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तिरुपति मंदिर के लड्डुओं का 300वां साल

तिरुपति मंदिर के लड्डुओं का 300वां साल हैदराबाद: तिरुपति के प्रसिद्ध वेंकटेश्वर मंदिर में प्रसाद स्वरूप मिलने वाले तिरुपति लड्डू 300वें साल में प्रवेश कर चुके हैं। मंदिर के अधिकारियों का कहना है कि इस पवित्र भेंट की शुरुआत दो अगस्त 1715 को की गई थी।

विश्व के सबसे समृद्ध मंदिर की यात्रा बिना लड्डुओं के अधूरी है। आटा, चीनी, घी, तेल, इलायची और सूखे मेवे से बनने वाले इन लड्डुओं को वेंकटेश्वर मंदिर में पूजा के बाद प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।

प्रख्यात तिरुपति मंदिर के प्रबंधक, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के अनुसार, 2014 में करीब नौ करोड़ लड्डू तीर्थयात्रियों में बांटे गए।

300 ग्राम के लड्डुओं का मूल्य 25 रुपये है और टीटीडी का कहना है कि इनमें इस्तेमाल होने वाली सामाग्री काफी मंहगी है, लेकिन इन लड्डुओं को काफी रियायती दर पर बेचा जाता है।

ये लड्डू दिल्ली और अन्य राज्यों में भी खास अवसरों पर बनाए जाते हैं, लेकिन तिरुपति मंदिर में बिकने वाले ये लड्डू मंदिर की आय का मुख्य स्रेत हैं। खास अवसरों पर इनकी मांग बढ़ जाती है।

ब्रह्मोत्सव के दौरान लड्डू प्रसाद को चौबीसों घंटे बेचा जाता है। बीते साल ब्रह्मोत्सव के शुरुआती सात दिन में 180 लाख लड्डुओं की बिक्री हुई थी, जिसने सभी पिछले रिकार्ड तोड़ दिए थे।

ट्रेड मार्क और जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री के कार्यालय ने साल 2014 में इन लड्डुओं को भौगोलिक संकेतक का दर्जा दिया था। जिसका सीधा अर्थ ये है कि भारत भर में अब कोई भी प्रतिष्ठान तिरुपति लड्डुओं का नाम अपने लड्डुओं के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता।

इस भव्य मंदिर की शान ही अलग है और इस मंदिर में 32 टन सोने के गहनों के अलावा  12,000 करोड़ रुपये की धनराशि जमा है।
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