रक्षा खरीद का मौजूदा तौर-तरीका काफी जटिल: रक्षा मंत्री पर्रिकर
जनता जनार्दन संवाददाता ,
Feb 19, 2015, 16:39 pm IST
Keywords: Manohar Parrikar defence minister of India Congress Manish Tewari PC Chacko Coast Guard operation Pakistan GVL Narsimha Rao रक्षा मंत्री मनोहर मेक इन इंडिया रक्षा-आफसेट सीआईआई मंझोले उपक्रम
बेंगलुरु: रक्षा मंत्री मनोहर ने माना कि सेनाओं के लिए साजो-सामान की खरीद का मौजूदा तौर तरीका काफी जटिल है तथा इसे और अधिक सीधा होना चहिए। पार्रिकर ने कहा 'मैं इस बात से सहमत हूं कि मौजूदा प्रक्रिया बहुत जटिल है .. मैं वाकई उनकी तारीफ करता हूं जो रक्षा खरीद की इतनी कठिन प्रक्रिया से गुजरने के लिए अब भी हिम्मत रखते हैं।’ यहां सीआईआई द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह चिंता का विषय हैं और रक्षा खरीद की प्रक्रिया अधिक सीधी रखी जा सकती है . ऐसा ही होना है।’’ चर्चा का विषय था कि मेक इन इंडिया के लिए रक्षा-आफसेट (बदले के सौदे) का फायदा कैसे उठाया जाए। उन्होंने कहा ‘हर काम का तय समय होना चाहिए। न सिर्फ समयसीमा तय हो बल्कि उसका अनुपालन भी हो। उसमें बदलाव अपवाद के स्वरूप में ही हो।’ सीआईआई की रक्षा उद्योग संबंधी राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष और भारत फोर्ज के चेयरमैन बाबा एन कल्याणी ने कहा ‘हमें दरअसल आफसेट के नियम में और कोई बदलाव की जरूरत नहीं है क्योंकि हम पिछले दो-तीन साल से आफसेट पर बात कर रहे हैं और थोड़े-बहुत बदलाव भी करते रहे हैं लेकिन कार्यान्वयन बहुत कम हुआ है। हम चाहते हैं क्रियान्वयन हो, काम हो।’ कल्याणी की कार्यान्वयन और पहल संबंधी टिप्पणी के बारे में पर्रिकर ने कहा ‘मैं इसमें बहुत भरोसा करता हूं। मुझे लगता है कि हमारी इस बारे में बहुत बात हो चुकी है। मेरे पास पर्याप्त आंकड़े हैं। चाहे आफसेट नीति हो या मेक इन इंडिया या फिर डीपीपी संभवत: 80-90 प्रतिशत समस्याएं स्पष्ट है। समय आ गया है कि बहुमूल्य सुझावों पर अमल हो।’’ उन्होंने कहा कि उनके काम करने का तरीका यह है कि वह भाषण देने के बजाय काम करते हैं। उन्होंने कहा कि मेक इन इंडिया अवधारण अपने मौजूदा स्वरूप में सिर्फ प्लेटफार्मों (बड़े उपकरणों) की बात होती है। पार्रिकर ने कहा ‘मुझे नहीं समझ में आता है कि सिर्फ प्लेटफार्म ही क्यों। निश्चित तौर पर बड़े उपकरण हों और इन्हें भी उस सूची में शामिल कर सकते हैं जिसे भारत में विकसित करने की जरूरत है। चाहे वह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से हो या अनुसंधान एवं विकास के जरिए। ’ उन्होंने कहा कि मेक इन इंडिया में छोटे और मंझोले उपक्रम की भागीदारी बेहद जरूरी है। |
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