योग विज्ञान है, रूढ़ि नहीं; योग स्वास्थ्य सुधार में सहायकः उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी

योग विज्ञान है, रूढ़ि नहीं; योग स्वास्थ्य सुधार में सहायकः उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी
नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति एम. हामिद अंसारी ने कहा है कि योग एक विज्ञान है कोई रूढ़ि नहीं। योग स्वास्थ्य सुधार में सहायक है। अंसारी आज यहां ‘योगा फॉर बॉडी एंड बियोन्ड’ विषय पर दो दिन के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन भाषण दे रहे थे। इस अवसर पर आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा परिवार और कल्याण राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक, योग गुरू स्वामी रामदेव, डॉ. प्रणव पंण्डया, स्वामी अमृत सूर्यानंद, स्वामी चिदानन्द मुनि तथा प्रो. एच.आर. नगेन्द्र उपस्थित थे।
 
उपराष्ट्रपति ने कहा कि गरीबी और खराब स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध है। अच्छे स्वास्थ्य और स्वच्छता के महत्व को हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं ने बखूबी समझा था।
 
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत सहित विकासशील देशों में जन-स्वास्थ्य के लिए धन पोषण में असमर्थता के कारण पूरक स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत बढ़ती जा रही है।  इन सबके बीच योग ने विश्व स्तर पर लोगों को आकर्षित किया है। उन्होंने कहा कि इन पूरक उपायों से बीमारी का निदान नहीं होता, लेकिन निश्चित तौर पर इनसे मानव शरीर के कार्यों में कमी होने की प्रक्रिया को धीमी करने में मदद मिलती है। मानव शरीर में कार्यों की कमी से शरीर में बीमारी प्रवेश करती है।
 
उपराष्ट्रपति ने कहा कि सभी तरह के विश्वास और सभी तरह की धारणाओं में  ध्यान अभ्यास है। उन्होंने कहा कि मुक्ति मार्ग की प्रथाओं और तरीकों में अंतर के बावजूद सम्मिलन है।
 
उपराष्ट्रपति के भाषण का मूल पाठः
मैं सम्मेलन के उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित करने के लिए आयुष मंत्री माननीय श्रीपद येसो नाइक को धन्यवाद देता हूं। मैं देश-विदेश से आए प्रतिनिधियों का स्वागत करता हूं। आप सब को मालूम है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सराहनीय प्रयास से 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का निर्णय लिया। प्रस्ताव संख्या 69/131 को 177 सदस्य देशों ने प्रस्तावित किया और इसे बिना मत के पारित किया गया। संयुक्त राष्ट्र विभिन्न विषयों पर इसी तरह के 128 दिवसों को मनाता है।
 
इस प्रस्ताव में 20 जनवरी 2012 के यूएनजीए प्रस्ताव की याद दिलाई गई है। यूएनजीए के प्रस्ताव में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम मानक तक लाभ उठाने का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को है। इस प्रस्ताव का आधार अच्छा स्वास्थ्य और जीवनशैली का महत्व है। इस संदर्भ में योग अभ्यास के लाभों के बारे में व्यापक रूप से सूचना देनी होगी।
 
योग की परिभाषा पर विभिन्न स्थानों पर काफी विचार-विमर्श हुआ है। योग क्या एक विज्ञान है, कला है, ध्यान में सहायक है, आध्यात्मिक मार्ग है? इस प्रश्न के उत्तर विभिन्न तरह के मध्यस्थ लोग अपनी तरह दिए हैं। एक सीमा तक सभी के तर्कों की वैधता है और किसी तर्क को सार्वभौमिक स्वीकृति नहीं मिली है।
 
कुछ वर्षों पहले पंतजलि की पुस्तक योग दर्शन की प्रति मुझे मिली थी। इस पुस्तक में योग को भारतीय दर्शन की छह प्रणालियों में एक प्रणाली बताया गया है। इसमें योग की परिभाषा ध्यान के रूप में, मस्तिष्क में बदलाव और भटकाव को दबाने के तरीके के रूप में परिभाषित किया गया है। मन के भटकाव को अभ्यास और विरक्ति से रोका जा सकता है। योग मन और शरीर के अभ्यास पर बल देता है।
 
