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बाबरी विध्वंस के 25 सालः कुछ सवाल, क्या विवादित जगह वाकई मस्जिद थी? क्या सचमुच भगवान राम वहीं पैदा हुए थे?

बाबरी विध्वंस के 25 सालः कुछ सवाल, क्या विवादित जगह वाकई मस्जिद थी? क्या सचमुच भगवान राम वहीं पैदा हुए थे? नई दिल्लीः बाबरी विध्वंस के पच्चीस साल बीत गए. 6 दिसंबर 1992 का दिन जिसने भारत के इतिहास में ऐसा नाम दर्ज किया, जिसे शायद ही कोई भारतीय भूले. तब से लेकर चली आ रही कश्माकश आज भी जारी है. अयोध्या में बाबरी विध्वंस के रूप में काले साए की तरह छाए रहने वाले इस विवाद पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में माथा-पच्ची हुई.

मामले को लेकर कोर्ट में डाली गई कई याचिकाओं पर सुनवाई हुई, लेकिन हल फिर भी नहीं निकला. अब सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों में कमी के कारण सुनवाई की अगली तारीख 8 फरवरी 2018 रखी है. भले ही इसका इतिहास कुछ सालों पुराना माना जाता हो, लेकिन असम में इस विवाद की वजह सैकड़ों साल पुरानी है.

आलम यह है कि अयोध्या हिंदुस्तान की वो नगरी, जो मंदिर-मस्जिद विवाद के साए में तीन चश्मों से देखी जा रही है. इसे लेकर मजहब का नजरिया कुछ और है और सियासत का कुछ और. तीसरा चश्मा अयोध्या के अतीत का है, इसे लेकर ऐतिहासिक दस्तावेजों और आंखों देखी बयान हैं. इस नजरिए से देखें, तो अयोध्या में मंदिर-मस्जिद जैसा विवाद होना ही नहीं चाहिए.

80 के दशक में सरयू नदी के तट पर बसा अयोध्या साल में सिर्फ एक बार सुर्खियों में आता था, जब मानसून के दिनों में नेपाल से भारत आने वाली नदियों में बाढ़ आती थी. या फिर पांच सालों में एक बार, जब चुनाव के दिनों में कम्युनिस्ट पार्टी फैजाबाद और अयोध्या को लाल रंग से रंग देती थी. कई सालों तक फैजाबाद मध्य उत्तर प्रदेश में कम्युनिस्टों का गढ़ बना रहा.

लेकिन यह सब जल्द ही बदलने वाला था. इसकी जड़ें हजारों मील दूर दक्षिण भारत के एक छोटे से गांव में थीं. जनवरी 1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम गांव के 200 दलितों ने जाति भेद के खिलाफ विद्रोह करते हुए इस्लाम कुबूल कर लिया. इसके बाद शुरू हुआ उन घटनाओं का सिलसिला जिनके चलते बाबरी मस्जिद ढहा दी गई.

मीनाक्षीपुरम में दलितों के धर्म परिवर्तन से लेकर मंडल-कमंडल आंदोलन तक की घटनाओं ने भारतीय राजनीति को बुरी तरह प्रभावित किया. इस दशक ने आने वाले कई दशकों के लिए सामाजिक-राजनीतिक तानेबाने को बदलकर रख दिया.

अयोध्या किस साजिश का शिकार हुई कि अमन की नगरी सुलगने लगी? इसे किसने बांट दिया मंदिर और मस्जिद के खेमे में? आम राय तो यही है कि भगवान श्रीराम की नगरी में विवाद का बीज 5 सौ साल पहले मुगल शासक बाबर ने बोया. उसी के शासन में राममंदिर तोड़ा गया और इसकी जगह मस्जिद बनवाई गई. यहीं से नफरत का बीज पनपा और समाज में दो खेमों में बंट गया.

