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झारखंड राज्य स्थापना दिवस पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द रांची में, कई कार्यक्रमों में भाग लिया

झारखंड राज्य स्थापना दिवस पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द रांची में, कई कार्यक्रमों में भाग लिया रांचीः भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द आज झारखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर रांची पहुंचे. इस मौके पर राष्ट्रपति का सम्बोधन.


1.    राष्ट्रपति के रूप में झारखंड की अपनी पहली यात्रा में मुझे ‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर उनकी जयंती के दिन श्रद्धा सुमन अर्पित करने का और झारखंड राज्य के स्थापना दिवस में भाग लेने का सुअवसर मिला है, यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात है। मैं झारखंड के 3 करोड़ 30 लाख लोगों को राज्य के स्थापना की सत्रहवीं वर्षगांठ की हार्दिक बधाई देता हूँ। झारखंड के विकास में नई ऊर्जा, और यहां उपस्थित लोगों के उत्साह को देखकर झारखंड राज्य की स्थापना का निर्णय लेने वाले दूरदर्शी पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रति मैं सम्मान और धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।
2.    इस अवसर पर जनहित में उपयोगी, बीपीएल परिवारों के लिए ‘जोहार आजीविका योजना’, ‘स्वास्थ्य बीमा योजना’, ‘ऐम्बुलेंस योजना’, और road-infrastructure के विकास की योजनाओं का आरंभ करके मुझे बहुत खुशी हुई है। सामान्य जनता के कल्याण तथा राज्य के विकास के विभिन्न कार्यक्रमों के लाभार्थियों को परिसंपत्तियाँ देकर मुझे बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा  है।
3.    भगवान बिरसा मुंडा, वीर सिदो–कान्हू, चाँद-भैरव, तिलका मांझी, नीलाम्बर-पीताम्बर जैसे अनेक वीर सपूतों ने अपने त्याग एवं बलिदान से झारखंड की धरती को सींचा है। इन विभूतियों ने समानता और न्याय पर आधारित समाज के सपने को साकार करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।
4.    आज भगवान बिरसा मुंडा की एक सौ बयालीसवीं जयंती है। केवल पच्चीस  वर्ष की आयु में उनकी शहादत हुई थी। हम सभी का फर्ज बनता है कि ऐसे महान सपूत को हमेशा याद रखें और उनके उद्देश्यों को पाने के लिए, इस जनजाति बहुल प्रदेश में, आदिवासी भाई बहनों की खुशहाली के लिए, अपने प्रयासों को जारी रखें।  मुझे ज्ञात हुआ है कि झारखंड सरकार ‘शहीद ग्राम विकास योजना’ के अंतर्गत झारखंड के वीर शहीदों के गांवों का समग्र विकास कर रही है। यह एक सराहनीय पहल है।  
5.    झारखंड का क्षेत्र अनेक शूरवीरों और प्रतिभाओं की जन्मभूमि या कर्मभूमि रहा है। 1971 के युद्ध में भारत माता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले परमवीर चक्र विजेता शहीद एल्बर्ट एक्का इसी क्षेत्र की विभूति थे। 1928 ओलंपिक में, भारत को हॉकी में स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम के कप्तान जयपाल सिंह मुंडा, संविधान सभा के सदस्य भी रहे और आजादी के बाद आदिवासी समुदाय के हितों की बात उठाने वाले सक्रिय सांसद रहे।
6.    इस क्षेत्र ने हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट, कबड्डी, तीरंदाजी, मुक्केबाज़ी और पर्वतारोहण आदि खेलों में बहुत से प्रतिभाशाली खिलाड़ी दिये हैं। महेंद्र सिंह धोनी की क्षमता का भी यहीं विकास हुआ। तीरंदाजी में विश्व में नंबर एक स्थान पर रह चुकी, कॉमन वैल्थ खेलों की स्वर्ण पदक विजेता, झारखंड की बेटी दीपिका कुमारी ने राज्य का और पूरे देश का सम्मान बढ़ाया है। झारखंड में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के ऐसे अनेक उदाहरण हैं, लेकिन मैंने कुछ नामों का ही उल्लेख किया है। यहां के बच्चों में इतनी प्रतिभा है कि समुचित सुविधाएं मिलने पर वे अनेक खेल प्रतियोगिताओं में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर झारखंड और भारत का सम्मान बढ़ा सकते हैं।
