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ईयू के बिखराव का दुनिया पर असर

ईयू के बिखराव का दुनिया पर असर ब्रिटेन में गुरुवार 23 जून 2016 को यूरोपीय संघ में बने रहने या अलग होने के लिए हुए जनमत संग्रह में 51.9% लोगों ने अलगाव के पक्ष में मत डाला जबकि 48.1%  नाता जोड़े रहने के पक्ष में थे। अब औपचारिक रूप से पूर्ण बहुमत के साथ ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग होगा। प्रधानमंत्री डैविड केमरन की लगातार अपीलें मतदाताओं को लुभा ना सकीं और अधिकांश लोगों ने अलगाव पसंद किया।

इस नतीजे के साथ ही यूरोपीय संघ में टूट का सिलसिला भी शुरू हो गया है । ब्रिटेन के नतीजे आने के साथ ही कई अन्य देशों में जनमत संग्रह की मांग तेज हो गयी है। फ्रांस में नेशनल फ्रंट की नेता मरीन ली पेन ने फ्रांस और नीदरलैंड  में आव्रजन नीति विरोधी राष्ट्रवादी नेता गर्ट विल्डर्स ने नीदरलैंड के यूरोपीय संघ से अलग होने की मांग तेज कर दी है। ब्रिटेन के नतीजों से उत्साहित होकर दोनों नेताओं ने अपने अपने देशों में तत्काल जनमत संग्रह का आह्वान किया है। इसके प्रबल आसार हैं कि आने वाले दिनों में कई और देश यूरोपीय संघ से अलग होंगे और 28 देशों का यह संगठन आखिरकार पूरी तरह बिखर जाएगा।

जनमत संग्रह में लंदन, स्काटलैंड और उत्तरी आयरलैंड में अधिकांश लोग संघ में बने रहने के पक्ष में थे जबकि वेल्स सहित इंगलैंड के अधिकांश लोगों ने अलगाव का फैसला किया। ब्रिटेन की कुल आबादी, लगभग सवा चार करोड़ में से  लगभग तीन करोड़ मतदाता अपने घरों से बाहर निकल कर मतदान केन्द्र तक पहुंचे और बावन प्रतिशत लोगों ने ब्रिटेन के नए इतिहास का पहला पन्ना रच दिया।
 
यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने के लिए पिछले 20 सालों से अभियान चला रहे  यू के आई पी नेता नाइगल फैरागे ने नतीजों को खास आदमी पर आम आदमी की जीत बताया है। उन्होंने कहा कि यह ब्रिटेन की दूसरी आजादी है।

दूसरी ओर प्रधान मंत्री डेविड कैमरन ने जनमत संग्रह में पराजय को स्वीकार करते हुए अक्टूबर तक अपना पद छोड़ने का ऐलान कर दिया है।

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने की पुष्टि होने के साथ ही दुनिया भर के शेयर बाजारों में हाहाकार मच गया है। ये हाहाकार कई दिनों तक जारी रह सकते हैं। यूरोप ही नहीं दुनिया भर में इसके गंभीर परिणाम निकलेंगे। वित्तीय और आर्थिक तंत्र में बदलाव आएंगे। कुछ खास लोग जो अब तक अमीरी के शिखर पर थे पतन के शिकार होंगे । नए लोगों के लिए अमीरी के अवसर निकलेंगे। राजनीति और समाज पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।

सबसे बड़ा प्रभाव यूरो जोन पर पड़ेगा । अब यह एक इकाई के रूप में नहीं रह जाएगा। एक एक कर अनेक देश इससे अलग होगें। इनके अलग होने से भारत सहित दुनिया के हर देश को इनके साथ अपने कारोबारी आर्थिक और सामाजिक सांस्कृतिक संबंध नए सिरे से तय करने होंगे।

इतना ही नहीं यूरोप में जब 28 देशों का समूह टूट कर अलग होगा  तो इन देशों के अंदर अलग अलग इकाइयों के बीच विभाजन की प्रक्रिया भी तेज होगी। यानि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने का श्रृंख्लाबद्ध असर सबसे पहले खुद ब्रिटेन में दिखेगा। ब्रिटेन के अलग अलग हिस्सों के लोग अपनी आजादी के लिए जनमत संग्रह की मांग उठाएंगे। मेरा आकलन और पूरा विश्वास है कि ब्रिटेन के विभाजन की प्रक्रिया बहुत जल्दी हमें देखने को मिलेगी।

ब्रिटेन के बाद और कई अन्य देशों में हम विघटन देखेंगे।

कैसे ?

इसका जवाब समय देगा।

दरअसल जब सिर्फ स्वार्थ आधारित गठबंधन अस्तित्व में आता है तो स्वार्थ पूर्ति में कमी आने के साथ यह गठबंधन कमज़ोर होते - होते आखिरकार टूट जाता हैै। यूरोपीय संघ एक स्वार्थ आधारित गठबंधन है जिसमें सामूहिक तौर पर लाभ समाज के हर वर्ग तक नहीं पहुंचा है। आम आदमियों की जिन्दगी यूरो जोन के हर हिस्से में बेहतर नहीं हुई है।

28 देशों का समूह बना कर समाज के गिने चुने उस वर्ग को फायदा हुआ  है जो संगठित और समृद्ध है। लंदन के लोग पहले से अधिक अमीर हुए हैं लेकिन वेल्स के लोगों को इसका लाभ नहीं मिला। इंगलैंड के अधिकांश लोगों की माली हालत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा।   यही स्थिति यूरो जोन के सभी सदस्य देशों की है। ऐसे में जिस रूप में पश्चिम एशिया का संकट बढ़ा है। दुनिया के संसाधनों पर कब्जे के लिए जो खींचतान हुई है,  उसका सीधा असर एशिया और अफ्रीका के देशों पर पड़ा है इन देशों के  के सामाजिक असंतुलन का प्रभाव उन पर पड़ना तय था जो इस असंतुलन के निर्माता हैं।

जिस यूरोप के प्रभुओं ने पूरी दुनिया पर लंबे समय तक राज किया और वक्त बदलने पर एक ब्लाक के रूप में नए साम्राज्य की रूपरेखा बनाई उसका ढहना तय था। ऐसा नहीं होगा कि सीरिया में लोग भूख से बिलबिलाएंगे तो इसका असर यूरोप पर नहीं पड़ेगा। इराक, इरान अफगानिस्तान, लीबिया , नैरोबी, मिश्र में दर्द का तूफान उठेगा तो इसका असर यूरोप और अमरीका में दिखेगा ही।

अमरीका में डोनाल्ड ट्रंप को जोकर मानने वाले लोग अब उन्हें गंभीरता से लेने लगे हैं। अमरीका के चुनाव में उनका राष्ट्रपति बनना मेरे आकलन के अनुसार तय है। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के साथ ही नए सिरे से यूरोप में बिखराव - विखंडन की प्रक्रिया और तेज होगी।

ब्रिटेन के जनमत संग्रह के नतीजे तो एक बड़े विखंडन की शुरुआत हैं। अंग्रेजी में कहें तो Tip of the iceberg.

यूरोप के नक्शे में बदलाव के लिए तैयार रहिए। छोटे छोटे अनेक देशों के स्वागत के लिए तैयार रहिए।

ब्रिटेन के लोगों दूसरी आजादी मुबारक.
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