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भारत में हिंदू-मुस्लिम नहीं बल्कि विचारों का बदलाव: तस्लीमा
जनता जनार्दन डेस्क ,
Dec 07, 2015, 12:02 pm IST
Keywords: Bangladeshi writer Taslima Nasreen India Hinduism Islam secularism fundamentalism views बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन भारत हिंदुत्व इस्लाम धर्मनिरपेक्षता कट्टरवाद विचार
![]() उन्होंने कहा कि मेरे लिए यह टकराव मूलत: तर्कसंगत तार्किक सोच और तर्कहीन अंधी आस्था के बीच है। मेरे लिये यह टकराव आधुनिकता और आधुनिकता के विरोध के बीच, मानवतावाद और बर्बरता के बीच, नवाचार और परंपरा के बीच है। तस्लीमा ने कहा कुछ लोग जहां आगे जाने का प्रयास करते हैं तो कुछ पीछे जाने की कोशिश में होते हैं। यह टकराव उनके बीच है जो स्वतंत्रता को महत्व देते हैं और जो नहीं देते। बांग्लादेश की लेखिका का रिकॉर्डेड वीडियो संदेश बेंगलूर साहित्य महोत्सव 2015 में 'क्या हम आज एक असहिष्णु भारत की ओर बढ़ रहे हैं' विषय पर आयोजित एक सत्र के दौरान दिखाया गया। उन्होंने कहा कि भारत मूलत: असहिष्णु देश नहीं है। इसका संविधान और कानून असहिष्णुता और कट्टरता पर आधारित नहीं हैं लेकिन यह सच है कि धार्मिक समूहों में कुछ लोग असहिष्णु हैं और यह बात हर समाज में आम है। तस्लीमा ने कहा कि समानता और न्याय, विचारों की बहुलता, अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता और भारत को प्रेम करने पर विचार करने वाले लोगों को चाहिए कि इस देश को बेहतर स्थान बनाएं। बांग्लादेशी लेखिका ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप के समाजों में असहिष्णुता है और यह नयी बात नहीं है। पितसत्ता वाले समाज में महिलाएं पीड़ित होती हैं, वे यौन उत्पीड़न, बलात्कार, घरेलू हिंसा, दहेज मत्यु और यौन दासता का शिकार होती हैं। तस्लीमा ने कहा कि तर्कवादी की हत्या कर दिया जाना और गौमांस सेवन के लिए लोगों को मार डालना कोई असहिष्णुता नहीं है बल्कि मानवता के खिलाफ जघन्य अपराध हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह उन लोगों से सहमत हैं जो मानते हैं कि हिंदुत्व के बहुलवाद को वहाबी हिंदुत्व नष्ट कर रहा है। उन्होंने कहा कुछ हिंदू कट्टरपंथी मुस्लिम कटटरपंथियों की तरह बनने की कोशिश कर रहे हैं। तस्लीमा ने कहा कि असहिष्णुता सभी धार्मिक समुदायों में है। असहिष्णुता के कारण भारत विभाजित हुआ, असहिष्णुता के कारण मुझे अपना देश छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा और असहिष्णुता के कारण मैं बंगाल से निकाली गई, मेरी किताबों पर प्रतिबंध लगा, मेरे टीवी सीरियल प्रतिबंधित हुए और 2008 में मैं भारत छोड़ने के लिए मजबूर हुई। उन्होंने कहा कि मैं मानती हूं कि कोई भी देश अपने धर्मों की कट्टर प्रक्रियाओं की आलोचना किए बिना सभ्य नहीं बना, देश और धर्म को अलग किए बिना कोई भी देश या समाज आधुनिक नहीं बना। |
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