गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड: 14 साल बाद फैसला, 24 दोषी, 36 बरी

गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड: 14 साल बाद फैसला, 24 दोषी, 36 बरी नई दिल्ली: 2002 गुजरात में हुए दंगे के दौरान गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड मामले में 14 साल बाद फैसला आया है। SIT कोर्ट ने 69 लोगों को जिंदा जलाने के मामले में 24 लोगों को दोषी ठहराया जबकि 36 को दोषमुक्त कर दिया। इस मामले में दिवंगत पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने कहा कि अभी पूरा इंसाफ नहीं मिला है। कुछ लोग बरी हो गए हैं।

कोर्ट ने अपने फैसले में भाजपा के बिपिन पटेल को बरी कर दिया गया है। जबकि कोर्ट ने दोषी ठहराए गए 24 लोगों को अगले हफ्ते सजा सुनाने का फैसला किया है। गौरतलब हो कि 2002 में गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद के चमनपुरा इलाके में स्थित गुलबर्ग सोसायटी में 69 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। इसमें पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी थे। कभी इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी (गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री) का भी नाम आया था, जिन्हें क्लीट चिट दे दिया गया था।

जानिए क्या था मामला
28 फरवरी 2002 को हजारों की हिंसक भीड़ गुलबर्ग सोसायटी में घुस गई और मारकाट मचा दिया। इस हमले में 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी। इसमें पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री भी थे। 39 लोगों के शव बरामद हुए थे जबकि 30 लापता लोगों को सात साल बाद मृत मान लिया गया था। इस मामले की सुनवाई सितंबर 2009 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सुनवाई शुरू हुई। मामले की जांच भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में गठित एसआईटी ने शुरू की। कुल 66 आरोपी बनाए गए, जिनमें चार की मौत भी हो चुकी है। 9 अब भी जेल में हैं। कुल 338 लोगों की गवाही हुई है।

पीएम मोदी से भी हुई थी पूछताछ
इस मामले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी एसआईटी ने पूछताछ की थी। हालांकि उनकी रिपोर्ट में मोदी को क्लीन चिट दे दी गई थी। 15 सितंबर 2015 को सुनवाई ख़त्म हो गई और आज फैसला आने की उम्मीद है।

गुलबर्ग सोसायटी मामले पर एक नजर
28 फरवरी, 2002: गोधराकांड के एक दिन बाद 29 बंगलों और 10 फ्लैट की गुलबर्ग सोसायटी पर भीड़ ने हमला बोला। गुलबर्ग सोसायटी में सभी मुस्लिम रहते थे सिर्फ एक पारसी परिवार रहता था। पूर्व कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी भी वहां रहते थे। इसमें कुल 69 लोगों की हत्या कर दी गई।

8 जून, 2006: एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी ने पुलिस को एक फरियाद दी जिसमें इस हत्याकांड के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, कई मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया। पुलिस ने ये फरियाद लेने से मना कर दिया।

7 नवंबर, 2007: गुजरात हाईकोर्ट ने भी जकिया की फरियाद पर जांच करवाने से मना कर दिया।

26 मार्च, 2008: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े केसों की जांच आर के राघवन की अध्यक्षता में बनी एसआईटी को सौंपी। इनमें गुलबर्ग सोसायटी का मामला भी था।

मार्च 2009: ज़किया की फरियाद की जांच करने का जिम्मा भी सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को सौंपा।

सितंबर 2009: ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड की सुनवाई पहली बार हुई।

27 मार्च 2010: नरेंद्र मोदी को एसआईटी ने ज़किया की फरियाद के संदर्भ में समन किया और कई घंटों तक पूछताछ की।

14 मई 2010: एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दी।

जुलाई 2011: एमीकस क्‍यूरी राजू रामचन्द्रन ने इस रिपोर्ट पर अपना नोट सुप्रीम कोर्ट में रखा।

11 सितंबर 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला ट्रायल कोर्ट पर छोड़ा।

8 फरवरी 2012: एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट मेट्रोपोलिटन मजिस्‍ट्रेट की कोर्ट में पेश की।

10 अप्रील 2012: मेट्रोपोलिटन मजिस्‍ट्रेट ने एसआईटी की रिपोर्ट को माना कि मोदी और अन्य 62 लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं। इस मामले में 66 आरोपी हैं। जिसमें प्रमुख आरोपी भाजपा के असारवा के काउंसलर बिपिन पटेल भी हैं।

सितंबर 2015: इस मामले का ट्रायल खत्म हो गया और अब निर्णय आना है।
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