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बिहार विधानसभा चुनाव में 'पार्टियां ही पार्टियां'

बिहार विधानसभा चुनाव में 'पार्टियां ही पार्टियां' बिहार के चुनावी मैदान में इस बार ‘पार्टियां ही पार्टियां’ दिखती नजर आ रहीं हैं. ये पार्टी कोई गाने-बजाने वाली पार्टी नहीं बल्कि राजनीतिक पार्टियां हैं. मजा तो यह की इनके नाम, नारे, झंडे सब रंगारंग हैं.

बिहार की राजनीति में आए राजनीतिक समीकरण में राज्य के तमाम दिग्गज अपनी-अपनी अलग पार्टी बना कर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं . इन दिग्गजों में जद (यू) से अलग हुए पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा (हम), केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, लालू के राजद से अलग हुए सासंद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, पूर्व सांसद साधु यादव का जनता दल सेक्यूलर, पूर्व केन्द्रीय मंत्री नागमणि की समरस समाज पार्टी भी चुनावी मैदान में हैं.

हालांकि इनमें से कई ने दबाव बनाकर बड़ी पार्टियों से समझौता कर लिया है, पर इनके बारे में जानना कम रोचक नहीं है.

बड़ों को देख छोटे भी मैदान में

बिहार के चुनावी मैदान में GAP भी होगें । GAP  यानी के गरीब आदमी पार्टी । GAP के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्याम भारतीय हैं और इनका चुनाव चिन्ह है ‘सीटी’.  श्याम भारतीय ने अपने पार्टी के प्रचार के लिए लोगों को टिकट देने के लिए अपने वेबसाइट पर आमंत्रण भी दे रखा है.  हर आने वाले से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कहते हैं- 'सीटी बजाओ, चोर भगाओ'.

गरीब आदमी पार्टी ने सोलहवीं लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे देश में 11 प्रत्याशी उतारे थे । महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और झारखंड के विधानसभा चुनावों में भी GAP ने अपने प्रत्याशी उतार चुके है । अब GAP बिहार की तैयारी में है ।

इसी साल यानी 2015 में एक पार्टी रजिस्टर्ड हुई है, जिसका नाम है सदाबहार पार्टी । इस पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश यादव ने बिजली विभाग की नौकरी छोड़ खुद की पार्टी बनाई है । पार्टी के नाम के सवाल पर ओमप्रकाश कहते है, ''हमारी पार्टी सबके लिए है, किसी जाति या वर्ग विशेष के लिए नहीं।

यह सदाबहार पार्टी है, जो सबको अपने साथ जोड़ लेती है. '' इसके अलावा 'जनता राज विकास पार्टी', 'भारत निर्माण पार्टी', 'राष्ट्रीय समानांतर दल', 'जवान किसान मोर्चा' जैसे नामों वाली दर्जनों पार्टियां चुनावी मैदान में हैं। इन तमाम पार्टियों के बीच BAAP भी है BAAP यानी के 'भारतीय आम आवाम पार्टी' है.

लेकिन अंग्रेज़ी में छोटा करने पर ये 'बाप' बन जाता है । इसके नेता उमेश कहते है, ''हिंदी में हमने नाम बिना सोचे-समझे रख दिया, लेकिन अंग्रेज़ी में देखा तो ये 'बाप' था. अब नाम रख ही लिया है तो हम सब पार्टियों के 'बाप' बनकर दिखाएगें.''

खुद ही लगाना पड़ता है पैसा

इन पार्टियों से लड़ने वालें उम्मीदवारों को खुद ही पैसा लगाकर चुनाव लड़ना पड़ता है । ठीक वैसे ही जैसे की निर्दलीय उम्मीदवार लड़ते है । अंतर की बात यहीं है कि पार्टी से लड़ने पर आपको कई एक पहचान और कई लोगों का साथ मिल जाता है । ये पार्टियां चुनाव लड़ने के लिए फंड नहीं दे सकतीं, लेकिन टिकट चाहने वालों की भीड़ इनके यहां भी कम नहीं.

छोटी पार्टी की एंट्री

दरअसल, बिहार के चुनावों में छोटी-छोटी रजिस्टर्ड पार्टियों की दस्तक बढ़ती जा रही है. साल 1995 में छोटी पार्टी की संख्या जहां 38 थी , वहीं साल 2000 में 31 हो गई, पर साल 2005 ये फिर बढ़कर 40 और साल 2010 आते-आते 72 हो गई.
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