6 दिसंबर बाबरी विध्वंस बरसी: अयोध्या में कड़ी सुरक्षा

जनता जनार्दन डेस्क , Dec 06, 2015, 11:42 am IST
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6 दिसंबर बाबरी विध्वंस बरसी: अयोध्या में कड़ी सुरक्षा नई दिल्‍ली: अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 की घटना के बाद यूपी सहित देश में क्या हुआ, वह अब अतीत है। घटना के करीब ढाई दशक बाद कोई उस दौर को याद नहीं करना चाहता। .. न तो नई पीढ़ी और न ही उस काल के गवाह रहे लोग।

अब एक-दूसरे को देखकर न तो त्योरियां चढ़ती हैं और न ही चेहरे मुरझाते हैं। कालखंड के स्याह पन्ने में दर्ज उस अतीत को टटोलने के लिए हम इसके गवाह रहे उन जगहों पर गए, लेकिन कहीं वैमनस्य नहीं मिला। जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं!

अयोध्याः उन्माद नहीं, विकास चाहिए
राम की नगरी में रामजन्मभूमि आंदोलन के गवाह रहे लोग अब बुजुर्ग हो गए हैं और उस समय जन्म लेने वाले युवा। लेकिन दोनों ही मंदिर-मस्जिद विवाद से कोसों दूर दिखते हैं। उनका नजरिया जिंदगी के ज्यादा करीब है, न कि मंदिर और मस्जिद के।

अयोध्या के 70 वर्षीय बुजुर्ग श्यामजी प्रसाद का कहना है कि अब मंदिर और मस्जिद नहीं, यहां रहने वाले लोगों को बदलाव चाहिए ताकि जिंदगी आसान हो। इतने साल बाद भी यहां की तस्वीर जस की तस है। इतने बरस कुछ भी नया नहीं हुआ। 23 वर्षीय अनिल का जन्म विवादित ढांचा के गिरने के बाद हुआ। वह कहता है, मैंने इसके बारे में पढ़ा और सुना है, लेकिन हमें मंदिर-मस्जिद नहीं चाहिए। हो सके तो सरकार एक नौकरी दे दे।

अयोध्या के पूर्व नरेश विमलेंद्र प्रताप मिश्र का मानना है कि अलावा समस्याएं और जरूरतें कहीं ज्यादा हैं। रामनगरी में पेयजल, स्वास्थ्य और बिजली के क्षेत्र में कई वर्षो से कोई काम नहीं हुआ। लोग अब इस पिछड़ेपन से छुटकारा चाहते हैं। इसे धार्मिक पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा तक उपलब्ध नहीं है। लोग केंद्र और राज्य सरकार से विकास की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

युवा कवि और डीडी भारती के सलाहकार यतींद्र मिश्र की मानें तो अयोध्या अब मूव ऑन कर चुकी है। उस वक्त जन्मे बच्चे जवान हो गए हैं और उनके बीच एक पीढ़ी का फासला है। नई पीढ़ी ज्यादा समावेशीय और लोकतांत्रिक है। उसके मन में आसमान को छूने की ललक है।1992 के दौरान भी अयोध्या शांत थी और आज भी शांत है।

पहला विवाद
1853 में परिसर के पास सांप्रदायिक संघर्ष का मामला पहली बार सरकारी दस्तावेजों में दर्ज।
1859 में तत्कालीन ब्रिटिश शासन ने परिसर की बाड़बंदी कराई, नब्बे साल तक यथास्थिति रही।

ताला जड़ा 1949
दिसंबर में विवादित स्थल से मूर्तियां मिलने के बाद सरकार ने ताला लगाया। पूरे स्थल को विवादित घोषित किया। दोनों पक्षों ने विवादित स्थल के प्लाट संख्या 583 पर मालिकाना हक के लिए केस दर्ज किए।

आयोग गठित
6 दिसंबर 1992 को दिसंबर को विवादित ढांचा गिराया गया। 16 दिसंबर को प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने न्यायमूर्ति लिब्रहान की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया।

मुकदमे के जज
10 जुलाई 1989 : मुकदमा फैजाबाद जिला कोर्ट से हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में स्थानांतरित हुआ। 21 जुलाई को तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति केसी अग्रवाल की अगुवाई में न्यायमूर्ति उमेशचंद्र श्रीवास्तव और सैयद हैदर अब्बास रजा की पूर्णपीठ गठित।

1990 : न्यायमूर्ति एस.सी. माथुर, न्यायमूर्ति बृजेश कुमार और न्यायमूर्ति सैयद हैदर अब्बास रजा की नई पूर्णपीठ गठित हुई।

7 जनवरी 1993 : अयोध्या एक्यूजीशन एक्ट 1993 के जरिये सभी मुकदमे समाप्त कर दिये गए।

24 अक्टूबर 1994 : सभी मुकदमे सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनर्जीवित किए गए। दिसंबर में न्यायमूर्ति ए.पी. मिश्र, न्यायमूर्ति सी.ए. रहीम और न्यायमूर्ति आई.पी. वशिष्ठ की नई पूर्णपीठ गठित हुई।

जुलाई 1996 से दिसंबर 2009 तक दस बार पूर्णपीठ का पुनर्गठन किया गया। दिसंबर 2009 में गठित पूर्णपीठ में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल व न्यायमूर्ति धरमवीर शर्मा और न्यायमूर्ति एस.यू. खान थे।

मुकदमे के पैरोकार
अब्दुल मन्नान: 1 फरवरी 1986 को अयोध्या में विवादित परिसर का ताला खुलने के बाद सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से वकील बने। 2000 में उनका देहांत हो गया। तैयब अली खां 1986 से मो. हाशिम के वकील रहे, बाद में उनका भी देहांत हो गया। उसी साल से मोहिउद्दीन भी वकील रहे, बाद में वह भी चल बसे।

जफरयाब जिलानी: विवादित परिसर का ताला खुलने के बाद इस मामले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील बने। उसी समय मुश्ताक अहमद सिद्दीकी मो. हाशिम के वकील बने। बाद के वर्षो में अलग-अलग समय में बोर्ड, मो. हाशिम और अन्य लोगों की ओर से कुल 12 वकील रखे गए।

हाईकोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के तीन जजों ने 30 दिसंबर 2010 को फैसला सुनाया कि विवादित स्थल से मूर्तियां नहीं हटेंगी। जस्टिस एस यू खान और सुधीर अग्रवाल ने विवादित स्थल को तीन पक्षों हिन्दू, मुस्लिम और निर्मोही अखाडे़ में बराबर बराबर बांटने को कहा।

रामलला की मूर्तियों वाला हिस्सा हिन्दुओं को, राम चबूतरा भंडार और सीता रसोई निर्मोही अखाड़ा और परिसर का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दिया जाए।  जस्टिस डी वी शर्मा ने मालिकाना हक का फैसला रामलला विराजमान के पक्ष में दिया।

आदेश पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई, 2011 को हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने को कहा। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि चूंकि किसी पक्ष ने विवादित स्थल के बंटवारे की मांग नहीं की थी इसलिए हाईकोर्ट का यह फैसला आश्‍चर्यजनक है।
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