7.    झारखंड की भूमि प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रही है। देवघर वैद्यनाथ धाम में ज्योतिर्लिंग, दुमका में बासुकिनाथ धाम, गिरीडीह में जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की तपोभूमि और रामगढ़ में छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ आदि तीर्थ स्थान झारखंड को पवित्र भूमि का दर्जा देते हैं। दुमका जिले में 108 टेराकोटा मंदिरों का मलूटी गाँव, झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर है। इन ऐतिहासिक मंदिरों पर आज डाक टिकट जारी करना मेरे लिए सुखद अनुभव  है।   
8.    झारखंड को प्रकृति ने भरपूर वरदान दिये हैं। देश की 40 प्रतिशत खनिज सम्पदा झारखंड में है। अतः यहां उद्योग और व्यापार की अपार संभावनाएं  हैं। इस खनिज संपदा के कारण ही आधुनिक भारत का पहला बड़ा स्टील प्लांट इसी क्षेत्र में जमशेद जी टाटा ने लगाया था। झारखंड में पर्यटन, उद्योग और कृषि के विकास की प्रचुर संभावना है। यहाँ के लोग स्वभाव से सहज, सरल एवं मेहनतकश हैं।
9.    मुझे खुशी है कि झारखंड राज्य अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन कर रहा है।  विकास-वृद्धि-दर के पैमाने पर झारखंड देश में दूसरे स्थान पर है तथा श्रम सुधारों के क्षेत्र में पिछले दो वर्षों से लगातार देश में प्रथम स्थान पर बना हुआ है। वर्ष 2014 में ‘Ease of Doing  Business’ के पैमाने पर बहुत नीचे की पायदान पर स्थान पाने वाला झारखंड अब ऊपर के राज्यों में गिना जाता है।
10.    राज्य सरकार द्वारा आयोजित ‘मोमेंटम झारखंड’ कार्यक्रम के परिणामस्वरूप  शुरू हुए उद्योगों की सफलता से राज्य के विकास को और अधिक गति मिलेगी।
11.    मुझे यह जानकार प्रसन्नता हुई है कि झारखंड के विकास में महिलाएं अहम भूमिका निभा रही हैं। राज्य के 32 हजार गाँव में ‘उद्यमी सखी मण्डल’ का गठन कर राज्य की 4 लाख 80 हजार महिलाओं को इससे जोड़ा जा रहा है। मैं आशा करता हूँ कि ये हुनरमंद महिलाएं कपड़ा, कंबल, परदे आदि घरेलू उद्यम के माध्यम से आने वाले दिनों में ग्रामीण झारखंड को एक नया रूप देंगी।  
12.    झारखंड की महिलाएं अब मात्र एक रुपया शुल्क देकर 50 लाख तक की भूमि या मकान की रजिस्ट्री करा सकती हैं। उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन के साथ चूल्हा भी नि:शुल्क दिया जा रहा है। यह खुशी की बात है कि इस योजना के तहत आठ लाख महिलाएं लाभान्वित हो चुकी हैं। सम्पूर्ण विकास के लिए महिलाओं और बच्चों के कुपोषण और मातृ एवं शिशु मृत्युदर पर नियंत्रण पाना राज्य की प्राथमिकता है।  
13.    झारखंड में आज से बी॰पी॰एल॰ परिवारों के लिए आजीविका पर आधारित पंद्रह सौ करोड़ की जोहार योजना की शुरुआत हुई है। इस योजना से आने वाले वर्षों में झारखंड के दो लाख परिवारों को आजीविका मिल सकेगी।
14.    झारखंड सरकार ने सन 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने का लक्ष्य रखा है। मुझे आशा है कि इस दिशा में हर संभव प्रयास किया जायेगा। आज इस अवसर पर स्वास्थ्य बीमा योजना का शुभारंभ भी हुआ है। इससे राज्य के लगभग 80 प्रतिशत परिवारों के लाभान्वित होने की संभावना है। राज्य के सभी नागरिकों को मुफ्त आपातकालीन चिकित्सीय वाहन सेवा उपलब्ध कराने की योजना सराहनीय है। शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों का समावेश करने की दिशा में e-विद्यावाहिनी योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के दूरगामी लाभ होंगे।
15.    झारखंड के कई जिलों में स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा के क्षेत्रों में रामकृष्ण मिशन ने बहुत काम किया है और बड़ी तादाद में लोग लाभान्वित हुए हैं। मिशन के अनुभवों से स्थानीय कार्यक्रमों को और प्रभावी बनाया जा सकता है।   
16.    मैं, एक बार फिर, झारखंड के सभी निवासियों को स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई देता हूँ। आज इस ऐतिहासिक अवसर पर हम सब मिलकर एक ऐसे राष्ट्र एवं राज्य के निर्माण का संकल्प लें जहां बिरसा मुंडा के सपनों के समाज में सभी लोग बराबरी और खुशहाली का अनुभव करें।

धन्यवाद
जय हिन्द!

