श्रद्धांजलिः जाना किशोरी ताई का- सरस्वती की दैवीयता का देवत्व में विलय

श्रद्धांजलिः जाना किशोरी ताई का- सरस्वती की दैवीयता का देवत्व में विलय यतींद्र मिश्र शब्द साहित्य के वह चितेरे हैं, जिनके शब्द से सुर और सुर से शब्द इस कदर रचे-गुंथे हैं कि पाठक बिना झंकृत हुए रह ही नहीं सकता. शास्त्रीय संगीत की सुर सरस्वती किशोरी अमोनकर ने जब इहलोक को अलविदा कहा तो वरिष्ठ पत्रकार साथी अनंत विजय द्वारा संयोजित ह्वाट्सएप समूह 'साहित्य' पर यतींद्र जी ने किशोरी जी से संबंधित यादें संजोते हुए 'किशोरी प्रसंग' के रूप में अनूठी श्रद्धांजलि दी है.

संगीत और साहित्य रसिकों के लिए शब्दशः

इस से बुरी ख़बर हो नहीं सकती, किशोरी ताई चली गयीं, हम सबको अपने आशीष से वंचित करके..असहनीय...समझ ही नहीं आ रहा कि क्या लिखें और किस तरह अपनी तकलीफ़ को साझा करें?

मेरे लिए संगीत में भक्ति का अछोर थीं वे...रागदारी के भव्य राज-प्रासाद की अकेली जीवित किंवदन्ती...गान -सरस्वती की दैवीयता का देवत्व में विलय...आज स्वर्ग में सम्पूर्ण मालकौंस की छटा अभूतपूर्व होगी..

हमें आज वे काफ़ी हद तक राग विमुख कर गयीं... जयपुर-अतरौली ही नहीं, हर नया सीखने वाला संगीत विद्यार्थी आज अपने छोटे-छोटे कस्बों, शहरों में अपने उस्ताद से सीखते हुए घराने के चंदोवे की सुर-छाया से छिटक गया है, भले ही उसकी तालीम का रास्ता जयपुर की जगह कहीं और जाता हो....

उन्हें सामने से न सुन पाने की पीड़ा अब जीवन भर भीतर मौजूद रहेगी। उनका यमन, भिन्न षडज, भीमपलासी, बहादुरी तोड़ी, शुद्ध कल्याण, सूर मल्हार, मारवा, केदार, बागेश्री, ललित पंचम, भूप सब आज से सदा के लिए अनंत में प्रस्थान कर गए हैं, क्योंकि ताई अब हमारे लिए उसको साक्षात् नहीं गाने वाली हैं।

शास्त्रीय संगीत की इस महीयसी ने जाने के लिए नवरात्रि की सप्तमी और अष्टमी तिथि की संधि बेला को चुना है। जैसे, कालरात्रि और महागौरी से अपने सुरों के कोछे में दूब-धान भराकर किशोरी जी देवत्व के अचल अमर्त्य सुरों में निवास करने चली गयीं हों....प्रणाम , संगीत रसिकों के जीवन में अपनी आवाज़ से उजाला भरने के लिए.. चरण स्पर्श , सुरों से हमें कुछ बेहतर बनाने के लिए...

सहेला रे आ मिल गायें
सप्त सुरन की भेद सुनाये
जनम -जनम को संग न भूलें
अब के मिले सो बिछुड़ न जायें !

किशोरी प्रसंग -1

मीरा को गाते हुए उनकी पुकार तान में ये गीत 'मैं कैसे आऊंगी, सांवरिया तोरी विकट नगरिया, मैं कैसे आऊंगी'
को सुनना कितना स्वर्गिक और कितना सलोना है...
इसे सराहने के लिए वैसा ही भाष्य लिखा जा सकता है, जिस तरह संगीत और नृत्य-शास्त्र को समझने के लिए संगीत-रत्नाकर, दत्तिलम, नंदिकेश्वर आदि लिखे गए।

किशोरी प्रसंग- 2

भिन्न षडज में 'उड़ जा रे कागा'
किस लोक की आस में सम्भव हुआ होगा?

