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'हिन्दी एक हत्यारी भाषा है': डा. दिनेश वैश्य

राजु मिश्रा , Nov 26, 2017, 17:22 pm IST
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'हिन्दी एक हत्यारी भाषा है': डा. दिनेश वैश्य मोरानहाट: हिन्दी एक हत्यारी भाषा है, उत्तर पूर्व भारत के बड़े भाषा असमिया भाषा में हिन्दी समाती जा रही है। यदि सबसे बड़ी असमिया भाषा को हिन्दी निगलता जा रहा है तो अन्य छोटी छोटी भाषाओं पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है पड़ोसी राज्य अरुणाचल में हिन्दी अग्रासन की वजह से वहां की स्थानीय भाषाओं की दुर्दशा को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि राज्य की छोटी छोटी भाषाएं शीघ्र ही विलुप्त हो जाएगी.

उक्त बातें आज टाई अध्ययन और अनुसंधान केन्द्र के सभाकक्ष में आयोजित
 पंन्द्रहवां वार्षिक डा. लीला गोगोई स्मारक वक्तीता में "भाषा संस्कृति की विलुप्ति: प्रसंग उत्तर पुर्व भारत" विषय पर चिंताविद, लेखक, गुवाहाटी बी. बरुवा कालेज के पुर्व अध्यक्ष डा. दिनेश वैश्य ने अपने वकतव्य के दौरान कहीं । आगे उन्होंने कहा कि अंग्रेजी तथा हिन्दी असमिया भाषा के लिए खतरा है.

निजी विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई हो रही है, जिससे असमिया भाषी छात्र भी असमिया भाषा को तबज्जो नहीं दे रहे हैं। हिन्दी कार्यक्रमों का प्रसारण कर हिन्दी टेलीविजन असम तथा उत्तर पुर्व भारत हिन्दी भाषा का विस्तार कर रहे है जिससे बच्चे से लेकर बुढ़े तक असमिया भाषा के बीच हिन्दी का व्यवहार करने लगे हैं।

चालु वर्ष में राज्य सरकार की ब्रह्मपुत्र नदी के पुजन हेतु आयोजित नमामी ब्रह्मपुत्र उत्सव में हिन्दी भाषा और संस्कृति का संम्प्रसारण स्पष्ट दिखता है। भाषा और संस्कृति के प्रचार प्रसार में जब राजनीतिक क्षमता व्यवहार किया जाता है तब छोटी छोटी भाषा और संस्कृति का विनाश तय हो जाता है। अपनी मातृभाषा बोलना तथा उसकी शिक्षा लेना तथा उसका इस्तेमाल करना मनुष्य का अधिकार है।

श्री वैश्य ने कहा कि 2001 के गणना के अनुसार देश में 1,576 जातिय मातृभाषा पाई गई, जिनमें से 122 भाषाओं का व्यवहार करनेवाले लोगों की संख्या दस हजार से अधिक थी। भारतीय संविधान द्वारा स्वीकृत प्राप्त 22 भाषाएँ है, वहीं महज 33 भाषाओं का ही विद्यालय में पाठदान होता है। 

वर्तमान परिस्थितियों में मातृभाषा के सुरक्षा हेतु राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की जरूरत है। यदि सीघ्र ही उत्तर पुर्व भारत के लघु भाषी जनगोष्ठीयों ने अपनी मातृभाषा को बचाने का प्रयास नहीं किया तो लघु भाषाओं की बिलुप्ती निश्चित है।

केन्द्र के अध्यक्ष जीवेश्वर मोहन के संचालन में आयोजित वक्तीता में केन्द्र संचालक डा. गिरिन फुकन अतिथि के रुप में उपस्थित थे।
 केन्द्र के सचिव डा. बिरिंषिं गोगोई द्वारा उदेश्य व्याख्या से प्रारम्भ वक्तीता समारोह के अंत में केन्द्र के विद्यातनिक परिषद के डा. यतीन्द्र नाथ कुवंर एवं वसंत फुकन ने सभी को धन्यवाद प्रेषित किया।
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