अयोध्या विवाद आजादी के बाद से अब तक न जाने कितने जख्म दे चुका है, हिंदुस्तान की साझी विरासत के खाके को मजहब की दीवार के साथ ऐसे बांट चुका है, कि ऐतिहासिक दस्तावेज भी इसके आगे बेमतलब हो चुके हैं. इनके मुताबिक बात तो ये सामने आती है, कि विवादित मस्जिद तो बाबर ने बनवाया ही नहीं था.

मुगलिया इतिहास की तारीखें ये बताती है कि बाबर मार्च 1526 में हिंदुस्तान आया था. मात्र 12 हजार सैनिकों के साथ उसने पानीपत में दिल्ली के बादशाह इब्राहिम लोदी के साथ जंग लड़ी थी. 20 अप्रैल को इब्राहिम लोदी का कत्ल करने के एक हफ्ते बाद दिल्ली में उसकी ताजपोशी हुई. उसके आयोध्या आने की बात 1528 में की जाती है. राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की बात इसी साल की जाती है, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों की माने तो अयोध्या में राम मंदिर तो बाबर के आने के बाद मौजूद था.

अयोध्या रीविजिटेड के लेखक किशोर कुणाल का कहना है कि 1631 में मंदिर देखा, तुलसीदास ने भी लिखा. इस तरह के प्रमाण है कि 1640 तक मंदिर था.

पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी रह चुके किशोर कुणाल ने 20 साल के शोध के बाद अयोध्या रीविजिटेड नाम की किताब लिखी है. इस किताब में वो ऐसे तमाम तथ्यों को खारिज करते हैं, जिसमें कहा जाता है- बाबर एक आक्रमणकारी के तौर पर अयोध्या आया, यहां एक लाख 74 हजार हिंदुओं का नरसंहार कराया और उनके अराध्य का मंदिर तोड़कर अपने नाम से मस्जिद बनवाई.

इस तथ्य पर एक रोशनी मशहूर कथाकार कमलेश्वर ने भी अपनी किताब कितने पाकिस्तान डाली है. कमलेश्वर के मुताबिक बाबर के आने के साढ़े तीन सौ साल ब्रिटिश गैजेटियर के मुताबिक अयोध्या की आबादी 10 से 12 हजार की थी, तो फिर उसकी सेना ने नरसंहार कैसे किया. बल्कि अयोध्या पर तो हमले की भी कोई जरूरत नहीं थी.

दरअसल ये पूरी साजिश अंग्रेजों की थी. उन्होंने ही मंदिर का पुराना शिलालेख बदला और बाबर की डायरी बाबरनामा के अप्रैल से लेकर सितंबर 1528 तक के पन्ने गायब कर दिए.

हालांकि ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ये मान चुकी है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर के सुबेदार मीर बाकी ताशकंदी ने कराया था. मीर बाकी अयोध्या से चार मील दूर सनेहुआ से सटे ताशकंद गांव का रहने वाला था. उसी ने अयोध्या में मस्जिद बनाने का सुझाव दिया था.

एएसआई के पूर्व निदेशक डॉ. जमाल हसन के मुताबिक बाबर जौनपुर से वापस आ रहा था. अयोध्या में रुका था. मीर ने गुजारिश की, मस्जिद नहीं है, एक होनी चाहिए. तो बाबर ने कहा बनवा लीजिए.

इससे ये साबित नहीं होता कि बाबर ने मस्जिद राम मंदिर तोड़कर बनाई थी. अगर किशोर कुणाल और कमलेश्वर की लिखी किताबों में दिए गए हवालों की माने, तो अयोध्या में मस्जिद बाबर के आने के पहले इब्राहिम लोदी के शासनकाल में ही बन गई थी. इसे लेकर मस्जिद में एक शिलालेख भी था, जिसका जिक्र एक ब्रिटिश अफसर ए फ़्यूहरर ने भी कई जगह किया है.

फ़्यूहरर के मुताबिक वो शिलालेख उन्होंने आखिरी बार 1889 में पढ़ा था, जिसके मुताबिक मस्जिद का निर्माण इब्राहिम लोदी ने 1523 में शुरू कराया था.

