मुफलिसी में पैदा हुईं और मुफलिसी में ही दुनिया से गईं 'ट्रेजडी क्वीन' मीना कुमारी

मुफलिसी में पैदा हुईं और मुफलिसी में ही दुनिया से गईं 'ट्रेजडी क्वीन' मीना कुमारी नई दिल्ली: महजबीन बेगम यानी फिल्मी दुनिया की मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1932 को हुआ था। हिन्दी सिनेमा के पर्दे पर दिखी अब तक की सबसे दमदार अभिनेत्रियों में मीना कुमारी का नाम भी आता है। अपने 30 साल के पूरे फिल्मी सफर में मीना कुमारी ने 90 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। उनकी फिल्मों को आज क्लासिक की श्रेणी में रखा जाता है और कई फिल्मों को तो आज भी उनके प्रशंसक श्रद्धाभाव से देखते हैं।

मीना कुमारी को दुखियारी महिला के किरदार काफी करने को मिले, उन्हें फिल्मों में रोते हुए देखकर उनके प्रशंसकों की आंखों में भी आंसू निकल आते थे। शायद यही कारण था कि मीना कुमारी को हिन्दी सिनेमा जगत की 'ट्रेजडी क्वीन' के नाम से पहचाना जाने लगा। हालांकि उनकी व्यक्तिगत जिंदगी में भी दुख कम नहीं थे और जन्म से लेकर मृत्यु तक उन्होंने हर पल गमों का सामना किया। इसलिए उनपर 'ट्रेजडी क्वीन' का यह टैग बिल्कुल सही भी लगता था। उनके दुखों को उनकी ये पंक्तियां बखूबी बयां करती हैं...

'तुम क्या करोगे सुनकर मुझसे मेरी कहानी,
बे लुत्फ जिंदगी के किस्से हैं फीके - फीके'

साल 1962 में रिलीज हुई उनकी फिल्म 'साहिब बीवी और गुलाम' में निभाए 'छोटी बहू' के किरदार की ही तरह मीना कुमारी ने असली जीवन में भी काफी ज्यादा शराब पीना शुरू कर दिया था। असफल शादीशुदा रिश्ता और पिता से भी खराब रिश्तों के कारण वो काफी ज्यादा शराब पीने लगीं और इससे उनकी सेहत लगातार बिगड़ती चली गई। अंतत: 31 मार्च 1972 को लीवर सिरोसिस के कारण उनकी मौत हो गई।

मीना कुमारी की शुरुआती जिंदगी
मीना कुमारी अपने माता-पिता इकबाल बेगम और अली बक्श की तीसरी बेटी थीं। इरशाद और मधु नाम की उनकी दो बड़ी बहनें भी थीं। कहा जाता है कि जब मीना कुमारी का जन्म हुआ उस समय उनके पिता के पास डॉक्टर की फीस चुकाने के लिए भी पैसे नहीं थे। इसलिए माता-पिता ने निर्णय किया की नन्हीं बच्ची को किसी मुस्लिम अनाथालय के बाहर छोड़ दिया जाए, उन्होंने ऐसा किया भी, लेकिन बाद में मन नहीं माना तो मासूम बच्ची को कुछ ही घंटे बाद फिर से उठा लिया।

मीना कुमारी के पिता एक पारसी थिएटर में हार्मोनियम बजाते थे, म्यूजिक सिखाते थे और उर्दू शायरी भी लिखा करते थे। पिता अली बक्श ने 'ईद का चांद' जैसी कुछ छोटे बजट की फिल्मों में एक्टिंग की और 'शाही लुटेरे' जैसी फिल्मों में संगीत भी दिया। मीना कुमारी की मां उनके पिता की दूसरी बीवी थीं और वे स्टेज डांसर थीं।

