बसपा से नेता जाते है वोटर नही

बसपा से नेता जाते है वोटर नही

वाराणसी: अमित मौर्या की कलम से  बहुजन समाज पार्टी देश में ऐसी पार्टी है जिसे छोड़कर नेता जाते है पर वोटर नही जाते इसलिए मायावती व बहुजन समाज पार्टी पर कोई फर्क नही पड़ता जिस जिस नेता ने पार्टी छोड़ी या मायावती ने पार्टी से निकाला वो आज तक अपना राजनैतिक भविष्य तलाश रहे है।

दददू प्रसाद जुगल किशोर दारा सिंह चौहान या कोई भी नेता अभी तक वो कद हासिल नही कर पाया जो कद उनका बसपा में था हा स्वामी प्रसाद मौर्य भी बीजेपी में कुछ सम्मान जरूर पा गये लेकिन वो सम्मान उनके कद के गरिमा के अनुकूल नही है।

सारे नेता एक ही आरोप लगाते है मायावती दलित नही दौलत की बेटी है वो टिकट के लिए पैसा लेती है इसमें अगर थोड़ी बहुत भी सच्चाई है तो गलत ही क्या बसपा ने कभी भी किसी उद्योगपति से कभी शायद ही पार्टी फंड लिया हो मामूली सा ग्राम प्रधान का चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी 10 लाख से लेकर 15 लाख तक खर्च कर देता है.वो भी 800 या 1000 वोटो के लिए यदि विधायक पद के प्रत्याशी टिकट के किये करोड़ 2 करोड़ पार्टी फंड देते है तो बदले में उन्हें पार्टी का रिजर्व वोट भी मिलता है.

बसपा का हर विधानसभा में 30हजार से लेकर 50000 तक का फिक्स वोट बैंक है.

अगर 800 या 1000 वोट पाने के लिए प्रधान पद के प्रत्याशी 10 लाख से लेकर 15 लाख खर्च करते है तो उस हिसाब से विधायक पद के प्रत्याशी बसपा के वोट बैंक के हिसाब से करोड़ 2 करोड़ टिकट के लिए पार्टी फंड जमा करना कोई घाटे का सौदा नही है.

वैसे देखा जाय तो किसी भी संस्था को चलाने के लिए फंड की सबसे पहले आवश्यकता पड़ती है बगैर पैसे के किसी भी संस्था का संचालन हो ही नही सकता इसलिए कांशीराम ने एक वोट के साथ एक नोट का नारा दिया उनका भी यह मानना था.

किसी पूँजीपति उद्योगपति के सहयोग से पार्टी नही खड़ी करनी है इसके लिए उन्होंने सबसे पहले दलित उसमे से भी विशेष हरजन वर्ग में सरकारी नौकरी के लोगो को संघटित कर पार्टी को आर्थिक मजबूत करने की अपील की और बामसेफ का गठन किया।

कहने को तो बैकवर्ड माइनारिटी शेड्यूल कास्ट का संघटन है लेकिन इसमें सबसे अधिक हरिजन वर्ग के लोग ही है देखा जाय तो सारे अदर बैकवर्ड भी शुद्र की श्रेणी में आते है. क्योंकि जाती विशेष के लोगो को चार भागों में बाँट दिया।

ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र इसलिए सारे बैकवर्ड शुद्र ही है हां बात करते है कि मायावती के पैसे लेने की तो ये परम्परा कांशीराम के जमाने से चली आ रही है कि जो भी बसपा का टिकट लेगा उसे पार्टी फंड जमा करना पड़ेगा।

बसपा में वही परम्परा चली आ रही है और इसमें गलत कुछ भी नही क्योकि पैसाखुदा तो नही पर खुदा से कम भी नही बगैर पैसे के तो लाश भी नही फुकी जाती साहब फिर तो ये चुनाव है फिक्स वोट पाने के लिए पैसा तो खर्च करना ही पड़ेगा।

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