बिहार का महानाटकः महागठबंधन छोड़ अब फिर से एनडीए के मुख्यमंत्री बने नीतीश

जनता जनार्दन संवाददाता , Jul 27, 2017, 7:46 am IST
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बिहार का महानाटकः महागठबंधन छोड़ अब फिर से एनडीए के मुख्यमंत्री बने नीतीश पटनाः नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के एक दिन के भीतर भाजपा का साथ ले फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिराजमान हैं. वह कहते हैं कि यह उनकी अंतरात्मा की आवाज़ है. पर राज्य की जनता की नजर में मौकापरस्ती भी.

नीतीश कुमार के इस्तीफे के 3 घंटे के अंदर ही भाजपा ने उन्हें नई सरकार बनाने के लिए समर्थन देने की घोषणा कर दी और राज्यपाल को इससे संबंधित पत्र भी सौंप दिया.

भाजपा विधानमंडल दल के नेता सुशील कुमार मोदी ने बताया कि भाजपा राज्य में राजनीतिक अस्थिरता नहीं चाहती है इसलिए उसने नीतीश को समर्थन देने का फैसला लिया है. इस बीच नीतीश के इस्तीफा देने के एक घंटे के बाद ही मुख्यमंत्री आवास में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के विधायक दल की बैठक हुई जिसमें उन्हें फिर से विधिवत नेता चुन लिया गया.

नीतीश के गठबंधन से अलग होने के बाद राजद और कांग्रेस सकते में आ गई थीं लेकिन जब भाजपा ने नीतीश को समर्थन देकर सरकार बनाने की खबरें फैलने लगी. ठीक उसी वक्त राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने ये कहकर सबको चौंका दिया कि वे भी राज्यपाल से मिलकर सुबह 10 बजे सरकार बनाने का दावा करेंगे. तेजस्वी यादव ने कहा कि वह भी अपने विधायकों के साथ राजभवन में जाएंगे अगर राज्यपाल ने उन्हें नहीं बुलाया तो वह धरना देंगे. तेजस्वी ने बाकायदा प्रेस मीटिंग करके इसकी घोषणा की.

नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण के समय में देर रात बड़ा बदलाव हुआ. छठी बार सीएम पद की शपथ लेने जा रहे नीतीश का शपथ ग्रहण अब शाम पांच बजे के बजाए सुबह 10 बजे होगा. बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय ने कहा कि सुबह सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सुशील मोदी का शपथ ग्रहण होगा, बाकी मंत्रीमंडल के शपथ ग्रहण को लेकर बाद में जानकारी दी जाएगी. शपथग्रहण के समय में इस बदलाव को इसलिए अहम माना जा रहा है क्योंकि राज्यपाल ने आरजेडी को मुलाकात के लिए सुबह 11 बजे का टाइम दिया है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए’ नीतीश की प्रशंसा करते हुए कहा कि पूरा देश उनकी ईमानदारी का समर्थन करता है. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, "भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए नीतीश कुमार को बधाई. सवा सौ करोड़ लोग उनकी ईमानदारी का स्वागत और समर्थन करते हैं."

मोदी ने कहा, "देश और खासकर बिहार के उज्ज्वल भविष्य के लिए समय की जरूरत है कि राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठें तथा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल हों."

नीतीश कुमार ने कहा कि हमने अपनी राजनीति से कभी समझौता नहीं किया. मेरे मन में बहुत दिनों से यह बात चल रही थी कि कोई रास्ता निकल जाए. राहुल से भी हमारी बात हुई. बिहार कांग्रेस के नेताओं से भी बात हुई. उनकी तरफ से कहा गया कि यह संकट है मगर आरोप पर अगर कुछ स्पष्ट कर देते तो हमें भी कोई आधार मिलता मगर इतने दिनों बाद भी उनकी तरफ से कुछ नहीं बोला गया.

मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार गुरुवार सुबह 10 बजे शपथ ले सकते हैं. महागठबंधन सरकार से इस्तीफा देने के बाद एनडीए सरकार के मुखिया के रूप में नीतीश कुमार राज्य में छठी बार सीएम पद की शपथ लेंगे. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार नीतीश सरकार का शपथ ग्रहण राजभवन में ही होगा.

इस नई सरकार में भाजपा विधानमंडल दल के नेता सुशील कुमार मोदी राज्य के नए उप मुख्यमंत्री होंगे. इसके अलावा भाजपा कोटे से दर्जन भर से अधिक विधायकों को भी सरकार में शामिल होने का मौका मिलेगा. समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शामिल होने की चर्चा है. हालांकि इसकी पुष्टि भाजपा के किसी नेता ने नहीं की.

बिहार के सीएम नीतीश कुमार के इस्तीफे से बौखलाए राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने उनको आड़े हाथों लेते हुए उन पर आरोपों की बौछार कर दी. उन्होंने नीतीश पर बात से पलटने का आरोप लगाते हुए एक बार फिर अपने बेटे और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर लगे आरोपों को निराधार बताया।लालू ने कहा कि तेजस्वी यादव पर लगे सभी आरोप निराधार हैं.

