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सऊदी-कतर विवाद की असली कहानीः कहीं डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा का असर तो नहीं?

जनता जनार्दन डेस्क , Jun 06, 2017, 11:40 am IST
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सऊदी-कतर विवाद की असली कहानीः कहीं डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा का असर तो नहीं? नई दिल्लीः कतर को खाड़ी देशों के बीच अलग-थलग करने की मुहिम जारी है. खाड़ी विवाद एक नए स्तर पर है, जिसमें अमेरिका भी अपनी भूमिका निभा रहा. मिस्र और सऊदी अरब ने अब क़तर के विमानों पर अपने हवाई क्षेत्र में उड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है.

इससे पहले क़तर पर क्षेत्र में अतिवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए 6 अरब देशों ने उससे अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिए. इनमें सऊदी अरब, मिस्र, बहरीन, यमन, लीबिया और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) शामिल हैं.

सऊदी अरब, यूएई, मिस्र और बहरीन से क़तर के लिए हवाई, ज़मीनी और समुद्री रास्ते बंद कर दिए गए हैं.

उधर क़तर ने कथित इस्लामिक स्टेट या किसी भी तरह के चरमपंथ का समर्थन करने के आरोप से इनकार करते हुए इस क़दम को 'अनुचित' बताया है.

इस घटना को अमरीका के दोस्त कहे जाने वाले ताक़तवर खाड़ी देशों के बीच एक बड़ी दरार की तरह देखा जा रहा है. अरब देशों ने यह फ़ैसला ऐसे समय पर लिया है जब खाड़ी देशों और उनके पड़ोसी ईरान के बीच तनाव बढ़ा है. हालिया अरब यात्रा पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान पर चरमपंथ को बढ़ावा देने के आरोप लगाए थे.

नहीं रोके जाएंगे हजयात्री

बहरीन, सऊदी अरब और यूएई ने साथ मिलकर यह फ़ैसला लिया कि क़तर के साथ आने-जाने के सारे रास्ते बंद करके राजनयिक संबंध तोड़ लिए जाएं.

उन्होंने अपने यहां रह रहे क़तर के नागरिकों और पर्यटकों को दो हफ़्ते में अपने देश लौट जाने का आदेश दिया है. तीनों देशों ने अपने देशवासियों के भी क़तर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है.

यूएई और मिस्र ने क़तर के राजनयिकों को देश छोड़ने के लिए 48 घंटे का वक़्त दिया है. सऊदी अरब ने एक कदम आगे बढ़कर क़तर के प्रभावशाली अल जज़ीरा टीवी चैनल के स्थानीय दफ़्तर को भी बंद करवा दिया है.

हालांकि सऊदी अरब ने कहा है कि वह क़तर के हज यात्रियों को आने से नहीं रोकेगा. मिस्र, यमन, लीबिया और मालदीव ने भी बाद में तीनों देशों के फ़ैसले का अनुसरण किया.

हवाई रोक का असर

सऊदी अरब के सिविल एविएशन प्रशासन ने क़तर के विमानों पर अपने हवाई अड्डों पर लैंड करने और अपने वायुक्षेत्र को लांघने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है.

मिस्र ने भी क़तर से आने वाली उड़ानों के लिए दरवाज़े बंद कर लिए हैं और कहा है कि दोनों देशों के बीच की उड़ाने मंगलवार 4 बजे से अगली सूचना तक रोक दी जाएंगी.

बहरीन की गल्फ एयर, एतिहाद एयरवेज़ और एमिरेट्स समेत प्रभावित देशों की कई एयरलाइंस कंपनियों ने कहा है कि वे मंगलवार सुबह से क़तर की राजधानी दोहा से आने-जाने वाली उड़ानें रद्द कर रहे हैं. नेशनल एयरलाइन और क़तर एयरवेज़ ने भी सऊदी अरब की उड़ाने रद्द कर दी हैं.

बीबीसी के साइमन ऐटकिंसन का कहना है कि उड़ानों पर रोक एयरलाइंस के लिए बड़ी समस्या पैदा कर सकती है. उन्हें फ़्लाइट के रूट को बदलना पड़ सकता है, जिसकी वजह से उड़ानों का समय बढ़ सकता है.

ऐसी ख़बरें भी हैं कि क़तर में लोग खाना और पानी जमा करने लगे हैं, क्योंकि खाद्य उत्पादों के आयात के लिए वह सऊदी अरब पर काफ़ी निर्भर है. माना जाता है कि क़तर का करीब 40 फ़ीसदी खाना पड़ोसी खाड़ी देशों से आता है.