इस कार्यक्रम के अलावा राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने परमहंस योगानन्द की पुस्तक God Talks with Arjuna - The Bhagavad Gita के हिन्दी अनुवाद का भी विमोचन किया. इस अवसर पर राष्ट्रपति सम्बोधन का संबोधन

1.    योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया' के द्वारा पूरे विश्व में निरंतर योगदान के सौ वर्ष पूरे होने पर मैं इस सोसाइटी, और परमहंस योगानन्द के विचारों से, जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को बधाई देता हूँ। इन सौ वर्षों में योगदा सत्संग सोसाइटी ने पूरे विश्व में भारत के योग विज्ञान को प्रसारित करने में सराहनीय योगदान दिया है। इस शताब्दी वर्ष में, गीता पर परमहंस जी की टीका के हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन समयानुकूल है और उपयोगी भी। सन 1995 में मूल अँग्रेजी टीका का प्रकाशन हुआ था। अब तक स्पैनिश, जर्मन, इटालियन और पुर्तगाली भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध थे। आज इस हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन द्वारा एक बहुत बड़े पाठक वर्ग के लिए इस पुस्तक में निहित जीवनोपयोगी ज्ञान सुलभ हो गया है। इस अनुवाद के लिए स्वामी नित्यानन्द जी प्रशंसा के पात्र हैं।
2.    मैं मानता हूँ कि अध्यात्म हमारे देश की आत्मा है जो पूरे विश्व के लिए भारत की एक महत्वपूर्ण देन है। विश्वस्तर पर भारत के अध्यात्म को सम्मानित और लोकप्रिय बनाने का मार्ग स्वामी विवेकानंद और परमहंस योगानन्द ने प्रशस्त किया था। एक रोचक ऐतिहासिक संयोग से, वर्ष 1893 में स्वामी विवेकानंद के शिकागो सम्बोधन ने भारतीय अध्यात्म के बारे में पश्चिम में जागृति की एक नई लहर पैदा की थी, और इसी वर्ष गोरखपुर में परमहंस योगानन्द का मुकुन्द लाल घोष के नाम से अवतरण हुआ था।
3.    यह जानकारी मुझे अभिभूत करती है कि 1918 से 1920 तक रांची के इसी आश्रम को परमहंस योगानन्द ने अपनी कर्म-स्थली बनाया था। उसके बाद अगले बत्तीस वर्षों तक वे 'Self Realisation Fellowship' के माध्यम से अमेरिका में लाखों लोगों को क्रिया योग की शिक्षा से लाभान्वित करते रहे। इस दौरान, सन 1935 में जब वे भारत आए तब भी उन्होने इस आश्रम को अपनी उपस्थिति से पवित्र किया था। महात्मा गांधी भी सन 1925 में इस आश्रम में आए थे। यहाँ आना मेरे लिए बहुत खुशी की बात है।
4.    परमहंस योगानन्द का संदेश अध्यात्म का संदेश है। वह धर्म से परे, सभी धर्मों का सम्मान करने का, विश्व-बंधुत्व का नज़रिया है। वे मानते थे कि जिस तरह रोशनी, हवा और पानी सबके लिए हैं, उसी तरह ऋषि-मुनियों द्वारा विकसित किया गया भारत का योग-विज्ञान भी पूरी मानवता के लिए है। गीता में भारत का यही योग शास्त्र श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद के रूप में समझाया गया है।
5.    अपनी टीका में परमहंस योगानन्द ने गीता के मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष को स्पष्ट करते हुए मार्गदर्शन प्रदान किया है। हर मनुष्य के अंदर चलने वाले युद्ध को उन्होने गीता का विषय माना है।
