मानव कल्याण के लिए कालचक्र पूजा
जनता जनार्दन डेस्क ,
Jan 04, 2017, 8:25 am IST
Keywords: Kalachakra puja Buddhist sect Gyansthli Bodhgaya 34th Kalachakra puja बोधगया में कालचक्र पूजाधार्मिक अनुष्ठानधर्मगुरु दलाई लामा
पटनाः बौद्ध संप्रदाय में ज्ञानस्थली के रूप में विख्यात बिहार के बोधगया में दो जनवरी से प्रारंभ हुई 34वीं कालचक्र पूजा में भाग लेने के लिए लाखों बौद्ध धर्म अनुयायी यहां पहुंचे हैं। कालचक्र अनुष्ठान दुनियाभर के उन लोगों को एकसाथ लाने का महान अनुष्ठान है, जो लोग मानवता के पक्षधर हैं, जिनके मन में करुणा, दया, सत्य, शांति और अहिंसा जैसे महान मानवीय मूल्यों के प्रति श्रद्धा और आस्था है।
बोधगया में कालचक्र पूजा की शुरुआत सोमवार को हुई। इस धार्मिक अनुष्ठान का शुभारंभ तिब्बतियों के काज्ञू पंथ के धर्मगुरु दलाई लामा ने किया। बोधगया में पांचवीं बार कालचक्र पूजा का आयोजन किया जा रहा है। 34वीं कालचक्र पूजा समिति के सचिव तेनजीन लामा ने बताया कि कालचक्र पूजा विश्व शांति के लिए की गई अनूठी और शक्तिशाली प्रार्थना मानी जाती है। वे कहते हैं, ''महायान परंपरा में तंत्र साधना के माध्यम से कालचक्र अभिषेक के द्वारा शांति, करुणा, प्रेम व अहिंसा की भावना को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास जाता है।'' वे बताते हैं कि दलाई लामा ने बड़ी स्पष्ट और व्यावहारिक व्याख्या की है। उनका कहना है कि बौद्ध धर्म शांति और अहिंसा को मानने वाला है। इसमें धर्मयुद्ध का मतलब लोगों से युद्ध करना नहीं, बल्कि संसार में फैली बुराइयों से, दूषित चित्तवृत्तियों से लड़कर, उन्हें हराकर मानवता के, विश्वकल्याण के, सत्य-शांति-अहिंसा के धर्म का शासन स्थापित करना है। कालचक्र पूजा इसी का सार है। बोधगया में सारनाथ तिब्बती विश्वविद्यालय में शोध विभाग में कार्यरत प्रोफेसर एलडी वलिंग बताते हैं कि कालचक्र का अर्थ है 'समय का चक्र'। उन्होंने बताया कि कालचक्र पूजा एक तंत्र का अभिषेक है। यह एक तांत्रिक अनुष्ठान भी माना जाता है। कालचक्र अभिषेक में बौद्ध कर्मकांड को लेकर प्रवचन तथा अंत में दीक्षा शामिल है। कालचक्र की शुरुआत देवताओं के आह्वान और वान मंडाला का निर्माण और भूमि पूजन कर की जाती है। पूजा स्थल पर एक कुंड बनाया जाता है। धर्मगुरु की उपस्थिति में दक्ष लामा द्वारा पानी भरा जाता है। इसके बाद तंत्र के प्रतीक 'मंडला' का निर्माण प्रारंभ किया जाता है। मंडला निर्माण में धर्मगुरु की सहायता दक्ष लामा करते हैं। मंडला के बाहर धर्मगुरु द्वारा धार्मिक मंत्र उकेरा जाता है। मंडला को बुरी आत्माओं से दूर रखने के लिए लामाओं द्वारा पारंपरिक परिधान व वाद्ययंत्र के साथ नृत्य किया जाता है। पूजा समापन के बाद श्रद्धालु मंडला का दर्शन करते हैं और अंत में इसे तालाब या नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। रावलिंग बताते हैं, ''प्राचीन नालंदा, राजगीर और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के माध्यम से कालचक्र तंत्र का खूब प्रचार-प्रसार हुआ, कालांतर में कालचक्र तंत्र का महत्व बौद्धतंत्रों में लगातार बढ़ता गया। यही कारण है कि बौद्ध धर्म के टीकाकारों तथा बौद्ध आचार्यो ने 'कालचक्र तंत्र' को तंत्रराज, आदिबुद्ध और बृहदादिबुद्ध नाम दिए हैं।'' उल्लेखनीय है कि पहली कालचक्र पूजा 1954 में नोरबुलिंगा, तिब्बत में हुई थी, वहीं 332वीं कालचक्र पूजा जुलाई 2015 में लेह, लद्दाख में आयोजित की गई थी। बोधगया में इसके पूर्व 1974, 1985, 2002 और जनवरी 2012 में कालचक्र पूजा का आयोजन किया गया है। तेनजीन लामा कहते हैं, ''कालचक्र धार्मिक पूजा या अनुष्ठान का एक सामाजिक पक्ष है, जिसके मूल में मानवता की भावना निहित होती है, सामाजिक समरसता की भावना निहित होती है। अन्य धर्मो और मतों के द्वारा बड़े स्तर पर आयोजित किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों और आयोजनों-विधानों की तुलना में बौद्ध धर्म की परंपरागत कालचक्र पूजा का स्थान श्रेष्ठ है।'' उन्होंने कहा कि अन्य धर्मो की तरह बौद्ध धर्म की कालचक्र पूजा में शामिल होने के लिए जाति-धर्म का कोई बंधन नहीं है। बोधगया में 34 वें कालचक्र पूजा का समापन 14 जनवरी को होगा। इस पूजा में जापान, भूटान, तिब्बत, नेपाल, म्यांमार, स्पेन, रूस, लाओस, वर्मा, श्रीलंका के अलावा कई देशों के बौद्ध श्रद्धालु और पर्यटक भाग ले रहे हैं। कालचक्र पूजा को बौद्ध श्रद्घालुओं का महाकुंभ कहा जाता है। यह उनकी सबसे बड़ी पूजा है। इस प्रार्थना की अगुआई तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ही करते हैं। |
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