आप सरकार का एक साल पूरा, केजरीवाल ने किए ऐलान

आप सरकार का एक साल पूरा, केजरीवाल ने किए ऐलान नई दिल्ली: दिल्ली के रामलीला मैदान ने अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पैदाइश भी देखी, यहीं उसने आम आदमी पार्टी के गठन का इरादा सुना और यही मैदान दिल्ली की सबसे ताकतवर सरकार के शपथ ग्रहण का साक्षी भी बना। ठीक एक साल पहले यहीं से अरविंद केजरीवाल ने अपनी दूसरी पारी शुरूआत की थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का स्वाद चखने के बाद 10 फरवरी को आए दिल्ली विधानसभा के नतीजों के साथ अरविंद केजरीवाल नए नायक बनकर उभरे। 70 में से 67 सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी ने दिल्ली का भरोसा जीत लिया।

पहले दस दिन में केजरीवाल सरकार द्वारा बिजली सस्ती और पानी मुफ्त कर दिया गया। लेकिन जल्द ही पार्टी की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आई। पार्टी के संस्थापक सदस्य प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी से निकाल दिया गया। करीब डेढ़ महीने तक चले इस विवाद के बाद पार्टी से योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण बाहर हो गए। पार्टी पर आरोप लगा कि अंदरूनी संकट को बचकाने ढंग से निपटाने की कोशिश की गई।

गजेंद्र की खुदकुशी
22 अप्रैल को पार्टी ने दिल्ली के जंतर मंतर पर केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल का विरोध करने के लिए रैली बुलाई। लेकिन इसमें राजस्थान से आये किसान गजेन्द्र ने सबके सामने खुद को फांसी लगा ली। यह त्रासदी राजनीतिक टकराव का मामला बन गई। गजेंद्र की खुदकुशी को फिर केजरीवाल सरकार ने शहादत में बदलने की कोशिश क और। मुआवज़े के अलावा उसके नाम पर किसान सहायता योजना तक शुरू कर दी गई।

मई के महीने में केजरीवाल सरकार एक कार्यवाहक मुख्य सचिव को नियुक्त करने के मुद्दे पर नजीब जंग से भिड़ गई क्योंकि सरकार ने जिस अफसर का नाम सुझाया एलजी ने उसकी बजाय आईएएस शकुंतला गमलिन को मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया। दिल्ली सरकार की सलाह को जब एलजी ने नज़र अंदाज़ किया तो बहस चल पड़ी कि दिल्ली में कोई नियुक्त प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि की बात मानने को बाध्य है या नहीं। केंद्र सरकार ने एक नॉटिफिकेशन जारी करके सफाई दी कि दिल्ली में एलजी ही सब कुछ हैं और वह किसी सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

आप सरकार को एक और झटका तब लगा  जब दिल्ली पुलिस ने केजरीवाल सरकार के कानून मंत्री जीतेन्द्र तोमर को फर्ज़ी डिग्री के मामले में गिरफ्तार कर लिया। केजरीवाल अपने मंत्री के साथ खड़े रहे लेकिन सबूत तोमर के खिलाफ गए और कानून मंत्री तोमर से आखिरकार केजरीवाल ने इस्तीफा ले लिया। यही नहीं दिल्ली पुलिस और केजरीवाल सरकार के बीच मतभेद खुलकर सामने आने लगे और आने वाले दिनों में एक-एक कर आम आदमी पार्टी के नेता सलाखों के पीछे जाते रहे।

सीबीआई का छापा
15 दिसंबर को ख़बर आई कि सीबीआई ने दिल्ली सचिवालय में छापा मारा है। सीबीआई का कहना था कि वह प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही वहीं आम आदमी पार्टी ने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि राजेंद्र कुमार बहाना हैं, केजरीवाल निशाना हैं। पार्टी ने आरोप लगाया कि इस छापे के ज़रिए अरुण जेटली को डीडीसीए मामले में बचाने की कोशिश की जा रही है।

इस तीखे राजनीतिक टकराव के बीच केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में प्रदूषण कम करने की एक मुहिम के तहत राजधानी में पंद्रह दिन के लिए ऑड-ईवन का फॉर्मूला लागू किया जो काफी हद तक अमल भी किया गया। इसकी सफलता को देखते हुए इस एक बार फिर आने वाले अप्रैल महीने में लागू किया जाएगा। इसके अलावा केजरीवाल सरकार ने नर्सरी के दाखिले में दखल दिया, बीआरटी कॉरिडोर खत्म किया, छात्रों के लिए कर्ज का इंतज़ाम किया और ऐसे कई फ़ैसले किए जो शायद कमजोर तबकों को लुभाएं। लेकिन उनकी गाड़ी बार-बार अटकती रही- कभी उनकी राजनीतिक समझ की वजह से और कभी दिल्ली की संवैधानिक सीमाओं की वजह से।

एमसीडी से टकराव
दिल्ली में 13 दिन चली एमसीडी कर्मचारियों की हड़ताल इस टकराव की एक और मिसाल बनी जिसमें केजरीवाल के पुतले जलाए गए। दिल्ली सरकार यह दलील देती रही कि उसने कर्मचारियों की सैलरी का अपना हिस्सा दे दिया है, लेकिन निगमों के अध्यक्ष उस पर झूठ बोलने की तोहमत मढ़ते रहे। जाहिर है, अगले साल भी ये टकराव चलता रहेगा।

एक साल पूरा होने पर केजरीवाल सरकार पर उठ रहे सवाल भी उनकी कामयाबियों से टक्कर लेते दिख रहे हैं। सरकार ने जब अपने विधायकों की सैलरी 400% बढ़ाने का बिल पास कराया तो सबने पूछा कि भ्रष्टाचार ख़त्म करने और सादगी से रहने की बात करने वाली पार्टी को इतना पैसा क्यों चाहिए? सबसे बड़ा सवाल विज्ञापनों के नाम पर रखे 526 करोड़ की रकम पर उठा। इस मामले में केजरीवाल की दलील भी लोगों के गले नहीं उतरी।

केजरीवाल का पहला साल अनेक सवाल पैदा कर रहा है। टीम केजरीवाल को काम करने के रास्ते निकालने होंगे। इसके लिए चाहे वो नजीब जंग से दोस्ती करें या बीएस बस्सी से। या फिर वे आंदोलनकारियों की तरह दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मुहिम में जुट जाएं।
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