ईरान के एक अधिकारी ने फार्स न्यूज़ एजेंसी से कहा कि ईरान समुद्र के ज़रिये 12 घंटों में क़तर तक खाना पहुंचा सकता है.

अरब देशों ने क्यों लिया यह फैसला?

सऊदी अरब ने पिछले कुछ सालों के दौरान क़तर पर सार्वजनिक और गुप्त तरीके से सऊदी अरब की संप्रभुता को ख़तरे में डालने और देश को तोड़ने के इरादे से गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया है.

सऊदी अरब का आरोप है कि क़तर बहरीन और सउदी के क़तिफ़ प्रांत में मुस्लिम ब्रदरहुड, तथाकथित इस्लामिक स्टेट और ईरानी समर्थित चरमपंथी संगठन समेत अलगाववादियों को मदद कर रहा है.

इससे पहले इन चार अरब देशों ने क़तर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी की विवादास्पद टिप्पणी प्रसारित करने वाली अल जज़ीरा नेटवर्क की समाचार वेबसाइट पर रोक लगा दी थी.

जबकि क़तर का कहना है कि शेख तमीम के हवाले से चलाई गई टिप्पणी फ़र्ज़ी थी और समाचार एजेंसी को हैक करने के बाद ये इंटरनेट पर आई थी.

क़तर के अमीर के 'बयान' पर विवाद

क़तर के शेख की विवादित टिप्पणी ने कई संवेदनशील क्षेत्रीय मुद्दों को छेड़ा था लेकिन सबसे ज़्यादा नाराज़गी इसमें सऊदी अरब के धुर विरोध ईरान की तारीफ़ और सउदी अरब की निंदा से थी.

रिपोर्टों के मुताबिक शेख तमीम ने कहा था, " ईरान से अरबों की दुश्मनी का कोई कारण नहीं है और इसरायल से हमारे रिश्ते अच्छे हैं."

इस बयान में ईरान के समर्थक लेबनान आधारित शिया आंदोलन हिज्बुल्लाह गुट के पक्ष में भी टिप्पणी की गई थी.
क़तर की तरफ़ से इस टिप्पणी को फ़र्ज़ी बताए जाने के बाद भी सऊदी मीडिया में इस पर रिपोर्टें आती रहीं.

क़तर के विदेश मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने कहा था कि हैकिंग के दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने इसे क़तर के ख़िलाफ़ मीडिया में चलाया जा रहा अभियान बताया था.

'क़तर का औज़ार'

तेल और गैस के मामले में क़तर काफ़ी समृद्ध है जिसकी राजनयिक मामलों में भूमिका मुखर होती रही है.

प्रभावशाली अलजज़ीरा न्यूज़ नेटवर्क भी क़तर में स्थित है, जो सारी दुनिया में प्रसारण करता है और जिसके प्रति सऊदी अरब और खाड़ी के अन्य देशों का रवैया आलोचना भरा रहा है.

सऊदी अरब ऐतिहासिक तौर पर छह देशों को गल्फ़ को-ऑपरेशन काउन्सिल का नेतृत्व करता रहा है और क़तर की सरकार से मीडिया के पर क़तरने के लिए कई समझौते कर चुका है.

अल जज़ीरा का झुकाव मिस्र के इस्लामिक ताकतों की तरफ़ रहा है और मिस्र के अपदस्थ पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को हटाए जाने को सेना का तख्तापलट कहता रहा है.

मिस्र में अल जज़ीरा के पत्रकारों पर कार्रवाई भी जा चुकी है. अल जज़ीरा काफ़ी लोकप्रिय है, लेकिन आलोचक इसे क़तर की विदेश नीति का एक औज़ार मानते हैं, जो शायद ही कभी क़तर की सरकार के हितों को चुनौती दे.

मध्य-पूर्व एशिया में कथित अरब क्रांति के दौरान क़तर पर मिस्र के पूर्व इस्लामिक राष्ट्रपति का समर्थन करने का आरोप लगता रहा है. सऊदी अरब और सयुंक्त अरब अमीरात ने मुस्लिम ब्रदरहुड 'आतंकी' संगठन का दर्जा देते हैं. लेकिन क़तर ने इस संगठन के सदस्यों को अपनी बात रखने के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया.

मिस्र के साथ क़तर के संबंधों में तनाव मिस्र के राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को अपदस्थ किए जाने के साथ ही शुरुआत हुई.

सऊदी अरब की आधिकारिक प्रेस एजेंसी ने क़तर पर मुस्लिम ब्रदरहुड, कथित दाएश (इस्लामिक स्टेट) और अल-कायदा को अपनाकर क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने का आरोप लगाया है. हालांकि, क़तर ने इन आरोपों को आधारहीन बताया है.