यह सत्य है कि एक औसत व्यक्ति के दैनिक जीवन में किसी सिद्धांत या दर्शन का व्यावहारिक परिणाम दार्शनिक प्रक्रियाओं की जटिलताओं की तुलना में प्रासंगिक हो जाता है। योग के साथ भी यही अच्छी बात है। संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्ताव का विवेक भी यही कहता है और इसका बल अच्छे स्वास्थ्य पर है।
 
तर्क व्यावहारिक हैं और इसका मूल आधार स्पष्ट हैः
 
अच्छा शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति और समाज की आवश्यकता है।
 
अच्छे स्वास्थ्य का भाव सामान्य जीवन में बाधा है।
 
पुराने समय से और विभिन्न समाजों के सामूहिक अनुभवों के आधार पर अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के नुस्खे और स्वच्छता की आवश्यकता की बातें संजोय कर रखी गई है।
 
मानव इतिहास बीमारी और खराब स्वास्थ्य के कारण मानव पीड़ा का रिकॉर्ड है। महामारियां इसकी सबसे गंभीर उदाहरण हैं। 14वीं शताब्दी में काली मृत्यु महामारी की शुरूआत चीन और मध्य एशिया से हुई और यह यूरोप के अधिकतर भागों तक फैल गई। इस बीमारी से लगभग 75 मिलियन लोगों की जानें गईं। आज भी हम महामारी के भय से ग्रस्त हैं।
 
गरीबी और खराब स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध है। गरीबी खराब स्वास्थ्य का कारण है, क्योंकि यह लोगों को बीमार करने वाले माहौल में रहने के लिए बाध्य करती है। ऐसे माहौल में रहने के लिए बाध्य करती है जिसमें छत न हो, स्वच्छ पानी न हो और पर्याप्त स्वच्छता का प्रबंध न हो। इसीलिए 2016-2030 तक सतत विकास लक्ष्य हासिल करने के विश्व समुदाय के लक्ष्य में गरीबी दूर करने, भूख मिटाने और बेहतर स्वास्थ्य के तीन लक्ष्यों को हासिल करने पर बल दिया गया है। उन्होंने अस्वच्छता के आर्थिक प्रभाव के बारे में विचार व्यक्त किया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य आंकड़ों की उपलब्धता के साथ खराब स्वास्थ्य के सामाजिक और आर्थिक तस्वीर प्राप्त करना संभव हो गया है।
 
भारतीय परिवारों में स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव सर्वाधिक (34 प्रतिशत) है। प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव (51 प्रतिशत) है और गैर-संक्रमक बीमारियों के इलाज पर पारवारिक खर्च का प्रभाव (40 प्रतिशत) है। गैर-संक्रामक बीमारियों का ईलाज खर्च लोग उधार लेकर या संपत्ती बेच कर उठाते हैं।
 
भारत को 2006 और 2015 के बीच हृद्य रोग, पक्षाघात तथा मधुमेह से समय पूर्व मृत्यु के कारण 237 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
 
अनुमान है कि गैर-संक्रामक बीमारियों पर होने वाला खर्च जीडीपी का 5-10 प्रतिशत है। इसी तरह एक अनुमान के अनुसार ऐसी बीमारियों के कारण भारत वार्षिक आर्थिक आउटपुट में 4-10 प्रतिशत का खर्च उठाएगा। गैर-संक्रामक बीमारियों तथा मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण भारत 2030 तक 4.58 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान उठाएगा। इस आर्थिक नुकसान की अगुवाई हृदय संबंधी बीमारियां 2.17 ट्रिलियन डॉलर तथा मानसिक स्वास्थ्य की बीमारी 1.03 ट्रिलियन डॉलर के नुकसान के साथ करेंगी।
 
विश्व आर्थिक मंच तथा हार्वड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ ने 2014 में अपने निष्कर्ष में कहा था कि विश्व में होने वाली मृत्यु में हृदय रोग, कैंसर, स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां, मधुमेह और मनोरोग का प्रतिशत 63 प्रतिशत से अधिक है।
 
इस परिस्थिति में स्वास्थ्य की पूरक व्यवस्था आवश्यक है। इन व्यवस्थाओं में योग एक है जिसका विश्वव्यापी अनुसरण किया जा रहा है।
 
जय हिन्द
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