अयोध्या की उस मस्जिद का शिलालेख अंग्रेजी राज में बड़ी चालाकी के साथ नष्ट कर दिया गया. शायद ब्रिटिश हुकूमत ये समझ चुकी है कि मजहब को लेकर साझे रुख वाले हिंदुस्तान पर लंबे समय तक राज करना है, तो इन्हें आपस में लड़ाना होगा. अयोध्या के जरिए अंग्रेजों ने हिंदू-मुस्लिम के बीच आपसी एकता को दुश्मनी में बदल दिया.

1857 के सिपाही विद्रोह के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने मजहबी भेदभाव की रणनीति और भी तेज कर दी. इसी नीति के तहत इब्राहिम लोदी की मस्जिद ‘बाबरी मस्जिद’ के नाम से मशहूर की गई.

बहरहाल अयोध्या विवाद की पूरी कहानी तारीखों में

1528: अयोध्या में बाबर ने एक ऐसी जगह मस्जिद का निर्माण कराया जिसे हिंदू राम जन्म भूमि मानते हैं।
1853: हिंदुओं का आरोप- मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। पहला हिंदू-मुस्लिम संघर्ष हुआ।
1859: ब्रिटिश सरकार ने विवादित भूमि को बांटकर आंतरिक और बाहरी परिसर बनाए।
1885: राम के नाम पर इस साल कानूनी लड़ाई शुरू हुई। महंत रघुबर दास ने राम मंदिर निर्माण के लिए इजाजत मांगी।
1949: 23 दिसंबर को लगभग 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल में भगवान राम की मूर्ति रखी।
1950: 16 जनवरी को एक अपील में मूर्ति को विवादित स्थल से हटाने से न्यायिक रोक की मांग।
1950: 5 दिसंबर को मस्जिद को ढांचा नाम दिया गया और राममूर्ति रखने के लिए केस किया।
1959: 17 दिसंबर को निर्मोही अखाड़ा विवाद में कूदा, विवादित स्थल के लिए मुकदमा दायर।
1961: 18 दिसंबर को सुन्नी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मालिकाना हक के लिए केस किया।
1984: विश्व हिंदू परिषद विशाल मंदिर निर्माण और मंदिर के ताले खोलने के लिए अभियान शुरू।
1986: 1 फरवरी फैजावाद जिला अदालत ने विवादित स्थल में हिंदुओं को पूजा की अनुमति दे दी।
1989: जून में भारतीय जनता पार्टी ने मंदिर आंदोलन में वीएचपी का समर्थन किया।
1989: 1 जुलाई को मामले में पांचवा मुकदमा दाखिल हुआ।
1989: नवंबर 9 को बाबरी के नजदीक शिलान्यास की परमीशन दी गई।
1990: 25 सितंबर को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा की। जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे हुए.
1990: नवंबर में आडवाणी गिरफ्तार। भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
1991: अक्टूबर में कल्याण सिंह सरकार ने विवादित क्षेत्र को कब्जे में ले लिया।
1992: 6 दिसंबर को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। एक अस्थाई मंदिर बनाया गया।
1992: 16 दिसंबर को तोड़फोड़ की जांज के लिए एस.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।
2002:  तत्कालीन पीएम अटल बिहारी बाजपेई ने विवाद सुलझाने के लिए अयोध्या विभाग शुरू किया।
2002: अप्रैल में विवादित स्थल पर मालिकाना हक के लिए हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।
2003: मार्च से अगस्त में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद विवादित स्थल पर खुदाई हुई और मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष के प्रमाण मिले।
2003: सितंबर में सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाने का फैसला दिया गया।
2005: जुलाई में विवादित क्षेत्र पर इस्लामिक आतंकवादियों का हमला, पांच आतंकी मारे गए।
2009: जुलाई में पीएम मनमोहन सिंह को को लिब्रहान आयोग ने रिपोर्ट सौंपी।
2010: 28 सितंबर को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की।
2010: 30 सितंबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया।
2017: 21 मार्च सुप्रीम कोर्ट ने मामले में मध्यस्थता की पेशकश की।
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