राम मंदिर विवाद: सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थ बनने को तैयार, कहा-कोर्ट से बाहर सुलझाएं मसला

जनता जनार्दन संवाददाता , Mar 21, 2017, 13:27 pm IST
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राम मंदिर विवाद: सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थ बनने को तैयार, कहा-कोर्ट से बाहर सुलझाएं मसला नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद मुद्दे पर अहम टिप्पणी की है. इस मुद्दे पर कोर्ट में केस लड़ रहे बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी से कोर्ट ने कहा है कि वह कोर्ट के बाहर इस मुद्दे को बातचीत से हल करने की कोशिश करें.

इसके अलावा, जरूरत पड़ने पर कोर्ट भी इस मामले में मध्यस्थता करने के लिए तैयार है. वहीं, सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस रुख का स्वागत किया है.

कोर्ट ने कहा कि यह एक संवेदनशील और भावनाओं से जुड़ा मसला है और अच्छा यही होगा कि इसे बातचीत से सुलझाया जाए. हालांकि, बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों पक्षों को 'थोड़ा दे, थोड़ा ले' का रुख अपनाना होगा ताकि इस मुद्दे का कारगर हल निकल सके.

चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि कोर्ट के आदेश को मानने के लिए संबंधित पक्ष बाध्य होंगे, लेकिन ऐसे संवेदनेशली मुद्दों का सबसे अच्छा हल बातचीत से निकल सकता है.

वहीं, स्वामी ने कहा कि इस तरह की कोशिशें पहले भी हो चुकी हैं, इसलिए मामले में जुडिशल दखल दी जानी चाहिए. बता दें कि इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद, दोनों पक्षों की अपील सालों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इस मामले पर अगले हफ्ते से सुनवाई होने वाली है.

कोर्ट ने स्वामी को आदेश दिया कि वह संबंधित पक्षों से बातचीत करें और फैसले के बारे में 31 मार्च तक जानकारी दें. चीफ जस्टिस खेहर ने कहा कि अगर पक्षकार यह चाहते हैं कि वह इस मामले में मध्यस्थता करें तो वह तैयार हैं.

चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि अगर पक्षकार यह चाहते हैं कि कोई दूसरा वर्तमान जज इस मामले में प्रधान मध्यस्थ बने तो वह उसे उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं.

कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षकार मध्यस्थ का चुनाव करें ताकि मामले को जल्दी हल किया जा सके. कोर्ट के मुताबिक, अगर जरूरत पड़ी तो वह इस मुद्दे को हल करने के लिए प्रधान मध्यस्थ चुन सकता है.

बता दें कि स्वामी ने कोर्ट से मांग की थी कि संवेदनशील मामला होने के नाते इस मुद्दे पर जल्द से जल्द सुनवाई हो. स्वामी ने कहा कि राम का जन्म जहां हुआ था, वह जगह नहीं बदली जा सकती. नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है. स्वामी ने यह भी कहा कि वह इस मुद्दे को मध्यस्थता के जरिए हल करने के लिए काफी वक्त से तैयार बैठे हैं.

स्वामी ने कहा, 'उन्हें सऊदी अरब के मौलवियों ने बताया है कि जरूरत पड़ने पर मस्जिद गिराए जाते रहे हैं. इन्हें दोबारा से दूसरी जगह बनवाया जा सकता है. मस्जिद एक नमाज पढ़ने की जगह है और नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है.

हम मस्जिद बनवाने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसका निर्माण सरयू नदी के दूसरी ओर या उनके मनमुताबिक किसी भी दूसरी उपयुक्त जगह पर हो. यह इलाका राम जन्मभूमि है, जहां राम मंदिर होना चाहिए. हम बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन ऐसा जुडिशरी की देखरेख में हो.'

