नित्य मानस चर्चाः उत्तर कांड कथा, लीला रूप, प्रभु के विराट रूप के ज्ञान का फल है
रामवीर सिंह ,
May 23, 2017, 9:29 am IST
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नई दिल्लीः पुलिस सेवा से जुड़े रहे प्रख्यात मानस मर्मज्ञ श्री राम वीर सिंह उत्तर कांड की सप्रसंग व्याख्या कर रहे हैं. राम वीर जी अपने नाम के ही अनुरुप राम कथा के मानद विद्वान हैं.
यह चर्चा भाई भरत और श्री राम जी के मिलाप से जुड़ी हुई है. लेकिन इसमें वह समूचा काल खंड जुड़ा है. भ्रातृ प्रेम, गुरू वंदन, सास- बहू का मान और अयोध्या का ऐश्वर्य... सच तो यह है कि उत्तर कांड की 'भरत मिलाप' की कथा न केवल भ्रातृत्व प्रेम की अमर कथा है, बल्कि इसके आध्यात्मिक पहलू भी हैं. ईश्वर किस रूप में हैं...साकार, निराकार, सगुण, निर्गुण... इस तरह के तमाम प्रसंगों और जिज्ञासाओं के सभी पहलुओं की व्याख्या के साथ गोस्वामी तुलसीदास रचित राम चरित मानस के उत्तरकांड से संकलित कथाक्रम, उसकी व्याख्या के साथ जारी है. उन्हीं के शब्दों में: *ॐ* *नित्य मानस चर्चा* *उत्तरकांड* अगली पंक्तियाँ:-- "भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला।। भुअन अनेक रोम प्रति जासू। यह प्रभुता कछु बहुत न तासू।। सो महिमा समुझत प्रभु केरी। यह बरनत हीनता घनेरी।। सोउ महिमा खगेस जिन्ह जानी। फिरि एहि चरित तिन्हहुँ रति मानी।। सोउ जाने कर फल यह लीला। कहहिं महा मुनिवर दमसीला।। ***** * इन पंक्तियों में जो रामचरितमानस का दर्शन है, उसे हृदय से प्रणाम। भगवान के अवतार का हेतु भी यहॉं प्रदर्शित है। साथ ही रामकथा का रस सभी को उतना मीठा और आकर्षक क्यों नहीं लगता, इसका भी उत्तर है। इस कथा में रस लेने वाले हम सभी प्राणी अपने साथ पूर्व के कुछ सुकृत्य लेकर आए हैं, किसी जन्म में हम परमात्मा के निर्गुण निराकार स्वरूप की ओर अग्रसर हो चुके हैं। तभी यह कथा हमें सुख देती है, आनन्द देती है। * (पंक्तियों का अर्थ कुछ ऐसा वनेगा:-- कौशल देश के राजा रामचंद्र पूरी सात द्वीप वाली पृथ्वी के शासक हैं। लेकिन यह महिमा राम के लिए बड़ी नहीं है। जिनके एक एक रोम में अनेक ब्रह्माण्ड हैं,उन्हें समस्त पृथ्वी का राजा बताना उनके लिए हीनता है। भुशुण्डिजी कह रहे हैं कि गरुड़ जी ! जिन्होंने भी राम की ब्रह्माण्ड व्यापक महिमा जानी (मतलब कि सब नहीं जान सकते), उस जानने का फल है कि उन जितेन्द्रिय श्रेष्ठ महामुनियों को भगवान की यह सगुण लीला देखने को मिली। प्रभु की अनन्तता में वुद्धि का लय हो जाता है। यहॉं प्रत्यक्ष देखकर वुद्धि प्रसन्न होती है। ) *** *"सोउ महिमा ......मुनिवर दमसीला":-- अगस्त्य जी का कथन है ;- "तुम्हरेइ भजन प्रभाव अघारी। जानउँ महिमा कछुक तुम्हारी।। और आगे कहते हैं;-- "जद्यपि ब्रह्म अखंड अनंता। अनुभव गम्य भजहिं जेहि संता।। अस तब रूप बखानउँ जानउँ। फिरि फिरि सगुन ब्रह्म रति मानउँ।।" अगस्त्यजी कह रहे हैं कि मैं अखंड अनंत ब्रह्म को जानता भी हूँ और उसकी कथा भी कहता हूँ। ( शिवजी सुनने आते हैं। ) लेकिन मेरी रति इसी सगुण रूपधारी राम की लीला में है। यही कोसल के राजा राम की कथा। सुतीक्ष्णजी प्रभु के ऐश्वर्य स्वरूप को जानते हैं किंतु हृदय में वनवासी राम की छवि ही वसाए हैं। "जदपि बिरज व्यापक अबिनासी। सबके हृदय निरंतर बासी।। तदपि अनुज श्रीसहित खरारी। बसतु मनसि मम काननचारी।।" और भुशुण्डिजी तो इसी उत्तरकांड में आपबीती सुनाएँगे। उन्होने तो प्रभु का वह ऐश्वर्य रूप देखा:- "जो नहिं देखा नहिं सुना जो मनहू न समाय" लेकिन नीलगिरि पर जो नित्य कथा कहते हैं, वह उसी कोसल्यानंदन सगुण साकार राम की है। और भगवान के "भुवन अनेक रोम प्रति जासू" इस रूप को जिन मनीषियों ने जान पाया,उन्हीं ने भगवान के लीलारूप के आविर्भाव हेतु कठोर तप किया। जैसे कि मनु-शतरूपा; कश्यप-अदिति। उसी का फल है कि सरकार नर रूप धारण करके लीला कर रहे हैं। सिद्ध हुआ कि लीला रूप , प्रभु के विराट रूप के ज्ञान का फल है। और साहब जगत का कल्याण भी इसी से होता है। अवतार में भगवान जो रूप धारण करते हैं, देवता भी उसी की पूजा करते हैं। प्रभु के व्यापक परम रूप को चक्षु से देखने या अनुमान करने को कोई भी समर्थ नहीं है। निर्गुण निराकार ब्रह्म का ऐश्वर्य, उसकी महिमा केवल जानने के लिए है। राम की लीला, राम की कथा भक्ति के लिए है, माधुर्य का सुख लेने के लिए है। हम अपनी पीठ थपथपाते हैं कि परमात्मा ने हमें अपने मर्यादापरक रूप की ओर आकर्षित किया है। उनकी कथा का नित्य आनन्द ले रहे हैं। इससे हटकर जो प्रेमलीला में रुचि रखते हैं, वह उनका संस्कार हो सकता है। उनकी किसी जन्म की अतृप्त वासना की प्यास हो सकती है। हमें तो मर्यादा से बँधा हुआ प्रभु सुहाता है। लाखों सालों से यह भूमि भी अनुकरण उसी मर्यादापुरुषोत्तम का कर रही है। राम के विग्रह में उनकी लीला में आस्था सहित प्रेम रखने वाली समस्त आत्माओं को नमन। |
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