ग्रीस में जनमत संग्रह: 'यस' और 'नो' पर देश का भविष्‍य

ग्रीस में जनमत संग्रह: 'यस' और 'नो' पर देश का भविष्‍य एथेंस: अपने सबसे मुश्किल आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा ग्रीस क्‍या इससे उबर पाएगा। वह यूरोजोन से बाहर होगा या दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था किस तरफ जाएगी,इन सवालों का जवाब आज मिल जाएगा। आज ग्रीस में जनमत संग्रह के जरिए वहां की जनता सारी स्थिति साफ कर देगी। जनमत संग्रह सुबह सात बजे से शुरू हो गया,जोकि शाम 7 बजे तक चलेगा।

अगर ग्रीस में बहुमत 'यस' पर वोटिंग करता है तो यूरोपीय यूनियन ग्रीस को बेलआउट पैकेज दे सकता है, जिसके बाद देश पर गहराया संकट फिलहाल टल जाएगा। हालांकि 'नो' को बहुमत मिलने पर उसके लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है।

ऐसे में ग्रीस यूरोजोन से बाहर तो हो ही जाएगा,साथ ही उसे और अधिक बर्बादी के कगार पर भी ला खड़ा कर देगा। हालांकि तमाम ओपिनियन पोल भी यही संकेत दे रहे हैं कि ग्रीस के लोग खुद को यूरो जोन से बाहर नहीं होने देना चाहते, क्‍योंकि शर्तें मानने से इंकार करने पर उनके लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

इसके पहले यूनान के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास का एथेंस में हुई एक रैली में रॉक-स्टार की तरह स्वागत हुआ। उन्होंने जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के खिलाफ मत देने का आह्वान किया तकि अंतरराष्ट्रीय ऋणदाताओं के साथ बातचीत में उनका पक्ष मजबूत हो।

उन्होंने अपने जाने-पहचाने करिश्माई अंदाज में 25,000 लोगों को संबोधित करते हुए कहा ‘हम न केवल यूरोप में बने रहने का फैसला कर रहे हैं बल्कि यूरोप में इज्जत के साथ जीने का फैसला कर रहे हैं।’ चालीस वर्षीय इस नेता ने कहा ‘मैं आपसे अपील करता हूं कि आप धमकियों को ‘ना’ कहें और जो आपको डराने की कोशिश कर रहे हैं उनकी ओर पीठ फेर लें। कोई भी इस लगन और आशावाद को दरकिनार नहीं कर सकता।’

उनकी रैलीस्थल से 800 मीटर की दूरी पर प्रतिद्वंद्वियों की रैली में इकट्ठा 20,000 लोगा यूरोप समर्थक नारे लगा रहे थे और सिप्रास की मंशा सफल रहने की स्थिति में यूरो क्षेत्र से तथाकथित ‘ग्रेक्जिट’ (यूनान का यूरोपीय क्षेत्र से बाहर निकलने) की आशंका के सुर बुलंद कर रहे है।

निकोस नाम के एक डाक्टर ने कहा ‘यूरो क्षेत्र से बाहर सिर्फ मुश्किलें हैं।’ विश्वविद्यालय के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर जॉर्ज कोप्टोपूलस ने कहा ‘ऐसे नहीं चल सकता। हमारी सरकार हमारे लिए बोझ बन गई है।’ मंगलवार को यूनान के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता पैकेज की अवधि खत्म होने के बाद बैंकों से रोजाना सिर्फ 60 यूरो निकालने संबंध पाबंदी के बाद काफी बड़ी आबादी यूरोपीय संघ के प्रस्ताव के पक्ष में हो गई है।

सिप्रास का कहना है कि जनमत संग्रह आवश्यक है ताकि ऋणदाताओं को एक और दौर के राहत पैकेज जारी करने संबंधी मांग को मानने के लिए मजबूर किया जा सके ताकि यूनान को वित्तीय मंदी और यूरो क्षेत्र से बाहर निकलने की आशंका से बचाया जा सके।

क्‍या होंगे 'नो' कहने के नुकसान?
अगर जनमत में 'नो' को बहुमत मिलता है तो ग्रीस को यूरो जोन से बाहर होना पड़ेगा। इससे यूरोप को भी करीब एक हजार अरब यूरो का नुकसान उठाना होगा।

अगर 'यस' कहां तो होंगे क्‍या फायदे?
अगर जनता 'यस' को बहुमत देती है, तो ग्रीस का आर्थिक संकट टल जाएगा। हालांकि देश में राजनीतिक संकट गहरा जाएगा, क्‍योंकि वहां के प्रधानमंत्री को इस्‍तीफा देना पड़ सकता है। या फिर राष्ट्रपति उन्हें बर्खास्त कर मध्यावधि चुनावों का ऐलान भी कर सकते हैं।

इससे पहले ग्रीस के वित्त मंत्री यानिस वरोफकीस ने कर्जदाता देशों पर उनके देश के साथ 'आतंकवादी जैसा व्यवहार' करने का आरोप लगाया। शनिवार को प्रकाशित एक इंटरव्यू में उन्होंने यह आरोप लगाया है।

वरोफकीस ने स्पेन के अखबार अल मुंडो को बताया, ‘वे लोग ग्रीस के साथ जो कर रहे हैं, उसका नाम ‘आतंकवाद’ है। ब्रसेल्स एवं ट्रोइका आज जो चाहते हैं वह है जीतने के लिए मतदान, ताकि वे ग्रीस को जलील कर सकें।

उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, यूरोपीय केंद्रीय बैंक एवं यूरोपीय संघ के संदर्भ में कहा, ‘क्योंकि उन्होंने हमारे बैंकों को बंद कराने पर ध्यान केंद्रित कर रखा है। यह लोगों में भय पैदा करने के लिए है और भय फैलाने को आतंकवाद कहा जाता है।
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