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और इस तरह सत्ता के सर्वोच्च शिखर से पूरी तरह बाहर हुई कांग्रेस

जनता जनार्दन डेस्क , Aug 06, 2017, 15:20 pm IST
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और इस तरह सत्ता के सर्वोच्च शिखर से पूरी तरह बाहर हुई कांग्रेस नई दिल्लीः देश में पहली बार ऐसा हुआ है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पद पर भगवा राजनीति से जुड़े लोग काबिज हैं. उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार एम वेंकैया नायडू की जीत भले ही पहले से तय थी, लेकिन नतीजे आने के बाद भारतीय राजनीति के समीकरणों में बड़ा बदलाव हुआ है.

अब उक्त पदों के साथ लोकसभा और राज्यसभा, दोनों ही सदनों के अध्यक्ष के रूप में भाजपा के लोग बैठे हैं. विपक्ष के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी की हार के साथ ही देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की पकड़ से केंद्रीय सत्ता पूरी तरह छूट चुकी है। देश पर एक दशक तक यूपीए के शासन के दौरान कांग्रेस को हासिल सियासी ताकत अब ढलान की ओर है. वहीं, इस जीत के साथ भाजपा ने कामयाबी के नए कीर्तिमान गढ़े हैं. कोई शक नहीं कि आने वाले वक्त में पार्टी की देश की सत्ता पर पकड़ और मजबूत होने वाली है.

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, अब दोनों पदों पर भाजपा की ओर से नामांकित नेता हैं. इन पदों पर 10 सालों तक कांग्रेस की ओर से नामांकित नेता आसीन रहे हैं. वहीं, पीएम समेत अब देश के तीन शीर्ष पदों पर कांग्रेस का कोई नेता नहीं है. उपराष्ट्रपति चुनाव में हार के साथ ही अब आखिरी मजबूत गढ़ में भी कांग्रेस की हालत पतली हो गई है.

दरअसल, अभी तक विपक्ष अपने संख्याबल की वजह से केंद्र सरकार को उच्च सदन में मजबूत चुनौती देता रहा था. कभी यहां कई अहम बिलों को पास कराने के मामले में सरकार को नाकों चने चबाने पड़े थे.

भाजपा नेताओं का कहना है कि नायडू के राज्यसभा के सभापति बनने से भले ही संख्याबल सरकार के पक्ष में न हो, लेकिन इसके बावजूद वहां के हालात को तो नियंत्रित किया ही जा सकता है. इसकी वजह यह है कि नायडू काफी अनुभवी हैं, जिससे उन्हें विपक्ष को साधने में ही मदद नहीं मिलेगी, बल्कि वह भाजपा के सदन से गायब रहने वाले सांसदों को भी काबू में रख पाएंगे. नायडू को यह पद देने का फायदा दक्षिण भारत में भाजपा के पांव पसारने के रूप में मिलेगा.

राज्यसभा में अभी तक सत्ता और विपक्ष के बीच चूहे-बिल्ली का खेल होता रहा है. उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है. अब इस कुर्सी पर भाजपा की ओर से नामांकित शख्स के बैठने के बाद कांग्रेस की चिंता तो यही है कि अब शायद उसे राज्यसभा में ज्यादा 'अनुकूल' स्थितियां न मिलें. ऐसे में विपक्ष को अपनी उस रणनीति पर दोबारा से विचार करना होगा, जिसका इस्तेमाल बीते तीन साल से वह सरकार को घेरने के लिए करती आई है.

नायडू के उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद पहली बार देश में टॉप चार पदों पर भाजपा या आरएसएस से जुड़े नेता काबिज होंगे. पहली बार देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर एक ही दल से हैं. हालांकि, नायडू के उपराष्ट्रपति बनने से संख्याबल पर भले कोई असर न हो, लेकिन इससे पार्टी न सिर्फ राज्यसभा में और मजबूत होगी, बल्कि भाजपा नेताओं का हौसला और रुतबा काफी बढ़ जाएगा. इसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव पर ही नहीं, बल्कि मिशन 2019 पर भी नजर आएगा.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि इससे पहले जब भी संयुक्त सरकारें बनी हैं, तब कुछ पद सहयोगी दलों को दिए जाते रहे हैं. हालांकि, इस बार मोदी-शाह की जोड़ी ने जानबूझकर सभी पद भाजपा नेताओं को देकर पार्टी का मनोबल और उंचा करने और विपक्ष का हौसला तोड़ने का काम किया है.

उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का आने वाले विधानसभा चुनाव पर भी असर पड़ेगा. पार्टी यह मान रही है कि जिस तरह से यूपी और उत्तराखंड के नतीजों ने दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा की राह आसान की, वैसे ही उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद अब हिमाचल प्रदेश, गुजरात और फिर कर्नाटक में भी भाजपा को बहुमत मिलने में कोई अड़चन नहीं आएगी. अगर इन विधानसभाओं के नतीजे भाजपा के मनमुताबिक रहे तो इसका सीधा संकेत जाएगा कि मोदी-शाह के नेतृत्व में पार्टी अजेय है. इससे 2019 के चुनाव के नतीजे भी चुनाव से पहले तय होते नजर आएंगे.
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