताव की आलोचना की. हेली ने कहा कि अमेरिका इस दिन को याद रखेगा जब एक संप्रभु देश के तौर पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने की वजह से संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस पर एकतरफा हमला हुआ.

बता दें कि अमेरिका ने इसी महीने की शुरुआत में अपनी घोषणा में कहा था कि वह यरुशलम को इस्राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देंगे और अमेरिकी दूतावास को यरूशलम में स्थांतरित करेंगे. उनकी घोषणा के बाद लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और इसकी आलोचना भी की जा रही है.

ट्रंप के यरुशलम को इस्राइल की राजधानी की मान्यता देने से तुर्की के राष्ट्रपति का गुस्सा फूट पड़ा था. खुद को फिलस्तीनी मामलों के समाधान की धुरी मानने वाले एर्दोआन ने तभी से इस धारणा का विरोध करना शुरू कर दिया था जब इस बारे में घोषणा भी नहीं की गई थी. उन्होंने ट्रंप की इस घोषणा को 'मुस्लिमों के लिए खतरे की घंटी' बताया है, क्योंकि पूर्वी फिलस्तीनी क्षेत्र के नागरिक इसे अपने देश की भविष्य की राजधानी के तौर पर देखते हैं.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 10 अहम बातें
  1.     ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जर्मनी और स्वीडन ने संयुक्त वक्तव्य में कहा, यरुशलम को इस्राइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने और अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम ले जाने की तैयारियों के अमेरिका के फैसले से हम असहमत हैं.
  2.     इस बयान में कहा गया कि अमेरिका का यह फैसला सुरक्षा परिषद के संकल्पों के अनुरूप नहीं है और क्षेत्र में शांति की संभावनाओं के मद्देनजर भी मददगार नहीं है.'
  3.     उन्होंने कहा कि यरुशलम का दर्जा इस्राइल और फिलस्तीन के बीच बातचीत के जरिये तय किया जाना चाहिए, ताकि उसके दर्जे पर अंतिम समझौता हो सके.
  4.     फ्रांस के स्थायी प्रतिनिधि फ्रांस्वा डेलाट्रे ने आपात बैठक में कहा कि जेरूसलम पर राजनीतिक टकराव धार्मिक टकराव में तब्दील हो सकता है.
  5.     ट्रंप के फैसले का मजबूती से बचाव करते हुए निक्की हैली ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को सूचित किया कि अमेरिका ने यह फैसला अच्छी तरह जानते समझते लिया है कि इससे सवाल और चिंताएं उठेंगी.
  6.     अमेरिका के इस फैसले के विरोध में शुक्रवार शाम को न्यूयॉर्क टाइम्स स्क्वायर पर लगभग 1,000 फिलीस्तीन समर्थकों ने प्रदर्शन भी किया.
  7.     उधर, यरुशलम पर अमेरिका की घोषणा के संबंध में तुर्की के नेता रजब तैयप एर्दोआन मुस्लिम देशों को एक स्वर में अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए एकजुट करने की कोशिश में हैं.
  8.     ट्रंप के यरुशलम को इस्राइल की राजधानी की मान्यता देने से तुर्की के राष्ट्रपति का गुस्सा फूट पड़ा था. खुद को फिलस्तीनी मामलों के समाधान की धुरी मानने वाले एर्दोआन ने तभी से इस धारणा का विरोध करना शुरू कर दिया था जब इस बारे में घोषणा भी नहीं की गई थी.
  9.     उन्होंने ट्रंप की इस घोषणा को 'मुस्लिमों के लिए खतरे की घंटी' बताया है, क्योंकि पूर्वी फिलस्तीनी क्षेत्र के नागरिक इसे अपने देश की भविष्य की राजधानी के तौर पर देखते हैं.
  10.     संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 1980 के एक प्रस्ताव में सदस्य देशों से अपने राजनयिक मिशन यरुशेलम में नहीं खोलने को कहा गया था.
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