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भारतीय सिनेमा को विश्व फलक तक ले गए सत्यजित रे

जनता जनार्दन डेस्क , May 02, 2016, 14:34 pm IST
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भारतीय सिनेमा को विश्व फलक तक ले गए सत्यजित रे नई दिल्ली: सत्यजित रे भारतीय सिनेमा के एकमात्र ऐसे पुरोधा हैं, जिनका दामन मद्मश्री से पद्म विभूषण तक और ऑस्कर अवार्ड से लेकर दादासाहेब फाल्के पुरस्कार व 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से भरा है। भारतीय सिनेमा की 20वीं शताब्दी पर गौर करें तो कोई भी बात सत्यजित दा का जिक्र किए बिना अधूरी रहेगी।

वह जाने-माने फिल्म निर्माता ही नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा की पहचान बन चुके हैं। उन्हें बेहतरीन फिल्मों के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपनी फिल्मभाषा गढ़ी। उनकी कृतियों को किसी भाषा के दायरे में बांधा नहीं जा सकता। अपनी बहुमुखी प्रतिभा की बदौलत सत्यजित भारतीय सिनेमा को विश्व फलक तक ले गए।

सत्यजित रे ने फिल्मों के साथ-साथ अपने लेखन और चित्रकृतियों से भारतीय संस्कृति पर अमिट छाप छोड़ी। वह संगीतकार और चित्रकार होने के अलावा, बांग्ला के बेहद लोकप्रिय लेखक भी थे। उनका समूचा परिवार ही सदा कला और साहित्य से जुड़ा रहा।

उनका जन्म 2 मई 1921 को कलकत्ता (कोलकाता) के बंगाली राय परिवार में हुआ था। अंग्रेज जिस तरह ठाकुर का उच्चारण 'टैगोर' करते थे, उसी तरह राय को 'रे' कहते थे। इसलिए वह सत्यजीत रे कहलाए।

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक कमर्शियल आर्टिस्ट के रूप में की थी। अपने माता-पिता की इकलौती संतान सत्यजित के पिता सुकुमार राय का निधन सन् 1923 में हो गया था। उस समय सत्यजित महज दो साल के नन्हा बालक थे। उनका पालन-पोषण उनकी मां सुप्रभा राय ने अपने भाई के घर में रहकर किया।

सत्यजित रे के पिता बांग्ला में बच्चों के लिए रोचक कविताएं लिखते थे और चित्रकार भी थे। उनके दादा उपेंद्रकिशोर राय भी जाने-मान लेखक व चित्रकार थे।

सत्यजित रे मुख्य रूप से फिल्म निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन फिल्मों के अलावा लेखक और साहित्यकार के रूप में भी उन्होंने ख्याति अर्जित की। अनेक फिल्मों की कहानी और पटकथा लेखन के साथ-साथ संगीत संयोजन का काम भी उन्होंने स्वयं किया।

सत्यजित रे ने 37 फिल्मों का निर्देशन किया है, जिनमें फीचर फिल्म, वृत्तचित्र और लघु फिल्म शामिल हैं। इसके अलावा वह कहानीकार, प्रकाशक, चित्रकार, सुलेखक, म्यूजिक-कंपोजर और ग्राफिक डिजाइनर भी थे।

उन्होंने बहुत-सी लघुकथाएं और उपन्यास तथा बच्चों पर आधारित किताबें भी लिखी हैं। 'फेलुदाÓ, 'द सल्यूथÓ और 'प्रोफेसर शोंकूÓ उनकी कहानियों के कुछ प्रसिद्ध किरदार हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद डिग्री देकर सम्मानित किया था।

सत्यजित दा फिल्म निर्माण से संबंधित कई काम खुद ही करते थे। उनके कार्य-क्षेत्र में निर्देशन, छायांकन, पटकथा लेखन, पाश्र्व संगीत संयोजन, कला निर्देशन, संपादन आदि शामिल हैं। फिल्म निर्माण के साथ-साथ वह फिल्म आलोचक भी थे।

सत्यजित रे कहानियां लिखने को निर्देशन का अभिन्न अंग मानते थे। उनकी पहली फिल्म 'पथेर पांचाली' (1995) ने बहुत-से अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते, ये पुरस्कार उन्हें 1956 के कान्स फिल्म फेस्टिवल में दिए गए थे। उनकी फिल्म 'अपराजितो' (1956) और 'अपूर संसार' (1959) को भी कई पुरस्कार मिले।

विश्व में भारतीय फिल्मों को नई पहचान दिलाने वाले सत्यजित रे भारत रत्न (1992) के अलावा पद्मश्री (1958), पद्मभूषण (1965), पद्म विभूषण (1976) और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1967) से सम्मानित हैं। विश्व सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान के लिए सत्यजित राय को मानद 'ऑस्कर अवार्ड' से भी नवाजा गया। इसके अलावा उन्होंने और अपनेकाम के लिए कुल 32 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किए।

फिल्म 'घरे बाइरे' (1984) के निर्माण के दौरान सत्यजित राय बीमार पड़ गए। उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता चला गया। फिर भी उन्होंने काम जारी रखा, उन्हें दवाइयों से जितनी राहत नहीं मिलती थी, उससे कहीं ज्यादा कैमरा उन्हें राहत देता था।

सत्यजित रे खुद स्क्रिप्टिंग, कास्टिंग, स्कोरिंग और एडिटिंग और डिजाइनिंग करते थे। अपने फिल्मी करियर में उन्होंने दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, 32 इंडियन नेशनल फिल्म अवार्ड, कुछ इंटरनेशनल फिल्म अवार्ड जीते। इसमें अकादमी पुरस्कार

शामिल हैं। सन् 1992 में भारत सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' से सम्मानित किया था।

भारतीय सिनेमा के पुरोधा ने 23 अप्रैल, 1992 को अपने जीवन की अंतिम सांस ली और संसार को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। वह हमारे बीच भले ही मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनकी दर्जनों फीचर फिल्मों, कई वृत्तचित्र और लघु फिल्में मौजूद हैं जो हमेशा उनकी याद दिलाती रहेंगी।
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