नर्मदा के लिए 'गांधी मॉडल' की जरूरत: पी वी राजगोपाल
जनता जनार्दन डेस्क ,
Feb 17, 2017, 9:56 am IST
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भोपाल: एकता परिषद के संस्थापक पी.वी. राजगोपाल मध्यप्रदेश सरकार की ‘नमामि देवी नर्मदे’ सेवा यात्रा को नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्ति के लिए जागृति लाने का प्रयास तो मानते हैं, मगर उन्हें लगता है कि इस नदी को बचाने के लिए ‘गांधी मॉडल’ की जरूरत है।
राजगोपाल ने कहा, “ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में नदियों पर बांध बनाकर बिजली पैदा करने के लिए बड़ी कंपनियों को निवेश के लिए बुलाकर उन्हें जमीन देने की होड़ मची हुई है, यहीं से समस्या पैदा हो रही है। यह पूरी तरह चीनी मॉडल है, जो सब पर हावी है। जहां तक नर्मदा परिक्रमा की बात है, इससे नदी के प्रति जागृति तो आ सकती है। मगर इससे नर्मदा अविरल और प्रवाहमान हो पाएगी, इसमें संदेह है।” उन्होंने कहा कि विकास के लिए जो मॉडल अपनाया जा रहा है, वह चीनी मॉडल है, यह नदियों को बांधने का हिमायती है। प्राकृतिक संपदाओं के दोहन की बात करता है, मगर गांधी मॉडल ग्रामीण अर्थव्यवस्था का हिमायती है। चीनी मॉडल जहां झगड़े-फसाद की जड़ है, वहीं गांधी मॉडल आपसी सामंजस्य का प्रतीक। उन्होंने आगे कहा, “वर्तमान में जो मॉडल है, वह कह रहा है कि नदियों को बांधो, मगर नदियां चाहती हैं कि उन्हें बगैर बाधा के बहने दीजिए, यह अनुमति आप (सरकार) देंगे नहीं, तो नदियों की मुक्ति के बिना किसानों की मुक्ति संभव नहीं है। नर्मदा नदी पर बांध तो बना दिए गए, उस पर दबाव बढ़ रहा है। क्या इस तरह की यात्राओं से दबाव को कम किया जा सकेगा, यह बड़ा सवाल है। नर्मदा बची रहे इसके लिए जरूरी है कि उसके प्रवाह को अविरल किया जाए।” उन्होंने कावेरी नदी जल विवाद का उदाहरण देते हुए कहा, “कर्नाटक ने कावेरी नदी को बांध दिया, तामिलनाडु वाले पानी मांग रहे हैं, बांध बनाने से पहले वहां के किसानों से पूछा ही नहीं गया। इसका सीधा नुकसान किसान को उठाना पड़ रहा है। यही हाल नर्मदा नदी के दोनों ओर के किसानों का है, उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है।” देश के विभिन्न आदिवासी इलाकों में विकास के नाम पर चल रहे कामों का जिक्र करते हुए राजगोपाल ने कहा कि जल, जंगल और जमीन पूरी तरह राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है। इस वर्ग के पास कोई राजनीतिक नेता नहीं है। आदिवासी कहते हैं कि उनकी संस्कृति ही नहीं, जीवन भी संकट में है। विकास के नाम पर खनिज कंपनियां आकर उनकी संपदा को लूट रही हैं, इससे मुक्ति दिलाने की बात कहकर नक्सली आ रहे हैं और नक्सली से मुक्ति दिलाने सेना आ रही है। इस तरह उनका जीवन त्रिकोणीय िंहंसा में फंस गया है।” उन्होंने कहा, “विकास के इस मॉडल के बीच भले ही कोई प्रदूषण मुक्त नदी की बात करता रहे, मागर यह मॉडल ऐसा है, जिसमें नुकसान होना ही है, हिंसा और प्रति हिंसा बढ़ रही है, इसलिए मॉडल बदले बिना देश की मुक्ति संभव नहीं है। इस स्थिति से गांधी का मॉडल ही मुक्ति दिला सकता है।” उन्होंने कहा, “गांधी के मॉडल को दुनिया स्वीकार रही है, यही कारण है कि पेरिस में ग्लोबलवार्मिग और क्लाइमेटचेंज कान्फ्रेंस हुआ तो उसमें सबसे ज्यादा तस्वीरें गांधी की ही नजर आई थीं। ऐसा इसलिए, क्योंकि लोगों को लगने लगा है कि इस बूढ़े ने बहुत पहले विज्डम की बात की।” उन्होंने आगे कहा कि अब गांधी की बात लोगों की समझ में आ रही है, क्योंकि गांधी ने कहा था कि प्राकृतिक संसाधनों के बेजा दोहन विकास के मॉडल में निहित है, शोषण, शोषण से टकराव और टकराव से हिंसा बढ़ेगी। इस बात को यूरोप के लोग समझ रहे हैं और गांधी के मॉडल को अपनाने पर जोर दे रहे हैं, क्योंकि वहां बेरोजगारी बढ़ रही है, युवा आईएसआई जैसे संगठनों में जा रहे हैं। राजगोपाल ने माना कि देश के विभिन्न हिस्सों में राज्य सरकारों का रवैया जल, जंगल और जमीन के मसलों पर अच्छा नहीं है, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अन्य मुख्यमंत्रियों की तुलना में बेहतर हैं जो इन समस्याओं के निपटारे के लिए चर्चा के लिए तो तैयार रहते हैं। मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ के भूमिहीनों की समस्या का जिक्र करते हुए कहा कि अगर दोनों सरकारें पहल करें तो हर व्यक्ति को आसानी से जमीन मिल सकती है, क्योंकि यहां 45 लाख एकड़ जमीन ऑरेंज एरिया (वन-राजस्व विवाद) है। इस विवाद को निपटा दिया जाए तो समस्या का समाधान हो जाएगा। उन्होंने तेलंगाना का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां की सरकार ने विधि विश्वविद्यालय के छात्रों की मदद ली और फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए मामलों को निपटाया। यहां ऐसा ही कुछ किया जाए तो भूमिहीनों की समस्या खत्म हो जाएगी। |
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