अरुणा ईरानी: नकारात्मक भूमिकाओं को भी बनाया यादगार

अरुणा ईरानी: नकारात्मक भूमिकाओं को भी बनाया यादगार नई दिल्ली: चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी,दिलबर दिल से प्यारे,अब जो मिले हैं (कारवां) और मैं शायर तो नहीं (बॉबी) जैसे गाने सुनते ही उनमें थिरकती चरित्र अभिनेत्री अरुणा ईरानी बरबस ही याद आ जाती हैं। इन दोनों फिल्मों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया था।

3 मई, 1952 को मुंबई में जन्मीं अरुणा ईरानी हीरोइन के तौर पर सफलता न पाते हुए भी रुपहले पर्दे पर लंबी पारी खेलने वाली अभिनेत्रियों में से हैं। उन्होंने अभिनय करियर की शुरुआत महज नौ साल की उम्र में गंगा जमुना (1961) फिल्म से की। इसमें उन्होंने आजरा नामक किरदार निभाया।

उन्होंने ‘जहांआरा’ (1964), ‘फर्ज’ (1967), ‘उपकार’ (1967) और ‘आया सावन झूमके’ (1969) जैसी फिल्मों में अतिथि भूमिका निभाईं। उन्होंने बाद में मंझे हुए हास्य अभिनेता महमूद अली के साथ ‘औलाद’ (1968), ‘हमजोली'(1970) और ‘नया जमाना’ (1971) में अभिनय किया। अरुणा के करियर में महत्वपूर्ण मोड़ 1971 में ‘कारवां’ के साथ आया।

इसमें उन्होंने तेज-तर्रार बंजारन की यादगार भूमिका निभाते हुए अपने अभिनय कौशल के साथ-साथ नृत्य प्रतिभा का भी प्रदर्शन किया। ‘दिलबर दिल से प्यारे’ और ‘चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी’ जैसे गीतों से उन्होंने अपना लोहा मनवा लिया।

निमार्ताओं ने उन्हें ऐसी भूमिकाओं के लिए माकूल पाया, जिनमें कुछ नकारात्मकता का पुट हो और जिनमें एकाध डांस का भी स्कोप हो। अरुणा बाद में महमूद अली की ‘बांबे टू गोवा’ (1972), ‘गर्म मसाला’ (1972) और ‘दो फूल’ (1973) में नजर आईं।

1973 में राजकपूर की ‘बॉबी’ में एक संक्षिप्त मगर दिलचस्प भूमिका से उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। इसके बाद वे लगातार एक सशक्त चरित्र अभिनेत्री के तौर पर अपना स्थान पुख्ता करती गईं। 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने मां की भूमिकाओं का रुख किया।

बेटा’ (1992), ‘राजा बाबू’ (1994) में उनकी अदाकारी को विशेष रूप से याद किया जाता है। वह फिल्म निर्देशक संदेश कोहली की पत्नी हैं। जनवरी 2012 में अरुणा को 57वें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट से नवाजा गया।
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