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कभी कैमरे के सामने नहीं आईं शमशाद बेगम

कभी कैमरे के सामने नहीं आईं शमशाद बेगम नई दिल्ली: मेरे पिया गए रंगून, कभी आर कभी पार, लेके पहला पहला प्यार, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना जैसे गीतों से धूम मचाने वाली गायिका शामशाद बेगम बॉलीवुड का जाना-पहचाना नाम है। शमशाद बेगम के जितने गानों को रीमिक्स किया गया, शायद ही किसी और के गानों को किया गया हो।

उनके गाए ‘सैंया दिल में आना रे’, ‘कजरा मोहब्बत वाला’, ‘कभी आर कभी पार’ जैसे गानों के रिमिक्स बेहद लोकप्रिय रहे। खास बात ये रही कि शमशाद के मूल गीत जितने मशहूर हुए उतना ही रिमिक्स ने भी धमाल मचाया। हर युवा के दिल में उनके गीतों ने अपनी अलग पहचान बनाई। शमशाद रिमिक्स को वक्त की मांग मानती थीं।

मनोरंजन-जगत में अपने सुरीले, मंत्रमुग्ध कर देने वाले नगमों से सभी के दिलों में जगह बना चुकीं गायिका शमशाद बेगम का जन्म पंजाब के अमृतसर शहर में 14 अप्रैल, 1919 को हुआ।

पहली बार शमशाद बेगम की आवाज लाहौर के पेशावर रेडियो के माध्यम से 16 दिसंबर, 1947 को लोगों के सामने आई। उनकी आवाज के जादू ने लोगों को उनका प्रशंसक बना दिया। उस दौरान शमशाद बेगम को प्रत्येक गीत गाने पर पंद्रह रुपये पारिश्रमिक मिलता था।

उस समय की प्रसिद्ध कंपनी जेनोफोन, जो कि संगीत रिकॉर्ड करती थी, से अनुबंध पूरा होने पर शमशाद बेगम को 5000 रुपये से सम्मानित किया गया था। रेडियो पर उनकी आवाज सुनकर कई संगीत निर्देशकों ने उनसे संपर्क किया था।

उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘खजांची’ थी। फिल्म के 9 गीत शमशाद ने गाए। रेडियो पर उनके गायन से ओ.पी. नैय्यर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने शमशाद को अपनी फिल्म में गाने का मौका दिया। 50, 60 और 70 के दशक में शमशाद संगीतकारों की पसंदीदा हुआ करती थीं।

शमशाद को लता मंगेशकर, आशा भोंसले, गीता दत्त और अमीरबाई कर्नाटकी से जरा भी कम नहीं आंका गया। उनकी आवाज ने सभी का ध्यान अपनी और केंद्रित किया।

उल्लेखनीय है कि 40 और 50 के दशक में शमशाद बेगम के गाए गाने रेडियो पर छाए रहते थे, जैसे ‘सीआईडी’ फिल्म का ‘लेके पहला पहला प्यार’ और ‘कहीं पे निगाहें’। इसके अलावा, ‘पतंगा’ का ‘मेरे पिया रंगून’ तो आज भी कई मोबाइल फोनों में मिल जाएंगे।

‘बहार’ फिल्म से ‘सैंया दिल में आना रे’ और ‘किस्मत’ से ‘कजरा मोहब्बत वाला’ जिसे उन्होंने हीरोइन बबीता के लिए नहीं, बल्कि फिल्म के हीरो विश्वजीत के लिए गाया था।

शमशाद ने अपनी आवाज की विविधता को साबित करते हुए पश्चिमी धुन पर आधारित गाने भी गाए। उन्होंने सी. रामचंद्र द्वारा कंपोज किया हुआ गाना ‘आना मेरी जान संडे के संडे’ गाकर धूम मचा दी। ये उनका पहला पश्चिमी धुन पर आधारित गाना था।

फिल्म ‘रॉकस्टार’ का गाना ‘कतिया करूं’ काफी पसंद किया गया, लेकिन यह गीत शमशाद के पचास साल पहले गाए गाने से प्रेरित है। मशहूर गायिका शमशाद बेगम ने ‘कतिया करूं’ को 1963 में गाया था। यह गाना श्वेत-श्याम पंजाबी फिल्म ‘पिंड डि कुरही’ में अभिनेत्री निशी पर फिल्माया गया था।

शमशाद के गीत आज भी सुनकर यही लगता है, मानों ये कल की बात हो। जबकी उनके गीतों को सत्तर से अधिक वर्ष बीच चुके हैं। शमशाद बेगम की अवाज ने कई गीतों को उजियारे से भर दिया। उनकी आवाज एक ऐसी भोर है, जहां अंधियारे का नामों निशान भी नहीं है।

सुरों की मल्लिका शमशाद बेगम ने 23 अप्रैल, 2013 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन वह अपने सुरों की गूंज हमारे कानों तक छोड़ गईं। आवाज में गजब की विविधता, अनोखी गायन शैली और खास अंदाज-ए-बयां ने शमशाद को हिंदी सिनेमा की अनोखी गायिका बना दिया। उन्होंने करीब 500 गाने गाए।

शमशाद बेगम को कैमरे के सामने आना पसंद नहीं था, इसलिए वह कभी कैमरे के सामने नहीं आईं। कुछ लोगों का मानना है कि शमशाद खुद को खूबसूरत नहीं मानती थीं, इसलिए पर्दे पर नहीं आती थीं। वहीं कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता से वादा किया था कि वह कभी कैमरे के सामने नहीं जाएंगी।

शमशाद बेगम के.एल. सहगल की बहुत बड़ी फैन थीं। उन्होंने सहगल की फिल्म ‘देवदास’ 14 बार देखी थी। यही नहीं वह उनकी गायकी से भी काफी प्रभावित थीं।

शमशाद बेगम ने ‘निशान’ जैसी फिल्मों नें बहुभाषी गीत भी गाए। फिल्म ‘शबनम’ में बर्मन दा के संगीत निर्देशन में उन्होंने एक गाने में छह भाषाओं में एक साथ गाया।

संगीत के जानकारों का मानना है कि शमशाद बेगम की आवाज कई पुरुष गायकों पर भी भारी पड़ती थी। उनकी आवाज के लोग कायल थे।

फिल्मी दुनिया में शमशाद को गाने का मौका देने वाले संगीतकार ओपी नैय्यर उनकी आवाज को ‘टेंपल बेल’ कहते थे। वह उनकी आवाज की तुलना मंदिर में बजने वाली घंटियों से करते थे।

शमशाद की गायन शैली पूरी तरह मौलिक थी और उन्होंने लता मंगेशकर, आशा भोंसले, गीता दत्त और अमीरबाई कर्नाटकी के दौर में अपनी अलग पहचान बनाई थी।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में शमशाद बेगम को ‘प्रेस्टिजियस ओ.पी. नैयर अवार्ड’ और ‘पद्मभूषण’ से नवाजा गया था।

सुरीली आवाज के दम पर मनोरंजन-जगत में शीर्ष मुकाम हासिल कर चुकी मशहूर पाश्र्वगायिका शमशाद बेगम का निधन 23 अप्रैल, 2013 को मुंबई में हुआ। उनके दिलकश नगमें हमेशा उनकी यादों को तरोताजा बनाए रहेंगे।
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