श्रीराम वनगमन पथ यात्रा 65 दिनों में अयोध्या जी से रामेश्वरम तक 249 तीर्थों से गुजरेगीः डॉ राम अवतार
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Feb 08, 2017, 17:07 pm IST
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नई दिल्लीः श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास की ओर से तीर्थ यात्रियों का एक दल कल यानि 09 फरवरी, 2017 से 13 अप्रैल, 2017 तक अयोध्या जी से रामेश्वरम के बीच मौजूद श्रीराम वनगमन पथ की यात्रा पर निकल रहा है। नई दिल्ली के बाबा खड़क सिंह मार्ग स्थित ऐतिहासिक हनुमान मंदिर परिसर में बृहस्पतिवार को प्रातः काल 08 बजे विदाई यात्रा आयोजित की गयी है।
न्यास के महामंत्री और भारत सरकार द्वारा गठित रामायण पथ सर्किट के अध्यक्ष डॉ राम अवतार ने आज यह जानकारी देते हुए बताया कि यह 11वीं यात्रा है जिसमें दल के सदस्य अयोध्या जी से रामेश्वर के बीच 249 तीर्थों में दर्शन पूजन करने के साथ स्थानीय लोगों के साथ बैठक भी आयोजित करेंगे। ताकि इन तीर्थों का समुचित विकास हो सके। उन्होंने कहा कि श्रीराम भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग है जिनका अमिट प्रभाव भारतीय जनजीवन पर आज भी मौजूद है। डॉ. राम अवतार ने कहा कि त्रेता युग में प्रकट हुए श्रीराम ने अपने जीवन काल में ऐसे काम किए जिनसे वे युग पुरूष के रूप में विख्यात हुए और उन्हें पूर्ण ब्रह्म मानने वाले लोग आज भी उनके पद चिन्हों पर चलना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा कि राम की कथा के बारे में हम सभी जानते हैं पर उनकी लीला भूमियों के बारे में हमारी जानकारी कम है। डॉ. राम अवतार ने कहा कि पिछले 40 वर्षों से लगातार राम जी की लीला भूमियों पर शोध कार्य किया जा रहा है। श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास ने एक अभियान के तहत इन तीर्थों को विकसित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके तहत पहले चरण में तीर्थ स्थल की खोज होती है। दूसरे चरण में इनकी पुष्टि होती है और तीसरे चरण में इनके प्रचार प्रसार का काम शुरू होता है ताकि व्यापक लोगों तक इनकी पहुंच बन सके। डॉ. राम अवतार ने कहा कि न्यास ने अभी तक 10 यात्राओं का आयोजन किया है। व्यापक प्रचार प्रसार और जन अभियान के लिए साधुओं और भक्तों की यात्रा 09 फरवरी, 2017 से शुरू होकर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के नगरों, गांवों, जंगलों, पहाड़ों में स्थित अब तक प्राप्त सभी 249 स्थलों पर जाएगी। शेष स्थलों की खोज होगी। यह यात्रा 65 दिनों में पूरी होगी। डॉ. राम अवतार ने कहा कि यात्रा का उद्देश्य व्यापक जागरूकता है। यात्रा के उद्देश्य 1. श्रीराम वनगमन के शेष स्थलों की खोज 2. स्थलों के बारे में लोक कथा और प्राचीन ग्रंथों में उनके संदर्भ की जानकारी, उनका लेखन प्रकाशन 3. स्थलों के पूर्ण विकास की संभावना और योजना 4. स्तंभ, स्थापना के लिए स्थान तय करना 5. सभी स्थलों पर राम वाटिका की स्थापना के लिए स्थान तय करना 6. जहां आवश्यक हो वहां मंदिर निर्माण के लिए स्थान चिन्हित करना 7. सभी स्थलों पर वनवासी राम वृत्त चित्र का प्रदर्शन करना 8. स्थलों से संबंधित साहित्य वितरण 9. स्थानीय समाचार पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन और अन्य समाचार माध्यम से इन क्षेत्रों का प्रचार-प्रसार 10. सुदूर गांव और वनवासी क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं को संगठित करना 11. प्रत्येक स्थल पर एक-एक समिति का गठन और पूर्व गठित समितियों का सशक्तिकरण डॉ. राम अवतार ने कहा कि इस यात्रा से समाज को भविष्य में इस प्रकार लाभ होगा : - 1. पूर्वजों से प्राप्त श्रीराम संस्कृति की इन धरोहरों को लुप्त होने से बचाया जा सकेगा। इनका संरक्षण संवर्धन होगा। 2. प्राप्त स्थलों को केंद्र और राज्य के पर्यटन मानचित्रों पर अंकित करवाने का प्रयास होगा ताकि देश के पर्यटन/तीर्थाटन क्षेत्र में योगदान हो। 