सपा-कांग्रेस गठबंधन: टीम अखिलेश 298 पर लड़ेगी, कांग्रेस के हिस्से 105
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Jan 22, 2017, 17:41 pm IST
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लखनऊः यूपी विधानसभा चुनाव में आखिरकार समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो ही गया. पिछले काफी दिनों से सीट बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियों में खींचतान चल रही थी.
अब कुल 403 विधानसभा सीटों में से 298 पर अखिलेश के कैंडिडेट्स चुनाव लड़ेंगे, जबकि कांग्रेस को 105 सीटें मिली है. आज शाम साढ़े 5 बजे सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम और कांग्रेस नेता राजबब्बर संयुक्त रूप से इस गठबंधन का ऐलान करेंगे. दरअसल शनिवार देर रात तक टिकट बंटवारे को लेकर दोनों पार्टियों के बीच बैठकों का दौर जारी था, कांग्रेस कम से कम 120 सीटें मांग रही थी, और सपा 100 सीटें देने को राजी थी. फिर खुद प्रियंका गांधी ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला. देर रात रामगोपाल यादव और प्रियंका के बीच दिल्ली में मुलाकात हुई, उसके बाद प्रियंका की ओर से कांग्रेस के सीनियर लीडर्स ने अखिलेश और उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से भी बातचीत की. हालांकि इस बीच सपा ने कांग्रेस के कुछ सीटिंग विधायकों की सीट पर भी उम्मीदवार घोषित कर दिए थे. जिस वजह से गठबंधन पर संशय के बादल मंडरा रहा था. मनमाफिक सीटें न मिलने से मायूस कांग्रेस के शीर्ष धड़े ने हार नहीं मानी. गठबंधन की खातिर प्रियंका गांधी ने नई दिल्ली में रामगोपाल से मुलाकात की, तो वहीं दूसरी ओर सीएम अखिलेश यादव और कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बीच लखनऊ में दो बार बैठकें हुईं. जिसके बाद सपा कांग्रेस को 105 सीटें देने पर राजी हुई. कांग्रेस सूत्रों ने शनिवार को बताया था कि जब तक अखिलेश को सपा का नाम और साइकिल चुनाव चिन्ह नहीं मिला था, तब तक उन्होंने कांग्रेस को 142 सीटें दे रखी थीं. अखिलेश ने ये बात लिखकर कांग्रेस को दी थी लेकिन समाजवादी पार्टी और साइकिल मिलने के बाद अखिलेश ने मजबूरी बताते हुए 121 सीटें ऑफर कीं. इसके बाद जब 121 पर कांग्रेस ने हां की, तो वो 100 पर अटक गए थे. अखिलेश का कहना था कि नेताजी की 38 लोगों की सूची को एडजस्ट करना है. बताया गया कि एक वक्त कांग्रेस 110 सीटों पर भी मान गई थी, लेकिन तब अखिलेश ने कहा कि कुछ पुराने और आज़म खान सरीखे नेताओं की सीटों की मांग आ गई है, मेरी पार्टी के कई लोग पार्टी छोड़ रहे हैं. इसलिए 100 से ज़्यादा सीटें नहीं दे पाएंगे. हालांकि आखिर में 105 सीटों पर बात बन गई. सपा को क्या होगा फायदा #यूपी में 19 फीसदी के आसपास मुस्लिम मतदाता है, जिनका 39 फीसदी वोट 2012 विधानसभा चुनावों में सपा को मिला था. #एक्सपर्ट्स का मानना है कि यूपी में अयोध्या कांड के बाद से सपा ही एकमात्र मुस्लिम वोटर्स का ठिकाना रही है, जबकि बचा हुआ 34 फीसदी वोट अन्य दलों में बंट जाता है. जिसमें से 2012 विधानसभा में कांग्रेस के पास 18 फीसदी वोट आया था. #एक्सपर्ट्स की राय में मुस्लिम ढाई दशक से ज्यादा भाजपा को हारने के लिए एक तरफा वोट करता है, जिसका फायदा सपा-कांग्रेस गठबंधन को मिल सकता है. #वहीं, कांग्रेस को कम ही सही, लेकिन अगड़ों का भी वोट मिलता रहा है. इसका फायदा भी सपा को मिल सकता है. #प्रशांत किशोर, शीला दीक्षित को ब्राह्मण वोटों के लिए लाए थे। यूपी में 18% सवर्ण हैं। इनमें 11 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं, जो करीब 125 सीटों पर असर डालते हैं। पूर्वांचल में इनका काफी प्रभाव माना जाता है। ऐसे में माना जा रहा है कि ब्राह्मण वोटों का भी कुछ हिस्सा गठबंधन के खाते में आ सकता है. #यही वजह रही कि वर्तमान में सपा में हुई उठा-पटक की वजह से कांग्रेस को साथ लेकर चलने का फार्मूला अखिलेश ने निकाला है. #अखिलेश