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कश्मीर घाटी में शांति द्वीप बना हुआ है श्रीनगर

कश्मीर घाटी में शांति द्वीप बना हुआ है श्रीनगर श्रीनगर: गलियां सूनी पड़ी हैं, पुलिस और अर्धसैनिक बलों का दस्ता गश्त पर है और स्थानीय निवासी अपने-अपने घरों में दुबके हुए हैं. कश्मीर घाटी में ताजा अशांति का एक पखवारा बीत चुका है और बेहद घनी आबादी वाले श्रीनगर में इस बीच कर्फ्यू में कोई ढील नहीं दी गई है.

कभी कश्मीर का यह इलाका चारो ओर फैली ताजा जलधाराओं के कारण 'पूर्व का वेनिस' कहलाता था, हालांकि अब वे जलधाराएं लुप्त हो चुकी हैं और लंबे समय से यह इलाका राजनीतिक रूप से अस्थिर रहने लगा है और अलगाववादी राजनीति करने वालों का अड्डा बन चुका है.

लेकिन चौंकाने वाली बात है कि श्रीनगर का यह शहरी इलाका, जहां हिंदू और मुस्लिम धर्मस्थल काफी संख्या में हैं, बेहद हिंसक दिनों में भी अपेक्षतया शांतिपूर्ण ही रहता है.

उल्लेखनीय है कि आठ जुलाई को हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों हुई मौत के बाद से ही पूरी कश्मीर घाटी में हिंसक विरोध-प्रदर्शनों का दौर जारी है.

इससे पहले यह इलाका हल्की सी भी अस्थिरता में हिंसक हो उठता था और सुरक्षा के लिहाज से प्रशासन के लिए सरदर्द बना रहता था. मुद्दा चाहे स्थानीय हो या अंतर्राष्ट्रीय यहां अक्सर विरोध-प्रदर्शन करने लोग सड़कों पर उतर आते थे.

चाहे वह अमेरिका की इराक या अफगानिस्तान में घुसपैठ हो, चाहे सुरक्षाबलों द्वारा मानवाधिकार के उल्लंघन की अफवाह हो या कोई खबर हो, चाहे किसी आतंकवादी की सुरक्षाबलों के हाथों मौत हो और चाहे किसी राहगीर की किसी सुरक्षाकर्मी के साथ हुई छोटी-मोटी झड़प, श्रीनगर की इस पुरानी बस्ती में अस्थिरता फैलाने के लिए काफी होता था.

सुरक्षा की दृष्टि से छह पुलिस थानों में विभाजित यह इलाका 'बेहद संवेदनशील' माना जाता रहा है और जम्मू एवं कश्मीर में किसी भी तरह की सुरक्षा गड़बड़ी की स्थिति में सबसे पहले यहीं पर कर्फ्यू लगा दिया जाता है.

श्रीनगर से निकलने वाले समाचार पत्र 'श्रीनगर इमेजेस' के संपापद बशीर मंजर उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, "80 के दशक के आखिर में श्रीगर के बीचोबीच स्थित नैड कडाल में आतंकवादियों ने पहली बार गोली चलाई थी और अलगाववादी लड़ाई की शुरुआत की थी."

मंजर ने आईएएनएस से कहा, "वास्तव में अगर आप इतिहास में झांकें तो श्रीनगर के इस केंद्रीय हिस्से से ही कश्मीर की राजनीति निकली है. डोगरा वंश की सत्ता के खिलाफ 1931 में हुआ विद्रोह यहीं शुरू हुआ था. डोगरा वंश के तत्कालीन महाराजा के हथियारबंद सिपाहियों द्वारा प्रदर्शनकारियों पर चलाई गई गोली से मरने वालों की याद में आज भी यहां हर वर्ष 13 जुलाई को शहीद दिवस मनाया जाता है."

श्रीनगर की इस प्राचीन बस्ती से ही 2008 और 2010 की गर्मियों में विद्रोह के स्वर उभरे थे, जिसमें क्रमश: 60 और 120 नागरिकों की मौत हो गई थी.

लेकिन मौजूदा अशांति के दौरान यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ, जबकि कश्मीर घाटी में बीते 15 दिनों से चल रहे हिंसक विरोध प्रदर्शनों में अब तक 45 के करीब लोगों की मौत हो चुकी है.
आईएएनएस ने कुछ पुलिस अधिकारियों से भी बात की तो उन्होंने कहा कि अब तक खुदा का शुक्र है.

कश्मीर घाटी में मौजूदा अशांति के दौरान इस इलाके में सुरक्षा बलों के हाथों अब तक किसी की मौत नहीं हुई है और कोई भी विरोध-प्रदर्शन नियंत्रण से बाहर नहीं रहा.

एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "श्रीनगर की इस पुरानी बस्ती में हमारा इलाका शांति का द्वीप है. यह एक उपलब्धि की तरह है." हो सकता है कि सुरक्षाबल के अधिकारियों की संतुष्टि पूरी तरह सही ना हो, क्योंकि इलाके में एक भी मौत पूरी स्थिति को बिल्कुल पलट सकती है, जैसा की इतिहास में होता रहा है.
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