उन्होंने दावा किया कि नीतीश पर मर्डर केस का आरोप है. उन्होंने चुनाव आयोग को दिए अपने हलफनामे में इस बात को स्वीकार किया है कि उनके ऊपर आई.पी.सी. की धारा 302, 310, 307 का केस चल रहा है. 302 में फांसी या उम्रकैद की सजा होती है. अत्याचार का केस कथित भ्रष्टाचार से बड़ा होता है इसलिए उनकी जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस्तीफे का नाटक पहले से ही सैट था. लालू ने कहा कि नीतीश ने कोई इस्तीफा नहीं मांगा था मगर वह अपनी बात से पलट गए. उन्होंने कहा कि वह मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन भाजपा में नहीं जाएंगे.
 
सच तो यह है कि यह बिहार का दुर्भाग्य है कि वहां मौकापरस्तों की सरकार बनती भी रही और चलती भी रही. लालू प्रसाद यादव के साथ जब नीतीश ने सरकार बनाई थी, तब भी उन्हें उनकी सचाई पता थी और आज भी. पर इस नाटक में छले वे लोग गए, जिन्होंने उन्हें महागठबंधन के नाम पर वोट दिया.

इस्तीफा देने के बाद नीतीश ने कहा कि उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा था और सार्वजनिक जीवन में जब आरोप लगें तो उनका जवाब देना ही पड़ता है. उनका इशारा राज्य के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की ओर था जिनपर हाल के दिनों में कुछ अनियमितताओं के मामले सामने आए हैं.

अनियमितताओं के ये मामले आज नीतीश का हथियार भी हैं और मजबूरी भी. मजबूरी इसलिए क्योंकि इसी के चलते उन्हें महागठबंधन को ताक पर रखना पड़ा और अपनी राजनीति के मूल सिद्धांतों की दुहाई देते हुए मुख्यमंत्री पद त्यागना पड़ा. हथियार इसलिए क्योंकि नीतीश इसी इस्तीफे के दम पर कई और चीज़ें जीत भी रहे हैं.

पहला प्रत्यक्ष लाभ यह है कि सत्ता नीतीश से दूर नहीं हुई है. सत्ता में बने रहने की स्थिति को नीतीश कुमार ने और मजबूत कर लिया है. उनके नैतिक फैसले ने उनकी साख और संभावना दोनों को मजबूत किया है. नीतीश को समर्थन देना अब भाजपा के लिए पहले से और आसान हो गया है. हालांकि भाजपा ने पहले ही कह दिया था कि वो नीतीश को समर्थन देने को तैयार हैं.

दरअसल नीतीश की जड़ और पकड़ मज़बूत हुई हैं. वो इस एक वार से लालू प्रसाद यादव और राजद पर लग रहे आरोपों से भी पाक-साफ बच निकले और यह भी साबित कर दिया कि भले ही लालू प्रसाद के पास संख्या ज़्यादा हो, राजनीति में पलड़ा उनका ही भारी है.

2015 में नीतीश को लालू की ज़रूरत थी लेकिन आज नीतीश के लिए लालू एक बोझ हैं और इस इस्तीफे से नीतीश कुमार ने वो बोझ अपने कंधों से उतारकर लालू के सामने रख दिया है.

लालू अब नीतीश को महागठबंधन और धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देते रहें लेकिन इससे नीतीश की राजनीति और पैंतरे में कोई तब्दीली की गुंजाइश नहीं है. नीतीश को पता है कि आगे का रास्ता कैसे तय करना है और सबकुछ एक तय पटकथा की तरह आगे बढ़ रहा है.

नीतीश कुमार ने दरअसल महागठबंधन को ही नहीं, यूपीए को भी लात मारी है. नीतीश कुमार बार-बार ये संकेत देते रहे कि वो विपक्ष के नेता हैं. ऐसे नेता हैं जिसमें खुद निर्णय लेने की सलाहियत है और वो किसी भी तरह से कांग्रेस के नेतृत्व वाली कथित विपक्षी एकता को स्वीकारने के लिए बाध्य नहीं हैं.

नीतीश ने ऐसा बार-बार साबित किया. तब, जबकि विपक्ष नोटबंदी के खिलाफ एक सुर से विरोध प्रकट कर रहा था. इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव में भी नीतीश ने यूपीए के चेहरे को नकारा और भाजपा के प्रत्याशी को अपने समर्थन की घोषणा की.

दरअसल, नीतीश अपने को कांग्रेस के अधीन नहीं, कांग्रेस के समकक्ष दिखाना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि उनकी छवि अभी भी यूपीए में विपक्ष खोजते नेता तक सीमित न रहे. नीतीश इस दांव के बाद कांग्रेस के पीछे नहीं, कांग्रेस के बराबर खड़े हो गए हैं.
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