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इंदिरा गांधी की 100वीं जयंतीः कृतज्ञ राष्ट्र ने याद किया अपनी अभूतपूर्व प्रधानमंत्री को

जनता जनार्दन संवाददाता , Nov 19, 2017, 21:55 pm IST
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इंदिरा गांधी की 100वीं जयंतीः कृतज्ञ राष्ट्र ने याद किया अपनी अभूतपूर्व प्रधानमंत्री को नई दिल्ली: देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 100वीं जयंती के मौके पर जहां पीएम मोदी ने उन्हें उनकी जन्मशती के मौके पर याद किया वहीं कांग्रेस अध्यक्ष और इंदिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी ने भी उन्हें याद किया. उन्होंने कहा कि इंदिरा जी देश की आयरन लेडी थीं. वहीं पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि इंदिरा गांधी को इतिहास के पन्नों से मिटाया नहीं जा सकता.

सोनिया गांधी ने इस मौके पर एक कार्यक्रम में कहा कि इंदिरा जी निहित स्वार्थों के खिलाफ एक विजन लिए लड़ीं. उन्होंने कहा कि वह धर्मनिरपेक्षता के लिए लड़ीं और उन लोगों के खिलाफ हमेशा खड़ी रहीं जो समाज को धर्म और जाति की लकीरें खींचकर बांट देना चाहते थे

इंदिरा गांधी, भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ फिरोज गांधी से शादी की थी, लेकिन एक वक्त वो भी आया जब इंदिरा दो हिस्सों में बंट गईं. देश आजाद हुआ, पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने. इंदिरा ने पिता के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. लेकिन इसी बीच फिरोज दूर होते चले गए.

15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली थी और पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे. लेकिन इंदिरा दो हिस्सों में बंट गईं थीं. फिरोज गांधी लखनऊ में नेशनल हेराल्ड के मैनेजिंग एडिटर बन गए और इंदिरा भी लखनऊ आ गईं. लेकिन इंदिरा का दिल्ली आना-जाना लगा रहा. इसको लेकर धीरे-धीरे इंदिरा और फिरोज के रिश्तों में कड़वाहट बढ़ने लगी.

1952 के लोकसभा चुनाव में पंडित नेहरू ने फिरोज गांधी को रायबरेली से टिकट दे दिया और फिरोज जीत भी गए. नेहरू चाहते थे कि फिरोज और इंदिरा उन्हीं के साथ रहें. लेकिन फिरोज घरजमाई बनने के लिए राजी नहीं थे. इंदिरा पिता और पति के बीच संतुलन साधती रहीं. बच्चों को फिरोज की पसंद के स्कूलों में डाला गया. इंदिरा अब सक्रिय राजनीति में भी उतर चुकी थीं.

इंदिरा 1959 में वो पहली बार चुनाव लड़कर कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थीं. इंदिरा के लिए ये अग्निपरीक्षा का दौर था. पति उनसे दूर जा चुके थे और अपने ही पार्टी की सरकार को संसद में बार-बार कठघरे में खड़ा कर रहे थे. फिरोज ने इंदिरा से साफ कह दिया था कि पिता या पति में किसी एक को चुन लो. घर के झगड़ों का असर बाहर भी दिखने लगा था.

फिरोज अपने बच्चों राजीव और संजय से भी दूर जा रहे थे. उन्हें दिल का दौरा पड़ चुका था. पति से रिश्ते सुधारने के लिए इंदिरा उन्हें लेकर कश्मीर गईं. पति-पत्नी कश्मीर से लौटे तो लगा कि जिंदगी पटरी पर आ गई है, लेकिन इंदिरा की किस्मत में ये खुशी विधाता ने लिखी नहीं थी. 8 सितंबर 1960 को फिरोज गांधी को तीसरी बार दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया. 43 साल की उम्र में इंदिरा विधवा हो गईं.

इंदिरा के पास विलाप का वक्त नहीं था. अपने पिता और दो बच्चों की जिम्मेदारी उन पर थी. 27 मई 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हो गया. पिता के निधन ने इंदिरा को जैसे पत्थर बना दिया. वो गहरे सदमे में थीं.

नए-नए प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें समझाया और अपनी कैबिनेट में इंदिरा को सूचना प्रसारण मंत्री बनाया. 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया. गुलजारीलाल नंदा कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने लेकिन उस वक्त के कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज ने पार्टी में विरोध के बावजूद इंदिरा का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए आगे कर दिया. 24 जनवरी 1966 को इंदिरा देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं.
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