दूषित पर्यावरण का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों पर: 'विश्व पर्यावरण सम्मेलन' में राष्ट्रपति

दूषित पर्यावरण का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों पर: 'विश्व पर्यावरण सम्मेलन' में राष्ट्रपति नई दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने इस तथ्य का स्वागत किया कि पर्यावरण संरक्षण अब समावेशी और साझा कार्यक्रम बन गया है। लोगों में सामान्य जागरूकता बढ़ने और विश्वभर की सरकारों की सुदृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के चलते पिछले वर्षों में यह परिवर्तन संभव हुआ है।

उन्होंने महात्मा गांधी के उस कथन का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ‘‘पृथ्वी प्रत्येक व्यक्ति की जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त देती है, लेकिन हर व्यक्ति का लालच पूरा नहीं कर सकती।’’

राष्ट्रपति ने कहा कि हाल के अध्ययनों और सिलसिलेवार समीक्षाओं से पता चलता है कि स्वस्थ जीवन के वर्षों के संदर्भ में दूषित पर्यावरण का वैश्विक बोझ करीब 24 प्रतिशत है और कुल मौतों में दूषित पर्यावरण का योगदान 23 प्रतिशत है।

दूषित पर्यावरण से होने वाली बीमारियों का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, जिनकी मृत्यु पेचिस, मलेरिया और सांस से होने वाली बीमारियों के कारण होती है। ये सभी रोग पर्यावरण विषयक हैं। अंधाधुंध उद्योगीकरण से उत्पन्न कार्सेनेजन्स के कारण विश्वभर में कैंसर से 19 प्रतिशत मौतें होती हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि अब समय आ गया है कि हमें अपने से यह सवाल करना चाहिए कि हम पर्यावरण से होने वाली कितनी क्षति सहन कर सकते हैं।

राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को इस बात के लिए बधाई दी कि भारत के इस प्रमुख पर्यावरण नियंत्रक संगठन ने वैश्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों पर विचार विमर्श के लिए एक व्यापक मंच प्रदान किया।

राष्ट्रपति ने पर्यावरणविद् वेंडेल बैरी का कथन उद्धृत किया जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘‘धरती हम सब की साझा संपत्ति है। वैश्विक विकास इस ग्रह के जिम्मेदारीपूर्ण प्रबंधन के अधीन है’’।

उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि पिछले एक दशक में पर्यावरण के मुद्दों पर विश्वभर में आम सहमति बनी है।

उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन के तत्वावधान में हुआ पेरिस समझौता इसी आम सहमति का परिणाम है।
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