क्या स्वयं उनके घराने में उस्ताद अल्लादिया खां साहेब ने ये बंदिश बिलकुल वैसे ही केसरबाई केरकर
और मोगूबाई कुर्डीकर को सौंपी होगी?

उड़ जा रे कागा, तो महान संगीत का महान उदाहरण है...

किशोरी प्रसंग- 3

मेरा प्रिय राग जौनपुरी, जिसे वे जीवनपुरी कहती थीं का गायन उनका आशिक़, अतिरेकी प्रशंसक और अनुयायी बनाने में बहुत सहायक रहा है..
बाजे झनन... उफ़ क्या उठान!
क्या प्रदर्शन!!
क्या मनुहार को आमंत्रण देता स्वर!!!

वाकई वे गान-सरस्वती हैं, जो आवाज़ के मंदिर में सदा के लिए रहेंगी...

किशोरी प्रसंग- 4

कबीर को गाकर जितना पंडित कुमार गन्धर्व ने अमर बनाया है, उतना ही सरस उनको किशोरी जी भी करती हैं, जब 'घट-घट में पंछी बोलता' गाती हैं...उन पर मर मिटने की ढेरों वजहें हैं, जिनमें 'घट-घट' का आस्वाद भी एक बड़ा कारण है...

मीर और ग़ालिब के किसी भी एक शेर की तड़प जैसा...उसी के नूर में डूबता-तिरता...

किशोरी प्रसंग- 5

उनको लगभग पंद्रह बरस पहले एक बार अयोध्या आने के लिए मनुहार किया था कि 'विमला देवी फाउंडेशन'
में आकर हम सभी को असीस जाएँ। क़रीब सप्ताह भर फ़ोन पर टुकड़े-टुकड़े में बात होती रही...अंत में, उनका आने का अवसर ना बनता देख मैंने कहा..
' एक बार अयोध्या कनक बिहारी जी को सुनाने और दर्शन करने आ जाएं'...तिस पर किशोरी जी बोलीं..
'भईया! रोज़ रियाज़ में जब आँखें मूंदती हूँ, तो वही अभ्यास का कमरा कभी अयोध्या, कभी वृन्दावन
बन जाता है। वहीँ से कनक बिहारी को भी कई बार कुछ सुना देती हूँ...'

अवाक् मैं... प्रसन्न किशोरी जी...

किशोरी प्रसंग- 6

पुष्टिमार्ग के वैष्णव कीर्तन की सबसे प्रामाणिक व सरस अभिव्यक्ति की दर्शना किशोरी अमोनकर के भजन 'म्हारो प्रणाम, बाँके बिहारी जी' में देखी जा सकती है...

नाथ-द्वारा की अष्टयाम सेवा में मंगला की झांकी के बाद होने वाले राजभोग- दर्शन का निरूपण करती यह भाव-गीत सी प्रतीति, कहीं जयपुर-अतरौली घराने को दूसरे घरानों से अलगाते हुए कुछ अतिरिक्त कोमल बनाती है...

जयपुर की कोमलता में किशोरी जी, पुष्टिमार्ग का कितना हवेली-संगीत जोड़ती हैं, इस सवाल का उत्तर अब रीता रह जाने वाला है....हालाँकि, यहाँ इस भजन में अष्टछाप के कवि नहीं, बल्कि राजरानी मीराबाई की कलम से राग-सेवा सम्भव हो रही है।

किशोरी प्रसंग- 7

कला का कोई भी सत्य अंतिम नहीं होता।
हम सभी उसमें अपने आंशिक सत्य की
कड़ी भर रचते हैं...
- किशोरी अमोनकर, श्रीमती मृणाल पाण्डे को दिए एक साक्षात्कार में.

किशोरी प्रसंग- 8

रहना नहीं देस बिराना है...

सुर-मण्डल लिए हुए आदरणीया किशोरी जी की छवि भी आज जिस दुनिया के लिए वापस लौट गयी, उसके साथ गान-सरस्वती का सुर-मंडल भी चला गया...

बरसों पहले जैसे उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खां साहेब का सुर-मण्डल भी गंधर्वों के देस चला गया था...हमारी पृथ्वी को देस बिराना करते हुए..
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