वहीं, बाबरी मस्जिद ऐक्शन प्लान के जफरयाब जिलानी ने कहा कि इस मुद्दे पर 27 साल से बातचीत किया जा रहा है, कई पूर्व सरकारों के दौरान ऐसा किया जा चुका है, लेकिन कोई हल नहीं निकला. वहीं, ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि बातचीत का वक्त अब खत्म हो चुका है.

अयोध्या विवाद में कब-कब क्या हुआ?

- मुस्लिम सम्राट बाबर ने फतेहपुर सीकरी के राजा राणा संग्राम सिंह को वर्ष 1527 में हराने के बाद इस स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था. बाबर ने अपने जनरल मीर बांकी को क्षेत्र का वायसराय नियुक्त किया. मीर बकी ने अयोध्या में वर्ष 1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया.
- इस बारे में कई तरह के मत प्रचलित हैं कि जब मस्जिद का निर्माण हुआ तो मंदिर को नष्ट कर दिया गया या बड़े पैमाने पर उसमें बदलाव किये गए. कई वर्षों बाद आधुनिक भारत में हिंदुओं ने फिर से राम जन्मभूमि पर दावे करने शुरू किये जबकि देश के मुसलमानों ने विवादित स्थल पर स्थित बाबरी मस्जिद का बचाव करना शुरू किया.
- प्रमाणिक किताबों के अनुसार पुन: इस विवाद की शुरुआत सालों बाद वर्ष 1987 में हुई. वर्ष 1940 से पहले मुसलमान इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहते थे, इस बात के भी प्रमाण मिले हैं.

साल 1947- भारत सरकार ने मुसलमानों के विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला डाल दिया गया जबकि हिंदू श्रद्धालुओं को एक अलग जगह से प्रवेश दिया जाता रहा।
साल 1984- विश्व हिंदू परिषद ने हिंदुओं का एक अभियान शुरू किया कि हमें दोबारा इस जगह पर मंदिर बनाने के लिए जमीन वापस चाहिए।
साल 1989- इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल देना चाहिए और इस जगह को हमेशा के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए। सांप्रदायिक विवाद तब भड़का जब विवादित स्थल पर स्थित मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया। जब भारत सरकार के आदेश के अनुसार इस स्थल पर नये मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब मुसलमानों के विरोध ने सामुदायिक गुस्से का रूप लेना शरु किया।
साल 1992- 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही यह मुद्दा सांप्रदायिक हिंसा और नफरत का रूप लेकर पूरे देश में संक्रामक रोग की तरह फैलने लगा। इन दंगों में 2000 से ऊपर लोग मारे गए। मस्जिद विध्वंस के 10 दिन बाद मामले की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।
साल 2003- उच्च न्यायालय के आदेश पर भारतीय पुरात्तव विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक खुदाई की जिसमें एक प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले।
साल 2005- 5 जुलाई 2005 को 5 आतंकियों ने अयोध्या के रामलला मंदिर पर हमला किया। इस हमले का मौके पर मौजूद सीआरपीएफ जवानों ने वीरतापूर्वक जवाब दिया और पांचों आतंकियों को मार गिराया।
जून 2009- लिब्राहन कमिशन ने अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें 17 साल पहले बाबरी मस्जिद के विध्वंश की वजहों को उजागर किया गया था।
नवंबर 2009- संसद में लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट पर जमकर हंगामा हुआ जिसमें कई हिंदू और भाजपा नेताओं के शामिल होने की बात कही गयी थी।
सितंबर 2010- इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में कि अयोध्या के विवादित जगह को तीन लोगों में बांटा जाए। जिसमें कहा गया कि मुस्लिम संगठन को एक तिहाई हिस्सा, हिंदू संगठन को दूसरा हिस्सा जबकि निर्मोही अखाड़ो को तीसरा हिस्सा दिया जाए। मुख्य स्थल जहां बाबरी मस्जिद को गिराया गया था उसे हिंदू संगठन को दिया गया था जिसे मुस्लिम संगठनों ने चुनौती दी।
मई 2011- हिंदू और मुस्लिम संगठनों के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया.
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