3. सभी स्थलों को सड़क मार्ग से जोड़ने के प्रयास होंगे। 4. इन स्थलों पर वर्तमान में लग रहे मेलों के बारे में जागरूकता फैलने से राजस्व संग्रह और क्षेत्र का विकास होने के साथ-साथ आम लोगों को भी सस्ते उत्पाद मिल सकेंगे। 5. इन स्थलों से निकलने वाली यात्राओं को लाभ होगा। 6. मेले आदि में इन छाया चित्रों की प्रदर्शनी लगेगी जिससे देश के सभी भागों के राम भक्तों को अन्य क्षेत्र में मौजूद श्री राम के तीर्थों के बारे में जानकारी मिलेगी और आपसी भाईचारा बढ़ेगा। 7. जिन स्थलों पर मंदिर नहीं है अथवा जहां मंदिर जीर्ण हैं तथा जहां मंदिर अच्छी स्थिति में हैं सभी के बारे में एक सम्यक विकास योजना के आधार पर काम करने से पूरा देश एकसूत्र में बंधेगा। 8. वनवासियों, गिरिवासियों को दुष्प्रचार व किसी अन्य कारण से भ्रमित करने के प्रयास पर विराम लगेगा। समाज में भारतीय संस्कृति के प्रति विश्वास वा आस्था का वातावरण बनेगा। 9. अयोध्या जी से रामेश्वरम तक राम भक्तों की एक सुदृढ़ श्रृंखला बनेगी। 10. श्रीराम के जीवन मूल्यों के प्रचार-प्रसार से मानवता का सर्वांगीण विकास होगा। 11. वृक्षारोपण से राष्ट्र के पर्यावरण को लाभ मिलेगा। 12. नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए जन जागृति होगी। 13. इस क्षेत्र में पूरातापिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक आदि अनेक क्षेत्रों में शोध के अवसर प्राप्त होंगे। 14. पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तथा देश को आर्थिक लाभ होगा। 15. सभी स्थानों पर शिक्षा और स्वच्छ भारत का संदेश फिल्म प्रदर्शन के माध्यम से दिया जाएगा। डॉ. राम अवतार ने न्यास के कार्यों की जानकारी देते हुए कहा कि संस्थान द्वारा अबतक किए गए कार्य इस प्रकार है : - 1. अयोध्या जी से रामेश्वरम के बीच श्रीराम वनगमन से संबंधित 249 स्थलों की खोज हुई है। 2. श्रीराम की विश्वामित्र मुनि के साथ प्रथम यात्रा अयोध्या – से मिथिला के बीच विश्वामित्र मुनि आश्रम, जनकपुर - अयोध्या जी के बीच 41 स्थानों की खोज हुई है। 3. इस शोध के आधार पर मानचित्रों पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है। 4. जहां-जहां चरण पड़े रघुवर के तथा जहाँ-जहाँ पग धरे राम ने वृत्त चित्र तैयार कर बड़ी संख्या में सीडी, डीवीडी – कैसेट वितरित किए गए हैं। 5. संस्थान की वेबसाइट www.shriramvanyatra.com कार्यरत है। 6. अनेक स्थलों पर वृत्त चित्रों का प्रदर्शन और स्लाइड प्रदर्शन हुआ है। 7. अमेरिका, इंग्लैंड, स्वीटजरलैंड, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, सिंगापुर तथा नेपाल में अनेक गोष्ठियों में इस विषय पर शोध पत्र पड़े गए हैं। वृत्त चित्रों का प्रदर्शन हुआ है। विस्तृत जानकारी न्यास पुस्तक, मानचित्र, वेबसाइट आदि से उपलब्ध। 8. चित्रकूट में श्रीराम संग्रहालय का निर्माण हुआ है। 9. मध्यप्रदेश के सतना में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पुण्य भूमि भारत परियोजना निर्माणाधीन है। 10. 135 स्थलों पर संगमरमर से निर्मित श्रीराम चरण चिन्हों की स्थापना की गयी है। 11. लगभग 270 स्थलों पर श्रीराम यात्राओं के मानचित्र स्थापित किए गए हैं। 12. न्यास के द्वारा अनेक ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं जो भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की ओर से पूरी दुनिया में भिजवाए गए हैं। 13. इसके अतिरिक्त मानचित्र ब्रोशर आदि बड़ी संख्या में वितरित किए गये हैं। 14. न्यास बृहद स्तर पर जनजागरूकता अभियान के लिए लगातार प्रयास रत है। डॉ. राम अवतार ने यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस बार पूरी यात्रा के प्रचार-प्रसार के लिए समाचार संस्था ड्रीम प्रैस कंस्लटेंट्स की ओर से मीडिया भागीदारी की जा रही है जिसके तहत यात्रा का दैनिक विवरण अंग्रेजी में www.facenfacts.com और हिन्दी में www.jantajanardan.com पर प्रकाशित किया जाएगा। |
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