मिथिला में 700 साल पुरानी जोड़ी मिलान प्रथा कायम
जनता जनार्दन डेस्क ,
Jun 19, 2017, 15:03 pm IST
Keywords: Matchmaking festival Saurath Sabha Hindu calendar Jyestha-Aasadh June-end Brahmin families Mithilalok Foundation Mithilalok Chairman Birbal Jha Mithilalok हिंदू पंचांग जोड़ी मिलान महोत्सव ब्राह्मण परिवार साथी की तलाश सामुदायिक रजिस्ट्रार मिथिलालोक फाउंडेशन डॉ. बीरबल झा
मधुबनी: कहते हैं जोड़ी स्वर्ग से बनकर आती है, लेकिन उत्तर बिहार यानी मिथिला क्षेत्र के मधुबनी जिले के सौराठ गांव में बड़ी संख्या में विवाह योग्य युवक-युवतियों की जोड़ी मिलान कर शादी कराई जाती है।
सौराठ में हिंदू पंचांग के मुताबिक, ज्येष्ठ-आषाढ़ महीने के बीच (जून के अंत) में हर साल जोड़ी मिलान महोत्सव (सभा) आयोजित होता है, जहां बड़ी संख्या में ब्राह्मण परिवार के बड़े-बुजुर्ग अपने विवाह योग्य लड़के-लड़कियों के लिए उपयुक्त साथी की तलाश में आते हैं। इस 700 साल पुराने महोत्सव में भावी वर-वधू के माता-पिता व रिश्तेदार एकत्र होते हैं और सामुदायिक रजिस्ट्रार (पंजीकार) द्वारा वंशावली रिकॉर्डो (पंजी) की जांच करने की एक व्यापक प्रणाली के बाद विवाह तय कर देते हैं। जांच इस बात की होती है कि सात पीढ़ियों तक दोनों परिवारों के बीच कोई वैवाहिक संबंध पहले से तो नहीं है। अगर पहले का कोई रक्त-संबंध निकल आया, तो उसे ‘अधिकार ठहरना’ कहते हैं। भागदौड़ भरी आधुनिक जीवन-शैली के परिप्रेक्ष्य में हालांकि सैकड़ों साल पुरानी यह परंपरा अपनी रौनक खोती जा रही है, क्योंकि लोग अपने घरों से दूर जा रहे हैं और प्रथा को भी भूलते जा रहे हैं। अब एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन मिथिलालोक फाउंडेशन ने 25 जून को इसी प्रकार के एक महोत्सव का आयोजन कर सौराठ सभा की परंपरा को फिर से जीवंत करने का बीड़ा उठाया है, इसमें मिथिला क्षेत्र के विभिन्न जगहों से करीब 20,000 लोगों के शामिल होने की संभावना है। मिथिलालोक के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने आईएएनएस को बताया, “सौराठ में यह आयोजन न सिर्फ मैथिल युवाओं की शादी तय करने, बल्कि महत्वपूर्ण स्थानीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सामाजिक सांस्कृतिक मंच उपलब्ध कराने के कारण प्रसिद्ध हुआ करता था।” उन्होंने बताया, “दो दशक पहले तक सौराठ सभा गाछी (बाग) में देशभर से 100,000 से ज्यादा लोग पहुंचते थे, लेकिन यह रिवाज धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। हम विवाह तय होने में सुविधा के लिए इस दिलचस्प व महत्वपूर्ण पंरपरा को फिर से जीवंत करना चाहते हैं।” झा ने कहा कि इस कार्यक्रम में दुनियाभर से मैथिल ब्राह्मण एकत्रित होंगे और अपनी जड़ों से जुड़े रहने का संकल्प लेंगे। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम से इतर एक बौद्धिक व्याख्यानमाला भी आयोजित की जाएगी। सौराठ गांव का मूल नाम सौराष्ठ था, जिसका मतलब सौ-राष्ट्रों का सांस्कृतिक व बौद्धिक केंद्र है। ये सौ राष्ट्र प्रचीन काल में मिथिला के राजा जनक के साथ जुड़े राष्ट्र हो सकते हैं। झा के मुताबिक, राजा जनक की पुत्री सीता का स्वंयवर यहीं आयोजित हुआ था, जिसके बाद सौराठ सभा की शुरुआत हुई। एक कन्या के पिता के रूप में 1970 के अंतिम दशक में सौराठ सभा में शामिल होने की यादों को ताजा करते हुए महेश ठाकुर (72) ने कहा, “यह 10 दिनों तक चलने वाला गांव के एक बड़े उत्सव की तरह हुआ करता था, जो (हिंदू पंचांग के मुताबिक) शुभ मुहूर्त की अवधि पर निर्भर करता था।” उन्होंने बताया कि भावी वर अपने पिता, रिश्तेदारों और पंजीकार के साथ एक नियत दूरी पर दरी या चटाई पर बैठ जाते हैं और कन्या पक्ष के लोग वहां मौजूद वरों में से उपयुक्त वर की तलाश में करते हैं, अगर किसी को मनमुताबिक वर मिल जाता है, तो फिर दोनों पक्ष बातचीत को आगे बढ़ाते हैं। भावी वर को दुल्हन पाने के लिए सौराठ सभा में बैठकर इंतजार करना पड़ता था, जो यह दर्शाता है कि मिथिला की संस्कृति में महिलाओं को ऊंचा दर्जा प्राप्त था। उन्होंने बताया कि सौराठ सभा हर साल लगती है, लेकिन उपयुक्त वर की कमी के चलते कन्याओं के परिवारों के बीच इसका आकर्षण कम होता जा रहा है। ठाकुर कहते हैं कि अच्छे लड़के इन दिनों दूसरी जगहों पर, यहां तक कि विदेशों में जाकर बस गए हैं, जो इस महोत्सव में आने में असमर्थ हैं और इस दौर में भावी जीवनसाथी को लेकर उनकी पसंद भी बदल गई है, जिस कारण इस महोत्सव में उनके लायक लड़कियां मिलनी मुश्किल है। ठाकुर इस प्रथा को फिर से जीवंत किए जाने की कोशिश की सराहना करते हैं। |
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