दर्दभरी आवाज के शहंशाह मुकेश के 93वें जन्मदिन पर गूगल ने बनाया रंगीन डूडल

जनता जनार्दन संवाददाता , Jul 22, 2016, 8:21 am IST
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दर्दभरी आवाज के शहंशाह मुकेश के 93वें जन्मदिन पर गूगल ने बनाया रंगीन डूडल नई दिल्ली: दर्दभरी सुरीली आवाज से सबके दिल में अपना खास मुकाम बनाने वाले महान गायक मुकेश का आज 93वां जन्‍मदिन है और उनको श्रद्धांजलि दे्ने के लिए सर्च इंजन गूगल ने एक बहुत ही रंगीन डूडल बनाया है.

'दोस्त-दोस्त ना रहा', 'जीना यहां मरना यहां', 'कहता है जोकर', 'दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई', 'आवारा हूं', 'मेरा जूता है जापानी' जैसे खूबसूरत नगमों के सरताज मुकेश माथुर की आवाज की दीवानी पूरी दुनिया है.

मुकेश ने 40 साल के लंबे करियर में लगभग 200 से अधिक फिल्मों के लिए गीत गाए. मुकेश हर सुपरस्टार की आवाज बने. उनके गाए गीतों को लोग आज भी गुनगुनाते हैं. उनके गीत हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से कहीं न कहीं जुड़ते हैं और यही नहीं, उनके गाए नगमें आज के नए गीतों को टक्कर देते हैं, रीमिक्स भी बनता है.

शुरुआती जीवन  
मुकेश का जन्म 22 जुलाई, 1923 को दिल्ली में हुआ था. मुकेश के पिता जोरावर चंद्र माथुर इंजीनियर थे। मुकेश उनके 10 बच्चों में छठे नंबर पर थे. उन्होंने दसवीं तक पढ़ाई कर पीडब्लूडी में नौकरी शुरू की थी. कुछ ही साल बाद किस्मत उन्हें मायानगरी मुंबई ले गई.

मुकेश अपने सहपाठियों के बीच कुंदन लाल सहगल के गीत सुनाया करते थे और उन्हें अपने स्वरों से सराबोर किया करते थे, लेकिन वह मधुर स्वर के रूप में एक अनूठा तोहफा लेकर पैदा हुए थे.
उनका स्वर महज सहपाठियों के बीच गाने भर के लिए नहीं, बल्कि लाखों-करोड़ों लोगों के होंठों और दिल में बस जाने के लिए था.

प्रेम विवाह
मुकेश को एक गुजराती लड़की सरल भा गई थी. वह उसी से शादी करना चाहते थे, लेकिन दोनों परिवार में इसका विरोध हुआ. उन्होंने दोनों परिवारों के तमाम बंधनों की परवाह न करते हुए ठीक अपने जन्मदिन के दिन 22 जुलाई 1946 को सरल के साथ शादी के अटूट बंधन में बंध गए. मुकेश के एक बेटा और दो बेटियां हैं. बेटे का नाम नितिन और बेटियां रीटा व नलिनी हैं.

नील नितिन मुकेश से नाता
बड़ा होने पर नितिन अपने नाम में पिता का नाम जोड़कर नितिन मुकेश हो गए. उन्होंने पिता की तरह कई फिल्मों के लिए गाया भी. उनके बेटे यानी मुकेश के पोते नील के नाम में पिता और दादा, नों के नाम जुड़े हैं. नील नितिन मुकेश लेकिन गाना नहीं गाते, वह आज बॉलीवुड के चर्चित अभिनेता हैं.

मुकेश की आवाज की खूबी को उनके एक दूर के रिश्तेदार मोतीलाल ने तब पहचाना, जब उन्होंने उन्हें अपनी बहन की शादी में गाते हुए सुना. मोतीलाल उन्हें मुंबई ले गए और अपने घर में साथ रखा.