क़तर, मिस्र के अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी का भी पुरज़ोर समर्थक है और उसे सीरिया में विद्रोही इस्लामिक समूहों का समर्थक माना जाता रहा है. मोहम्मद मोर्सी हिज्बुल्ला के सदस्य थे जिसे कई अरब देश चरमपंथी संगठन मानते हैं.

मार्च 2014 में भी सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात ने क़तर पर उनके आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाते हुए अपने राजदूत वापस बुला लिए थे.

लीबिया साल 2011 में मुहम्मद गद्दाफी को अपदस्थ किए जाने के बाद से संकट के दौर से गुज़र रहा है. मिस्र से समर्थन हासिल करने वाले एक सैन्य अधिकारी खलीफा हफ्तार ने क़तर पर 'आतंकी संगठनों' को समर्थन देने का आरोप लगाया था.

हफ्तार तोब्रुक शहर में एक स्थित सरकार से जुड़े हुए हैं. वहीं, क़तर त्रिपोली शहर में स्थित एक प्रतिद्वंदी सरकार को समर्थन करता है.

क़तर के शेख की विवादित टिप्पणी ने कई संवेदनशील क्षेत्रीय मुद्दों को छेड़ा था लेकिन सबसे ज़्यादा नाराज़गी इसमें सऊदी अरब के धुर विरोध ईरान की तारीफ़ और सउदी अरब की निंदा से थी.

रिपोर्टों के मुताबिक शेख तमीम ने कहा था, "ईरान से अरबों की दुश्मनी का कोई कारण नहीं है और इसरायल से हमारे रिश्ते अच्छे हैं. "  ईरान के समर्थक लेबनान आधारित शिया आंदोलन हिज्बुल्लाह गुट के पक्ष में भी टिप्पणी की गई. क़तर की तरफ़ से इस टिप्पणी को फ़र्ज़ी बताए जाने के बाद भी सऊदी मीडिया में इस पर रिपोर्टें आती रहीं.

क़तर की तेल और गैस के मामले में समृद्धी और राजनयिक मामलों में अहम स्थान हासिल करने में इसकी न्यूज़ वेबसाइट अल जजीरा का बड़ा योगदान है. क़तर के पड़ोसी खाड़ी देशों के लिए ये चिंता का विषय बनी हुई है.

ऐतिहासिक तौर पर छह देशों को गल्फ़ को-ऑपरेशन काउन्सिल का नेतृत्व करने वाले सऊदी अरब ने क़तर सरकार से मीडिया पर काबू करने के लिए कई समझौते कर चुका है.

मिस्र भी इससे पहले क़तर की न्यूज़ वेबसाइट अल जज़ीरा पर चरमपंथ भड़काने और फर्ज़ी ख़बरें बनाने का आरोप लगाया था.

अल जज़ीरा का झुकाव मिस्र की इस्लामिक ताकतों की तरफ़ रहा है और मिस्र के अपदस्थ पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को हटाए जाने को सेना का तख्तापलट कहता रहा है.

अल जज़ीरा काफ़ी लोकप्रिय है लेकिन आलोचक इसे क़तर की विदेश नीति का एक औज़ार मानते हैं जो शायद ही कभी क़तर की सरकार के हितों को चुनौती दे.

पड़ोसी खाड़ी देशों का एयरस्पेस प्रतिबंधित होने के बाद क़तर एयरवेज के लिए यूरोप और अन्य देशों की फ्लाइट्स मुश्किल हो जाएंगी.

जमीनी सीमा के नाम पर क़तर सिर्फ सऊदी अरब के साथ जुड़ा हुआ है, बॉर्डर बंद होने के बाद क़तर में रहने वाले लोगों के लिए खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ना लाज़मी है.

क़तर साल 2022 में फुटबॉल वर्ल्ड कप के आयोज़न की तैयारी कर रहा है, ऐसे में एक नया बंदरगाह, मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट, और आठ स्टेडियमों के निर्माण का काम जारी है. जमीनी बॉर्डर बंद होने से क़तर को कच्चा माल मिलने में दिक्कत होने से इन प्रोजेक्ट्स में देरी हो सकती है.

क़तर में इस वक्त 1,80,000 मिस्र के निवासी रह रहे हैं जो इंजीनियरिंग, मेडिसिन, और कानून जैसे पेशों से जुड़े हुए हैं. इन नागरिकों के क़तर छोड़ने की स्थिति में क़तर को बड़ी संख्या में अपने पेशेवरों से हाथ धोना पड़ सकता है.
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