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स्क्रब टाइफस: हिमाचल से चली इस खतरनाक बीमारी का इलाज

जनता जनार्दन डेस्क , Sep 29, 2016, 15:03 pm IST
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स्क्रब टाइफस: हिमाचल से चली इस खतरनाक बीमारी का इलाज नई दिल्ली: हिमाचल के जंगलों से निकली एक नई बीमारी अब शहरों में मौजूद घरों तक भी अपनी पहुंच बनाने लगी है। इस नई बीमारी का नाम स्क्रब टाइफस  है और इसके चलते अभी तक 24 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 855 से ज्यादा लोग इसकी चपेट में है। इसके लक्षण एकदम डेंगू और चिकनगुनिया की तरह हैं और इसी के चलते लोगों में आमतौर पर इसका पता लगाना और भी मुश्किल हो जाता है। ये बीमारी घास में मौजूद पिस्सुओं के काटने से होती है और देखभाल न किए जाने पर इससे मौत भी हो सकती है।

आइये जानते हैं क्या है ये बीमारी
स्क्रब टाइफस घास में मौजूद एक विशेष प्रकार के पिस्सू  की वजह से होता है। इस पिस्सू के काटने से उसकी लार में मौजूद एक बेहद खतरनाक बैक्टीरिया रिक्टशिया सुसुगामुशी मनुष्य के रक्त में फैल जाता है। सुसुगामुशी दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका मतलब होता है सुसुगा यानी के छोटा और बेहद खतरनाक और मुशी मतलब माइट। इसके काटने से डेंगू की तरह प्लेटलेट्स की संख्या घटने लगती है। ये खुद तो संक्रामक नहीं है लेकिन इसकी वजह से शरीर के कई अंगों में संक्रमण फैलने लगता है। इसकी वजह से लिवर, दिमाग व फेफड़ों में कई तरह के संक्रमण होने लगते हैं और मरीज मल्टी ऑर्गन डिसऑर्डर के स्टेज में पहुंच जाता है। ये पिस्सू पहाड़ी इलाके, जंगल और खेतों के आस-पास ज्यादा पाए जाते हैं।

इस बीमारी ऐसे पहचान सकते हैं

इस बीमारी के ज्यादातर लक्षण चिकनगुनिया और डेंगू से मिलते-जुलते हैं। इस पिस्सू के काटने से पहले तेज़ बुखार (करीब 103 से 104 डिग्री फारेनहाइट) चढ़ता है। इसके साथ ही सिरदर्द, खांसी, मांसपेशियों में दर्द और शरीर में कमजोरी भी आने लगती है। सबसे ख़ास बात ये है कि पिस्सू के काटने वाली जगह पर फफोलेनुमा काली पपड़ी जैसा निशान दिखता है। इस बीमारी का इलाज़ वक़्त पर न किया जाए तो ये गंभीर रूप ले लेता है और निमोनिया में बदल जाता है। इससे बीमार कुछ रोगियों में देखा गया है कि लीवर और किडनी भी इस बीमारी के होने पर ठीक से काम नहीं करते जिससे लोग बेहोश तक हो जाते हैं। प्लेटलेट्स के घटने को इसका सबसे सामान्य लक्षण माना जाता है।


क्या करें अगर इसका शक हो
इसकी पहचान ज्यादातर लक्षणों के आधार पर ही की जाती है। हालांकि ब्लड टेस्ट, सीबीसी काउंट और लिवर फंक्शनिंग टेस्ट के जरिए इसका ठीक-ठीक पता लगाया जा सकता है। एलाइजा टेस्ट और इम्युनोफ्लोरेसेंस टेस्ट से स्क्रब टाइफस एंटीबॉडीज का पता लगाते हैं। इसके लिए 7-14 दिनों तक दवाओं का कोर्स चलता है। इस दौरान मरीज को लिक्विड डाइट लेने और तेल से बनी चीज़ों से परहेज करने की सलाह दी जाती है। कमजोर इम्युनिटी या जिन लोगों के घर के आसपास यह बीमारी फैली हुई है उन्हें डॉक्टर हफ्ते में एक बार प्रिवेंटिव दवा भी देते हैं।


हिमाचल में स्थिति बिगड़ी और शहरों तक भी पहुंची बीमारी
बता दें कि दिल्ली के  में भी इस बीमारी से जूझ रहे 30 से ज्यादा मरीज़ इलाज करा रहे हैं। जानकारों के मुताबिक शहरों में भी बारिश के मौसम में जंगली पौधे या घने घास के पास इस पिस्सू के काटने का खतरा बना हुआ है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे. पी. नड्डा ने 'स्क्रब टाइफस' बीमारी से निपटने में हिमाचल प्रदेश सरकार को हर संभव मदद का भरोसा दिया है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय को 'स्क्रब टाइफस' पर हिमाचल प्रदेश सरकार की विस्तृत रपट मिल गई है। नड्डा ने कहा कि केन्द्रीय मंत्रालय राज्य सरकार के अनुरोध पर एक विशेषज्ञ समिति भेजने के लिए तैयार है। नड्डा ने जोर देकर कहा, "मंत्रालय बहुत ही बारीकी से इस पर नजर बनाए हुए है और इस स्थिति से निपटने के लिए मंत्रालय हिमाचल सरकार को हर तरह की मदद देगा।"

उन्होंने कहा कि इससे हिमाचल सरकार को भी अवगत करा दिया गया है।स्वास्थ्य मंत्री ने समुदाय स्तर पर लोगों द्वारा किए जाने वाले निवारक कदम के बारे में सघन जागरूकता अभियान शुरू करने की जरूरत पर बल दिया। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों को सजग और किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार रहने का भी निर्देश दिया एवं स्क्रब टाइफस के बारे में जागरूकता फैलाने, रोकथाम और नियंत्रण के लिए किए जा रहे उपायों के बारे में भी जानकारी रखने को कहा है।स्क्रब टाइफस ओरिएटिया सुतसुगामुसी जीवाणु के कारण होने वाली एक गंभीर बीमारी है, जो मिट्टी में मौजूद संक्रमित लार्वा घुन के काटने से फैलता है। हिमाचल एक ऐसा स्थानिक क्षेत्र है जहां स्क्रब वनस्पति प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
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