शुरू से ही यही कहते रहे कि अगर सपा-कांग्रेस साथ आते हैं तो 300 सीटें इस गठबंधन को मिल सकती है. सपा को क्या होगा नुकसान #एक्सपर्ट्स की मानें तो साल 1989 के बाद चाहे लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव हो कांग्रेस यूपी में अपना जनाधार खोती चली गई. #1989 में हुए चुनाव में कांग्रेस के पास 94 सीट थी, जबकि 1991 में 46 सीट हुई। फिर 1993 में 28 सीट कांग्रेस को मिली। वहीं, 1996 में थोड़ा सुधार हुआ तो 33 सीट मिली। फिर 2002 में 25 सीटों पर ही कांग्रेस को संतोष करना पड़ा। फिर 2007 में कांग्रेस को 22 सीट मिली और 2012 में 28 सीट मिली. #ऐसे में कांग्रेस के पास यूपी में ऐसा कोई खास इलाका नहीं है, जहां उसका जनाधार बचा हो. #वहीं, कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले जिले अमेठी, रायबरेली और सुल्तानपुर में भी सपा ने खुद 2012 में सेंध लगाई थी. #इन तीन जिलों में 15 सीटों पर 12 पर सपा ने जीत दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस को 2 सीट और पीस पार्टी को 1 सीट मिली थी. #ऐसे में अगर कांग्रेस 105 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारती है तो 298 सीटों पर टिकट की आस लगाए बैठे कांग्रेस के नेता निराश होंगे. #ऐसे में वह उन सीटों पर सपा प्रत्याशी को नुकसान पहुंचा सकते हैं. #दरअसल, कहा जा रहा है कि दोनों दल एक दूसरे को वोट ट्रांसफर करवाएंगे, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है. कांग्रेस को क्या होगा फायदा #2012 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थी। एक्सपर्ट्स को उम्मीद है कि गठबंधन होने से कांग्रेस की 8 से 10 सीट बढ़ सकती है. #दरअसल, यह उम्मीद इसलिए भी है क्योंकि 2012 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 32 सीट पर दूसरे नंबर पर थी, जबकि इसमें से 3 सीट ऐसी थी जहां कांग्रेस महज 500 वोट के अंतर से हारी थी. #वहीं, 18 सीट ऐसी थी, जहां कांग्रेस 5 हजार से 15 वोट से हारी थी. जानकार कहते हैं कि यह मार्जिन बताता है कि कांग्रेस के जो परम्परागत वोटर हैं वह सुप्तावस्था में है. अगर कांग्रेस अच्छे कैंडिडेट उतारे तो उसे फायदा मिल सकता है. #इसका एग्जाम्पल भी 2012 में सामने आया, जब कांग्रेस के कैंडिडेट्स की लगभग 250 सीटों पर जमानत ही जब्त हो गई. #एक्सपर्ट्स कहते हैं कि यह भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस 2017 में गठबंधन कर सपा से कम सीट मांग रही हो, लेकिन डील 2019 लोकसभा को लेकर भी हो सकती है कि वहां ज्यादा सीट लेंगे. कांग्रेस को क्या होगा नुकसान #एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यूपी में कांग्रेस का जो जनाधार है वह अब कांग्रेस के बड़े नेताओं का व्यक्तिगत जनाधार ही बचा हुआ है, जिसमे प्रमोद तिवारी, श्रीप्रकाश जायसवाल, जितिन प्रसाद, सलमान खुर्शीद जैसे लगभग यूपी के 2 दर्जन बड़े नेता शामिल हैं. #कांग्रेस अगर शीला दीक्षित को सीएम फेस के तौर पर अब प्रेजेंट नहीं करेगी तो जिस 10 फीसदी ब्राह्मण वोट को लेकर कांग्रेस ने अपना कैम्पेन शुरू किया था उसका भी उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है. #कई नेता जो करीबी अंतर से 2012 में हारे थे अब वह टिकट का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अब गठबंधन की वजह से उन्हें टिकट नहीं मिलेगा। इसी वजह से वह अब वह पार्टी भी छोड़ेगे। इसीलिए कानपुर के बिठूर से अभिजित सिंह राणा, जोकि कांग्रेस के नेता थे उन्होंने टिकट के लिए ही कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन कर ली. #एक्सपर्ट्स का मानना है कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है। ऐसे में चुनावों में उसकी सीटें पहले ही कम होती जा रही है। अब अगर चुनाव लड़ने के लिए भी अब 105 सीटों पर उतरेगी तो अगले चुनाव में वह टिक भी नहीं पाएगी. |
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