नोटबंदी के बाद आरबीआई की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा : घट सकती है आपके लोन पर ईएमआई

नोटबंदी के बाद आरबीआई की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा : घट सकती है आपके लोन पर ईएमआई नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के गवर्नर उर्जित पटेल द्वारा आज मौद्रिक नीति की समीक्षा पेश की जानी है. कयास लगाए जा रहे हैं कि वह इस दौरान ब्याज दरों में कटौती का ऐलान लेंगे. इस बाबत उम्मीदें इसलिए भी बलवती हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को अमान्य करार देकर विमुद्रीकरण का जो गंभीर फैसला लिया था उसका असर देश की अर्थव्यवस्था के हर हिस्से में नकारात्मक तौर पर देखा जा रहा है. न सिर्फ उपभोक्ता स्तर पर बल्कि आपूर्ति के स्तर पर भी, नोटबंदी का जबरदस्त असर पड़ा है. ऐसे में विशेषज्ञों के बीच केवल इसी बात को लेकर मतभेद है कि दरों में कितनी कटौती होगी, बनिस्पत इसके कि कटौती की जाएगी या नहीं. ज्यादातर विशेषज्ञ कह रहे हैं कि आरबीआई 25 बेसिस पॉइंट की कटौती कर सकता है जबकि कुछ का कहना है कि कटौती 50 बेसिस पॉइंट तक हो सकती है. यदि कटौती की जाती है तो लोन पर भी ब्याज दरें कम होंगी जोकि सीधे तौर पर कस्टमर के हित में होगा.

आइए जानें नोटबंदी के बाद की आरबीआई की पहली मौद्रिक नीति समीक्षा से जुड़ी 10 बातें

1) आरबीआई की 6 सदस्यीय समिति बुधवार यानी आज दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर इस बाबत ऐलान करेगी. यदि बैंक 25 बेसिस पॉइंट की कटौती करता है तो इससे रेपो रेट 6 फीसदी हो जाएगा जोकि सितंबर 2010 से लेकर अब तक का निम्नतर स्तर है.

2) आकंड़े बताते हैं कि नकद की महत्ता के चलते नोट बैन ने देश की अर्थव्यवस्था को आशंका से कहीं ज्यादा बड़ा झटका दिया है. ऑटो सेक्टर में बिक्री बुरी तरह घटी है और सेवा क्षेत्र में गतिविधियां बहुत ही धीमी हो गई हैं. डेढ़ साल में इतनी कम हलचल सेवा सेक्टर में पिछले ही महीने देखी गई.
3) विशेषज्ञ चेता चुके हैं कि विमुद्रीकरण का असर 2018 तक रह सकता है. कई विदेशी ब्रोकरेज फर्मों ने आर्थिक वृद्धि की ग्रोथ का अनुमान पहले ही घटा लिया है. विशेषज्ञ आरबीआई की ओर से ग्रोथ को लेकर किए जाने वाले अनुमान पर भी नजर रखेंगे.

4) यदि रेट कट किया जाता है तो इसका अर्थ होगा कि आरबीआई की प्राथमिकता इकॉनमी को सपोर्ट करने की है जोकि जुलाई से लेकर सितंबर तक की तिमातही में 7.3 फीसदी थी. यह दुनिया में किसी इकॉनमी के ग्रोथ के स्तर पर सबसे तेज ग्रोथ रेट है लेकिन सभी को रोजगार बनाए रखने के हिसाब से यह कम है.

5) वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत जैसे उभरते हुए बाजार के लिए अमेरिका में प्रेजिडेंट के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप का चुना जाना भी अपने आप में दबाव की माफिक है. ऐसा उनकी नीतियों को लेकर अनुमान आदि को लेकर है.

6) ट्रंप के अमेरिका में प्रेजिडेंट चुने जाने के बाद से लेकर अब तक विदेशी निवेशकों ने नवंबर में भारतीय डेट और इक्विटीज में से 4.7 बिलियन डॉलर की कुल बिकवाली की है. इससे रुपए पर डॉलर के मुकाबले जबरदस्त दबाव पड़ा है उसमें बेहद कमजोरी देखी गई है. इससे मुद्रास्फीति पर भी असर देखा जा सकता है, हालांकि अक्टूबर में यह घटकर 4.2 फीसदी हो गई थी. जबकि आरबीआई ने मार्च 2017 के लिए ही अपना लक्ष्य 5 फीसदी रखा था.
7) ओपेक के आउपुट में कमी करने के फैसले के बाद तेल की कीमतों में तेजी से वृद्धि देखी गई. यह 30 नवंबर के बाद से चढ़ान पर है. इसका मुद्रास्फीति और घरेलू आर्थिक ग्रोथ पर भी असर पड़ सकता है.

8) वैसे बता दें कि आरबीआई का रेट का ऐलान जोखिमरहित नहीं होने जा रहा है.  कुछ विदेशी निवेशक यह पहले ही चेता चुके हैं कि यदि यह रेट कट करता है तो इसका अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को लेकर अपने फोकस से भटक रहा है.

9) यदि आरबीआई रेट कट करता है तो इसका अर्थ यह होगा कि ज्यादा से ज्यादा बैंक भी ब्याज दरों में कटौती करेंगे जिसका सीधा सा लाभ ग्राहकों को होगा और ग्राहकों की ईएमआई घटेगी.

10) पिछले महीने, आरबीआई ने नोटबंदी के बाद कैश को लेकर उपजी समस्या से निपटने के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए थे जिसमें से एक नकद निकासी को लेकर भी था.
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