करियर
मुकेश ने अपना सफर 1941 में शुरू हुआ. फिल्म 'निर्दोष' में मुकेश ने अदाकारी करने के साथ-साथ गाने भी खुद गाए. इसके अलावा, उन्होंने 'माशूका', 'आह', 'अनुराग' और 'दुल्हन' में भी बतौर अभिनेता काम किया.

उन्होंने अपने करियर में सबसे पहला गाना 'दिल ही बुझा हुआ हो तो' गाया था. इसमें कोई शक नहीं कि मुकेश सुरीली आवाज के मालिक थे और यही वजह है कि उनके चाहने वाले सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के संगीत प्रेमी थे.

फिल्म-उद्योग में उनका शुरुआती दौर मुश्किलों भरा था. लेकिन एक दिन उनकी आवाज का जादू केएल सहगल पर चल गया. मुकेश का गाना सुनकर सहगल भी अचंभे में पड़ गए थे. 40 के दशक में मुकेश के पार्श्‍व गायन का अपना अनोखा तरीका था.

जब बने राजकपूर की आवाज
उस दौर में मुकेश की आवाज में सबसे ज्यादा गीत दिलीप कुमार पर फिल्माए गए. वहीं 50 के दशक में मुकेश को शोमैन 'राज कपूर की आवाज' कहा जाने लगा.

राज कपूर और मुकेश में काफी अच्छी दोस्ती थी. उनकी दोस्ती स्टूडियो तक ही नहीं थी. मुश्किल दौर में राज कपूर और मुकेश हमेशा एक-दूसरे की मदद को तैयार रहते थे. उन्होंने 1951 की फिल्म 'मल्हार' और 1956 की 'अनुराग' में निर्माता के तौर पर काम किया.

मुकेश को बचपन से ही अभिनय का शौक था, जिसके चलते वह फिल्म 'माशूका' और 'अनुराग' में बतौर हीरो भी नजर आए. लेकिन दोनों फिल्में फ्लॉप हो गईं और उन्हें आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा.

फिल्‍म फेयर पुरस्‍कार पाने वाले पहले पुरुष गायक
साल 1959 में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'अनाड़ी' ने राज कपूर को पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड दिलाया. लेकिन कम ही लोगों को पता है कि राज कपूर के जिगरी यार मुकेश को भी अनाड़ी फिल्म के 'सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी' गाने के लिए बेस्ट प्लेबैक सिंगर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था.

मुकेश फिल्मफेयर पुरस्कार पाने वाले पहले पुरुष गायक थे. उन्हें फिल्म 'अनाड़ी' से 'सब कुछ सीखा हमने', 1970 में फिल्म 'पहचान' से 'सबसे बड़ा नादान वही है', 1972 में 'बेइमान' से 'जय बोलो बेईमान की जय बोलो' के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया.

1974 में फिल्म 'रजनीगंधा' से 'कई बार यूं भी देखा है' के लिए नेशनल पुरस्कार, 1976 में 'कभी कभी' से 'कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है' के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया है.

मुकेश ने हर तरीके के गाने गाए, लेकिन उन्हें दर्द भरे गीतों से अधिक पहचान मिली, क्योंकि दिल से गाए हुए गीत लोगों के जेहन में ऐसे उतरे कि लोग उन्हें आज भी याद करते हैं.

'दर्द का बादशाह' कहे जाने वाले मुकेश ने 'अगर जिंदा हूं मैं इस तरह से', 'ये मेरा दीवानापन है', 'ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना', 'दोस्त दोस्त ना रहा' जैसे कई गीतों को अपनी आवाज दी.

मुकेश का निधन 27 अगस्त, 1976 को अमेरिका में एक स्टेज शो के दौरान दिल का दौरा पड़ने से हुआ. उस समय वह गा रहे थे- 'एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल'. सचमुच, दुनिया से ओझल हो चुके मुकेश के गाए बोल जग में आज भी गूंज रहे हैं और हमेशा गूंजते रहेंगे.
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