फिल्म निर्माण के दौरान न दबाएं अपनी आवाज: मीरा नायर

फिल्म निर्माण के दौरान न दबाएं अपनी आवाज: मीरा नायर नई दिल्ली: प्रख्यात फिल्मकार मीरा नायर का कहना है कि कोई भी कहानी पेश करते समय तमाम दबावों के बावजूद अपनी आवाज को नहीं दबाना चाहिए, साथ ही फिल्म को मनोरंजक भी होना चाहिए। मीरा फिलहाल अपनी नई फिल्म ‘क्वीन ऑफ केटवे’ में व्यस्त हैं।

मीरा ने कहा, “जब भी आप कोई फिल्म बना रहे होते हैं, तब कई व्यावसायिक दबाव होते हैं। फिल्म जितनी बड़ी होती है, उतने ही ज्यादा लोगों के प्रति आपकी जवाबदेही होती है। लेकिन, इस सबके बीच मैं अपनी आवाज को कायम रखने की कोशिश करती हूं। फिल्म निर्देशक के तौर पर और कथावाचक के तौर पर आपको अपनी आवाज को जीवित रखना होता है।

वॉल्ट डिजनी पिक्चर्स निर्मित ‘क्वीन ऑफ केटवे’ इस साल अक्टूबर में विश्वभर में प्रदर्शित होगी। फिल्म युगांडा की एक 11 वर्षीय लड़की फियोना मुतेसी की जिंदगी पर आधारित है जो संयोग से अपने शहर के शतरंज के एक स्कूल में जाती है और खेल के प्रति उसका रुझान पैदा हो जाता है।
फिल्म में ऑस्कर विजेता अभिनेत्री लुपिता नयोंगो हैं।

मीरा ने कहा, “मैने जब डिजनी के प्रतिनिधि से कहानी सुनी, मुझे लगा कि ‘यह मेरे मतलब की कहानी है’ और मैने तत्काल फिल्म के निर्देशन के लिए हामी भर दी। सलाम बॉम्बे’, ‘कामसूत्र : अ टेल ऑफ लव’ और ‘मानसून वेडिंग’ जैसी आलोचकों द्वारा सराही गई और व्यावसायिक रूप से सफल फिल्में बनाने वाली फिल्मकार की फिल्मों के विषय और प्रस्तुति हमेशा ‘बोल्ड’ रहे हैं।

हिंदी फिल्म उद्योग क्या ‘बोल्ड’ होता जा रहा है, जिसमें काफी देह प्रदर्शन हो रहा है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि ‘बोल्डनेस’ को देह प्रदर्शन से जोड़ कर देखा जाना चाहिए। यह ‘बोल्डनेस’ का आधार नहीं है। मुझे लगता है कि अब यहां सिनेमा में विचार ज्यादा ‘बोल्ड’ हो रहे हैं।

उन्होंने कहा, इसके अलावा शिल्प और गुणवत्ता में भी बहुत अधिक सुधार हुआ है। पहले हमें चीजों के स्तर के लिए शर्मिदा होना पड़ता था, लेकिन अब हम किसी भी अन्य के समान ही कुशल हैं। यह बेहद रोमांचक है। मीरा से पूछा गया कि अगर वह 1990 के दशक में तहलका मचा देने वाली ‘कामसूत्र’ जैसी अपनी कोई फिल्म फिर से बनाती हैं तो क्या वह इसे अलग तरह से बनाएंगी?

इस सवाल पर मीरा ने कहा, हां, बिल्कुल मैं इसे अलग अंदाज में बनाऊंगी क्योंकि दुनिया बदल चुकी है और मैंने भी विकास किया है। लेकिन हां, आज भी सेंसरशिप है। यह नहीं बदला है और यह आश्चर्यजनक है। केवल सिनेमा में ही नहीं, बल्कि समाज में भी। इस मायने में यह सबसे खुली जगह नहीं है।
नायर युगांडा में ‘मायशा फिल्म लैब’ नामक एक फिल्म प्रशिक्षण संस्थान भी चलाती हैं।

वह सिनेमा को समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए खास मानती हैं। उनके सिनेमा ने किस प्रकार बदलाव के अग्रदूत की भूमिका निभाई है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, “यह तो आप बता सकते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि ‘सलाम बालक ट्रस्ट’ हो या ‘मायशा’, मेरी फिल्मों से जुड़े सक्रियतावाद को लोगों में बदलाव के तौर पर लेना, मेरे लिए प्रशंसनीय है। मुझे खुशी है कि हमने हजारों जिंदगियों को प्रभावित किया है।
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