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लोकतांत्रिक युग के नए इच्छाधारी नाग

लोकतांत्रिक युग के नए इच्छाधारी नाग भारतीय लोकतंत्र एक अली बाबा और चालीस चोरों का अनूठा कुनबा है. अली बाबा बदलता रहता है. चालीस चोर दसों दिशाओं के चालीस कोनों में चोरी-लूट और डकैती का काम निधड़क होकर करते हैं. ये सब आपस में दिखावटी लड़ाइयां लड़ते हैं और लोगों को मूर्ख बनाते हैं.

एक अली बाबा का दामाद देश को लूटता है तो भावी अली बाबा खुद के सत्तासीन होने के साथ ही उसके ऐतिहासिक भ्रष्टाचार के लिए उसे जेल में डालने के दावे करता है, लेकिन बाद में वह जब खुद सत्तासीन हो जाता है तो उसकी चाल बदल जाती है. वह दामाद जी की जुहारी करने लगता है और उसे चोरी-चोरी घर बुलाकर सात सिलाम के गीत गवाता है.

एक अली बाबा लाखों करोड़ के भ्रष्टाचार को देखता रहता है, लेकिन नया अली बाबा सिर्फ़ उसकी मजाक उड़ाता है कि तुम रेनकोट पहनकर नहाते हो, लेकिन पुराना अली बाबा न उसे जेल में डालता है और न ही उसके भ्रष्टाचारी चोरों की पूरी बरात में से किसी को कुछ कहता है. सब अगल-बगल रहते हैं और मज़े करते हैं. अली बाबाओं का यह परिवार इतना मजेदार है कि एक अली बाबा कहता है, जुबान संभाल कर बात करो, नहीं तो जन्मपत्री पड़ी है मेरे पास तुम सबकी. सबको बजा दूंगा. यानी बेटा चुप हो जाओ. मिलकर खेलो.

एक चोर का बेटा लैंबोर्गिनी में घूमता है. इनकम टेक्स वाले उसकी कोई जांच नहीं करते, क्योंकि इनकम टेक्स वालों को अभी इस तरह कोई आदेश ही नहीं मिला. उन्हें तो अपनी मेहनत करके कारोबार से करोड़ों रुपए कमाने वालों की जांच जो करनी है. एक आम आदमी स्कूटर पर चलता है और एक स्कूल खोलकर एक अच्छी कार और एक अच्छे घर की व्यवस्था कर लेता है या अथक परिश्रम करके कोई उद्योग खड़ा कर ले और भ्रष्टचारियों को हर समय लुटाता रहे और किसी का एक नया पैसा भी नहीं ले फिर भी वह चोर जाता है आयकर का।

अली बाबा और चालीस चोरों के इस महान कुनबे ने इनसाफ़ के सुप्रीम स्थल तक अपने जाल को बखूबी फैला रखा है. जिस दस्तावेज के आधार पर आज तक पूरे देश में परिश्रमी उद्योगपतियों को आयकर के दायरे में लाकर आयकर चोर घोषित किया जाता रहा है, वही दस्तावेज अली बाबा के मामले में कोई आधार नहीं रखता. शिकायत यह नहीं कि आज के अली बाबा के साथ ऐसा किया गया. यह सुविधा तो हर अली बाबा को मिली हुई है.

तो इनसाफ़ के देवताओ, यह सुविधा अली बाबा और उसके चोरों को मिलती है तो पर देश के आम नागरिकों को भी मिल जाए तो क्या हर्ज़. देश तो सबका है. चोर का भी, साहूकार भी!

एक अली बाबा तिरंगा होता है, तो दूसरा अली बाबा भगवा हो जाता है. एक लाल होता है तो एक नीला हो जाता है. कभी हरा और कभी बैंगनी. लेकिन अली बाबा तो अली बाबा है. उसे किसी की परवाह नहीं है. उसे परवाह है तो कुनबे के चालीस चोरों की.

इसीलिए सुप्रीम कोर्ट तक से घोषित एक ऐतिहासिक चोरनी मजे से मुख्यमंत्री बनती है और उसके जूते-चप्पल-सैंडल-सोने और चांदी के ढ़ेर पूरी न्याय व्यवस्था पर हंसते-हंसते लोटपोट होते रहते हैं. एक अली बाबा रक्तस्नान करता है 3500 के रक्त से तो दूसरा हजार पांच सौ के. क्या अजब अली बाबा और क्या गजब चोर हैं भैया.

आप ग़ज़ब नज़ीर देखिए. जो काम नारायण दत्त तिवारी करता है, वही काम आसाराम बापू करता है, लेकिन आसाराम बापू तो जेल में है, उसे सुप्रीम कोर्ट से बेल  भी नहीं मिलती, लेकिन नारायण दत्त तिवारी को सिर्फ़ राजभवन से हटाया जाता है, लेकिन उसे भारतीय संस्कारों का एकल टेंडर रखने वाली एक पार्टी के मुखिया सम्मान अपने घर बुलाते हैं और अपनी पार्टी में शामिल करते हैं. मानो इनका भी उनके साथ कोई डीएनए का रिश्ता था! जैसे तिवारी के बिना बेचारे मरे जी रहे थे. हाय, रोहित शंकर तिवारी, ये तुम्हारे ही नहीं, हमारे भी हैं. हम इनके बिना बेकल हैं. बेचारा आसाराम जोधपुर की जेल में त्रस्त है और सोच रहा है कि धर्म की दुकान चलाने के बजाय अली बाबा के किसी चोर की बरात में ही शामिल हो जाता तो मुक्ति हो जाती!

अली बाबा और चालीस चोरों की यह व्यवस्था इतनी मुकम्मल है कि इसमें आम आदमी वाम आदमी से लेकर नक्सलवादी और आतंकवादी तक सब के सब जनता को देखते ही अपनी-अपनी एके फोर्टी सेवन तान देते हैं. सेना के किसी जवान को, बीएसएफ के किसी सैनिक को या फिर किसी आम पुलिस वाले को मार देंगे. अपने बच्चों की शिक्षा और बेहतरी के लिए चौबीस घंटों की नौकरी करने वाले सीआरपीएफ के किसी जवान पर बम या गोला फेंक कर उनकी जान ले लेंगे. लेकिन क्या मजाल कि पूरे देश में किसी अली बाबा या किसी चोर के काले कुत्ते का भी बाल बांका हो जाए. म्यांमार से पाकिस्तान के बीच के इस हिस्से ही नहीं, बल्कि नुश्की से लेकर भामो तक एक जैसा रुदन है. एक जैसे आंसू हैं, लेकिन अली बाबा तो अली बाबा होते हैं. उन्हें सिर्फ़ अपने चारों की फ़िक्र रहती है.

मुझे मेरे देश के महान् अली बाबाओं और उनके चतुर चोरों पर गर्व की अनुभूति है! मैं उनकी इस एक अनूठी कला पर फ़िदा हूं. वे इस महान् देश के बुद्धिशील लोगों की अक्ल निकालकर उन्हें अपना दास बना लेने के खेल में ऐसे उस्ताद हैं कि सम्मोहिनी मंत्री जानने वाला पीर-फ़कीर भी क्या कर ले। वे इस लोकतांत्रिक युग के नए इच्छाधारी नाग हैं.

# लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह व्यंग्य उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है.
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