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भारत सरकार के साथ गड़बड़ क्या है? पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने पूछा
कुशाग्र दीक्षित ,
Jun 19, 2016, 19:25 pm IST
Keywords: Animal killing Federation of Indian Animal Protection Organisation Animal killing India Union Environment Minister Prakash Javadekar Nilgai Antelope species Wild boar Monkeys पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जानवरों की हत्या पशु संरक्षण कानून संरक्षित प्रजातियां नीलगाय
![]() विश्व में पशु कानून की शिक्षा देने वाले एकमात्र संस्थान ‘लेविस एंड क्लार्क लॉ स्कूल’ की निदेशक कैथी हेस्लर ने आईएएनएस से कहा, “यह जानकर दुख होता है कि संरक्षित पशुओं की हत्या हो रही है और उन्हें नाशक जीव माना जा रहा है। जब कानून का अनादर होता है तो कानून के शासन और प्रजातियों के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध किसी भी देश की छवि खराब होती है।” फेडरेशन आफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन आर्गनाइजेशन के बैनर तले करीब 100 गैर सरकारी संगठनों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से ‘नाशक’ जीव घोषित कर वन्यजीवों की अंधाधुंध और अवैज्ञानिक तरीके से हो रही हत्या को रोकने का अनुरोध किया है. भारत सरकार ने नीलगायों, जंगली सुअरों और बंदरों की हत्या को मंजूरी दी है. नाशक जीव घोषित किए जाने के बाद संबद्ध राज्य सरकारों के विशेष अनुरोध पर इन जानवरों की हत्या के आदेश दिए गए हैं. अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है. नाशक जीव घोषित करने वाली सरकार की तीन अधिसूचनाओं के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई है जिस पर सुनवाई होगी. इस साल अप्रैल माह में बाघ संरक्षण पर आयोजित तीसरे मंत्रिस्तरीय एशियाई सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विकास के नाम पर प्रकृति के संरक्षण को लंबे समय तक नहीं टाला जाना चाहिए और यह परस्पर सहयोगात्मक रूप में हो सकता है. भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 को दुनिया में सबसे अच्छे और प्रेरणादायक कानूनों में से एक माना जाता है। लेकिन, बिहार में 250 नीलगायों की हत्या, अन्य प्रजातियों की हत्या की योजना और इस मामले में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के समर्थन की खबर से अंतर्राष्ट्रीय संस्थान आश्चर्यचकित है. हेस्लर का कहना है कि भारत सरकार को गंभीरतापूर्वक विकल्पों की तलाश करनी चाहिए. उन्होंने कहा, “हम भी मानते हैं कि मानव-पशु संघर्ष के कारण वास्तविक क्षति होती है, लेकिन इसे रोकने की जरूरत है और सभी के हितों को ध्यान में रख कर अच्छे तरीके से व्यवस्था करनी चाहिए.” केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जावड़ेकर का कहना है कि कानून ऐसी हत्या की इजाजत देता है, लेकिन विशेषज्ञ उनसे सहमत नहीं हैं. ‘पेटा’ के निकुंज शर्मा ने कहा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 62 के तहत खास पशुओं को नाशक जीव घोषित किया जा सकता है, लेकिन यह कभी नहीं कहता है कि हत्या ही पहला समाधान है. नीलगाय के मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार को अन्य विकल्पों को खोजने में दिलचस्पी नहीं है, जो सरल हैं और जिनमें हत्या करना आवश्यक नहीं है. शर्मा ने कहा कि जब से पशुओं की हत्या पर बहस शुरू हुई है तब से विदेशों में भारत की छवि को क्षति पहुंची है। जबकि, संरक्षण और पर्यावरण को अहमियत देने वाले समाज के रूप में भारत का सम्मान किया जाता रहा है। उन्होंने कहा कि हमें पूरी दुनिया से प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं. अकेले हमारे वेबपेज पर 15 लाख लोगों ने आवाज उठाई है। लोग पूछ रहे हैं कि भारत सरकार यह क्या गड़बड़ कर रही है. हेस्लर के अनुसार पारिस्थितिक तंत्र के अच्छे ढंग से संचालन के लिए पशुओं के महत्व और शांतिपूर्ण परस्पर सह अस्तित्व के बारे में भारत को अपने नागरिकों को शिक्षित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नीलगाय और जंगली सुअर भारत में संरक्षित प्रजातियां हैं और इन पशुओं की हत्या इस बात का सबूत है कानून को और मजबूत बनाना चाहिए. अलास्का में भालुओं के संरक्षण पर काम कर रहे परिस्थितिकीविद् कार्तिक सत्यनारायण का भी कहना है कि नीलगायों की हत्या से भारत की प्रतिष्ठा पर आंच आई है। |
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