नोटबंदी से गरीबों की परेशानियां बढ़ीं, उनकी तुरंत मदद होः राष्ट्रपति मुखर्जी राज्यपालों से

नोटबंदी से गरीबों की परेशानियां बढ़ीं, उनकी तुरंत मदद होः राष्ट्रपति मुखर्जी राज्यपालों से नई दिल्लीः नोटबंदी को लेकर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पहली बार बोलते हुए कहा कि इस कदम से गरीबों की परेशानियां बढ़ी हैं. राष्ट्रपति ने साथ ही आगाह किया कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में अस्थाई मंदी आ सकती है.

राष्ट्रपति ने देश भर के राज्यपालों और उपराज्यपालों को संबोधित करते हुए नोटबंदी का जिक्र किया. राष्ट्रपति ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये दिए गए अपने संदेश में कहा कि नोटबंदी से निश्चित ही गरीबों की परेशानियां बढ़ी हैं.

उन्होंने कहा कि नोटबंदी से कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में ताकत मिलेगी, लेकिन इससे फिलहाल अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर भी प्रभाव पड़ेगा. इससे अस्थायी आर्थि‍क मंदी संभव है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि पीएम के पैकेज से राहत की उम्मीद है.

राष्ट्रपति ने कहा कि 'वह इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि गरीबों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशें हो रही हैं और संभवत: नोटबंदी से लंबे समय में गरीबों को फायदा होगा.

'हालांकि इसके साथ ही राष्ट्रपति ने कहा 'उन्हें संदेह है कि गरीब इतना लंबा इंतजार नहीं कर सकते. इसलिए यह जरूरी है कि उन्हें तत्काल प्रभाव से मदद मुहैया कराई जानी चाहिए, ताकि वे भी भूख, बेरोजगरी और शोषण रहित भारत की ओर अग्रसर हो सकें.

राष्ट्रपति ने साथ ही पांच राज्यों में अगले महीने शुरू होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर कहा कि चुनाव अक्सर वोट बैंक पॉलिटिक्स पर लड़ा जाता है. इसके लिए विभिन्न समुदायों के बीच तनाव पैदा किया जाता है, जिससे समाज को नुकसान होता है. ऐसे में समाज में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए राज्यपाल और उपराज्यपाल को अहम भूमिका निभानी चाहिए.

नए साल में राज्यपालों और उप राज्यपालों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने वर्ष 2016 को मिला-जुला करार दिया, जिसमें शुरुआत में अर्थव्यवस्था में तेजी देखी गई, लेकिन अंत में वैश्विक वजहों से निर्यात नरम रहा. उन्होंने कहा कि इस नुकसान की भरपाई घरेलू उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाकर की जा सकती है.

राष्ट्रपति ने राज्यपालों से यह भी अपील की कि वे अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल एकता की भूमिका निभाने में करें क्योंकि इस साल सात राज्यों में चुनाव की वजह से समाज में दरार बढ़ सकती है. उन्होंने कहा कि भारत की ताकत उसकी विविधता में निहित है.

मुखर्जी ने कहा कि सार्वजनिक चर्चा के दौरान हमेशा ही अलग-अलग विचार हो सकते हैं. हम तर्क दे सकते हैं. असहमत हो सकते हैं. लेकिन हम विचारों की बहुलता की मौजूदगी को हम दरकिनार नहीं कर सकते. लेकिन मोदी सरकार के नोट बदलने के फैसले और पात्रता आधारित दृष्टिकोण खत्म करने की परोक्ष आलोचना पर राष्ट्रपति के विचार महत्त्वूपर्ण हैं. पात्रता के आधार वाले दृष्टिकोण की शुरुआत कांग्रेस की पिछली सरकार ने की थी, जिसमें वे खुद भी अहम पद पर थे.

मुखर्जी ने कहा कि कालेधन और भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई में नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था में अस्थायी रूप से मंदी आ सकती है।. ऐसे में हम सभी को ज्यादा सतर्क रहना पड़ेगा जिससे कि गरीबों को कोई दिक्कत न हो। लंबी अवधि में संभावित प्रगति की उम्मीद में ऐसा हो सकता है.

उन्होंने गरीबी मिटाने के लिए पात्रता वाले नजरिये के बजाय उद्यमी वाला दृष्टिकोण अपनाने की सराहना की. राष्ट्रपति ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हाल में घोषित उपायों से कुछ राहत मिलेगी. उन्होंने कहा कि वर्ष 2016 की शुरुआत अच्छी हुई थी और इस वित्त वर्ष पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद में 7.2 फीसदी तक की वृद्घि हुई थी. यह इस बात का संकेत था कि भारत की अर्थव्यवस्था ठोस है.

राष्ट्रपति के इस बयान पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि अगर इसे प्यार की भाषा में कहें, तो यह घर के शैतान बच्चे को कान ऐठ कर रास्ता दिखाने जैसा है. मगर जिसको रास्ता दिखाया जा रहा है, वह इतना ज़िद्दी और उद्दंडी है कि वह सुनने को तैयार नहीं.

उन्होंने कहा, देश के प्रथम नागरिक और हमारे महामहीम ने सरकार को तीन नसीहतें दी हैं. नोटबंदी की वजह अर्थव्यवस्था में अस्थायी रूप से नरमी आने की जो बात राष्ट्रपति ने कही, मोदी सरकार को उस पर ध्यान देना चाहिए.

राष्ट्रपति की कही दूसरी अहम बात कि गरीब ज्यादा दिनों तक ये परेशानियां नहीं सकते, ऐसे में मोदी सरकार को तत्काल संभव उपाय करने चाहिए. लेकिन मोदी जी की सरकार अब आम लोगों की भलाई की जगह सूट-बूट की सरकार हो गई है. गरीबों के अधिकार को बदलकर अब बड़े उद्योगपतियों की सरकार बन गई है.

इससे पहले भी कई रिपोर्टों में नोटबंदी की वजह से इकॉनमी की रफ्तार सुस्‍त होने की आशंका जताई जा चुकी है. साथ ही टाटा स्‍टील सहित कई कंपनियां भी कह चुकी हैं कि इस फैसले से उनका कारोबार प्रभावित हुआ है.

दो दिन पहले ही अमेरिका के एक प्रमुख अर्थशास्‍त्री स्टीव एच. हांके ने कहा था कि भारत में 'नकदी पर हमले' से जैसी उम्मीद थी, इसने अर्थव्यवस्था को मंदी के रास्ते पर धकेल दिया है. हांके ने इसके साथ ही कहा था कि नोटबंदी की वजह से भारत 2017 में आर्थिक वृद्धि के मामले में नेतृत्व के मंच से नीचे खिसक सकता है.

बता दें कि मोदी सरकार ने 8 नवंबर को 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को चलन से बाहर कर दिया था. इस फैसले के पीछे की वजह कालेधन और फर्जी नोटों पर लगाम कसना बताया गया था.
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