6.    परमहंस योगानन्द के अनुसार गीता दैनिक जीवन के लिए एक पाठ्य-पुस्तक भी है। वे कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को कुरुक्षेत्र की अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी है और इसे जीतना भी है। "सही क्या है और गलत क्या है? क्या करें और क्या न करें?" यह अंतर्द्वंद्व सबको परेशान करता है। ऐसे दोराहों पर निर्णय लेने में विद्वत्ता की नहीं बल्कि विवेक की आवश्यकता होती है। सही और गलत के बीच चुनाव करने का यह विवेक गीता में मिलता है।
7.    गीता पर अपनी टीका को परमहंस योगानन्द 'आत्म-साक्षात्कार का राजयोग विज्ञान' कहते हैं। वे आत्म-साक्षात्कार को गीता का उद्देश्य मानते हैं तथा राजयोग इस उद्देश्य को प्राप्त करने की पद्धति है। यहाँ बैठे अधिकांश लोग योग की विभिन्न पद्धतियों से परिचित हैं। स्वामी विवेकानंद और परमहंस योगानन्द ने राजयोग पर विशेष ज़ोर दिया था। राजयोग की वैज्ञानिकता के कारण पश्चिम के लोगों पर इसका अधिक प्रभाव पड़ा। आज की युवा पीढ़ी के लिए भी राजयोग अधिक उपयुक्त लगता है।
8.    मेरा यह मानना है कि जो व्यक्ति गीता को अपने आचरण में ढालेगा वह झंझावात में भी, स्थिर रहेगा, शांत रहेगा और सक्रिय रहेगा।  प्रायः लोग सफलता-असफलता तथा जय-पराजय के चश्मे से सब कुछ देखते हैं। इस संदर्भ में गीता का कालजयी संदेश उसके अंतिम श्लोक में देखा जा सकता है:
यत्र योगेश्वरो कृष्ण:, यत्र पार्थो धनुर्धर:I
तत्र श्री: विजयो भूति:, ध्रुवा नीति: मति: ममI

इस श्लोक का भाव है कि जहां योगेश्वर कृष्ण और धनुर्धर अर्जुन हैं, वहीं विजय भी सुनिश्चित है। इसका अर्थ यह है कि योग और दक्षता का समन्वय, तथा अध्यात्म तथा कौशल का समन्वय, विजय को सुनिश्चित करता है। गीता का अमर और जीवंत संदेश परमहंस योगानन्द की टीका के माध्यम से बहुत लोगों तक पहुंचता है।
9.    Materialism और competition से घिरी, आज की युवा पीढ़ी पर भी परमहंस योगानन्द का गहरा प्रभाव है। कड़े संघर्ष के बीच विश्वस्तरीय सफलता और समृद्धि हासिल करने वाले नवयुवक उनकी पुस्तक 'Autobiography of a Yogi’ को अपनी सफलता का श्रेय देते हैं। यह पुस्तक उन्हे जीवन में आगे बढ़ने का सही रास्ता दिखाती है। सत्तर साल पहले प्रकाशित और लगभग 45 भाषाओं में अनुवादित यह पुस्तक, जिसे दुनिया के लगभग 90% लोग अपनी भाषा में पढ़ सकते हैं, आज भी उतनी ही लोकप्रिय है।
10.    मैं योगदा सत्संग के आश्रमों और ध्यान-केन्द्रों द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदाओं से आहत लोगों की सहायता, अनाथ बच्चों के लालन-पालन और कुष्ठ रोगियों की सेवा आदि क्षेत्रों में योगदान की सराहना करता हूँ।
11.     मैं आशा करता हूँ कि हिन्दी में उपलब्ध परमहंस योगानन्द की गीता की टीका से लाखों करोड़ों लोग अपने जीवन को बेहतर बनाने का रास्ता जान पाएंगे, अपने आप को समझ पाएंगे।
12.    मुझे पूरा विश्वास है कि योगदा सत्संग सोसाइटी अध्यात्म का प्रसार और मानवता की सेवा करते हुए परमहंस योगानन्द के विश्व कल्याण के अभियान को इसी प्रकार आगे बढ़ाती रहेगी।
धन्यवाद
जय हिन्द!
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