कहा जाता है कि मीना कुमारी स्कूल जाना चाहती थी, लेकिन उनके पिता ने उन्हें बचपन से ही फिल्मी दुनिया में धकेल दिया। कहा जाता है कि छोटी उम्र उन्होंने अपने पिता से कहा, 'मैं फिल्मों में काम नहीं करना चाहती, मैं स्कूल जाना चाहती हूं और दूसरे बच्चों की तरह ही सीखना चाहती हूं।' लेकिन उन्हें 7 साल की मासूम उम्र में ही फिल्मों में काम करना पड़ा और उसी दौरान वो महजबीन से बेबी मीना बन गईं। मीना कुमारी की पहली फिल्म 'फरजंद-ए-वतन' नाम से 1939 में रिलीज हुई। बड़ी होने के बाद उनकी पहली फिल्म जिसमें उन्होंने मीना कुमारी के नाम से एक्टिंग की वो थी 1949 में रिलीज हुए फिल्म 'वीर घटोत्कच'।

1952 में रिलीज हुई फिल्म 'बैजू बावरा' से मीना कुमारी को हिरोइन के रूप में पहचान मिली। इसके बाद 1953 में 'परिणीता', 1955 में 'आजाद', 1956 में 'एक ही रास्ता', 1957 में 'मिस मैरी', 1957 में 'शारदा', 1960 में 'कोहिनूर' और 1960 में 'दिल अपना और प्रीत पराई' से पहचान मिली।

1962 में रिलीज हुई फिल्म 'साहेब बीवी और गुलाम' में छोटी बहू की भूमिका के लिए उन्हें खूब पहचान मिली। इस साल उन्होंने इतिहास रचा और फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस के अवॉर्ड के लिए तीनों नॉमिनेशन (फिल्म 'आरती', 'मैं चुप रहूंगी' व 'साहेब बीवी और गुलाम') मीना कुमारी के ही थे। छोटी बहू की भूमिका के लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस चुना गया।

'दिल एक मंदिर' 1963, 'काजल' 1965, 'फूल और पत्थर' 1966 भी उनकी चुनिंदा सफल फिल्मों में से हैं।
1964 में पति कमाल अमरोही से तलाक के बाद उनकी शराब की लत और भी बढ़ गई। शराब के कारण 1968 में मीना कुमारी बहुत ज्यादा बीमार हो गईं और उन्हें इलाज के लिए लंदन व स्विटजरलैंड ले जाना पड़ा। बाद में ठीक होकर आने पर उन्होंने कैरेक्टर रोल करने लगीं।

मीना कुमारी के पूर्व पति कमाल अमरोही की फिल्म 'पाकीजा' को बनकर रिलीज होने में 14 साल का लंबा वक्त लग गया। पहली बार फिल्म के बारे में 1958 में प्लानिंग की गई और 1964 में फिल्म का निर्माण शुरू हुआ। लेकिन 1964 में ही दोनों के तलाक के कारण आधी से ज्यादा बन चुकी फिल्म रुक कई। 1969 में सुनील दत्त और नर्गिस ने फिल्म के कुछ दृश्य देखे और उन्होंने कमाल अमरोही व मीना कुमारी को फिल्म पूरा करने के लिए मनाया।

आखिरकार पाकीजा फरवरी 1972 में रिलीज हुई और बॉक्स ऑफिस पर इसे दर्शकों का प्यार नहीं मिला। लेकिन 31 मार्च 1972 को मीना कुमारी की अचानक मौत के बाद फिल्म ने रफ्तार पकड़ी और ये सुपरहिट साबित हुई। फिल्मों में काम करने के बावजूद मीना कुमारी का फिल्मों से रिश्ता हमेशा लव-हेट का रहा। अभिनेत्री के साथ ही वो एक अच्छी उर्दू शायरा भी थीं। उन्होंने अपनी शायरी की 'आई राइट, आई रिसाइट' नाम से ख्याम के साथ रिकॉर्ड भी कीं।

फिल्मी दुनिया में इतना नाम कमाने के बाद मीना कुमारी अपनी मौत से पहले एक बार फिर उसी हालात में पहुंच गई थीं, जिन तंगहाली के हालात में उनके जन्म के समय उनके माता-पिता थे। कहा जाता है कि जब मीना कुमारी की एक नर्सिंग होम में मृत्यु हुई तो अस्पताल का बिल चुकाने तक के पैसे नहीं थे।

सभार- एनडीटीवी
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