फिल्म रिव्यू: कुक्कू माथुर की झंड हो गई
जनता जनार्दन डेस्क ,
May 31, 2014, 13:12 pm IST
Keywords: सितारे: सिद्धार्थ गुप्ता आशीष जुनेजा सिमरन कौर मुंडी अमित सियाल बृजेंद्र काला सोमेश अग्रवाल अनूप पुरी आलोक चतुर्वेदी पल्लवी बत्र सिद्धार्थ भारद्वाज राजेश शर्मा निर्देशक: अमन सचदेवा निर्माता : शोभा कपूर एकता कपूर बिजॉय नाम्बियार Stars: Siddharth Gupta Ashish Juneja Simran Kaur Mundi Amit Sial Brijendra black Somesh Agarwal Anoop Puri Alok Chaturvedi Pallavi Btr Siddharth Bhardwaj Rajesh Sharma Director: Aman Sachdeva Producer: Shobha Kapoor Ekta Kapoor Bijoy Nambiar
नई दिल्ली: बॉलीवुड में इन दिनों हल्की-फुल्की फिल्मों का चलन बढ़ा है, जो मनोरंजन के साथ-साथ एक संदेश देने की कोशिश करती हैं। ‘कुक्कू माथुर की झंड हो गई’ भी ऐसी ही एक मूवी है। इसमें हीरो को बड़े ‘लाइट’ अंदाज में ‘एनलाइटमेंट’ (बोध प्राप्ति) प्राप्त हो जाता है। वह सच्चाई के लिए अपने सपने को भी ठोकर मार देता है। इसका परिणाम तात्कालिक रूप से तो सुखद नहीं रहता, लेकिन आगे चल कर सारी चीजें सही पटरी पर लौट आती हैं।
कुक्कू माथुर (सिद्धार्थ) दिल्ली के एक निम्न-मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है। वह खाना बहुत अच्छा बनाता है और उसका सपना एक रेस्टोरेंट खोलने का है। उसका दोस्त रोनी गुलाटी (आशीष जुनेजा) एक व्यवसायी परिवार से है। दोनों में खूब छनती है। 12वीं पास करने के बाद कुक्कू का एडमिशन किसी कॉलेज में नहीं हो पाता, जबकि रोनी कपड़े की दुकान के अपने पारिवारिक बिजनेस में लग जाता है। वह एक प्रोडक्शन कंपनी में नौकरी शुरू कर देता है, जहां उसे अजीबोगरीब तरीके से काम करना पड़ता है। स्थितियां कुछ ऐसी होती हैं कि दोनों दोस्तों के रिश्तों में दरार आ जाती है। कुक्कू अब गुलाटी परिवार से बदला लेना चाहता है। और यहीं एंट्री मारते हैं कुक्कू के कानपुर के कजिन प्रभाकर भैया (अमित सियाल), जिनके पास हर समस्या का समाधान है। वह तिकड़म भिड़ा कर कुक्कू का रेस्टोरेंट खुलवा देते हैं। कुक्कू की जिंदगी दौड़ने लगती है, पर एक दिन सब कुछ बदल जाता है। जिंदगी में शॉर्टकट बहुत लंबे समय तक काम नहीं करता। जिंदगी में सबसे अहम चीज होती है सच्चाई और ईमानदारी। इसी संदेश को निर्देशक अमन सचदेवा ने हल्के-फुल्के ट्रीटमेंट के साथ देने की कोशिश की है, जिसमें बहुत हद तक सफल रहे हैं। कुछ दृश्य मजेदार हैं, जैसे कि एक बाबा द्वारा कृपा बरसने के उपाय बताने वाला दृश्य। इंटरवल के पहले तक फिल्म मनोरंजक है। इंटरवल के बाद थोड़ा सीरियस व इमोशनल मोड़ लेती है। सभी कलाकारों का अभिनय अच्छा है। बाबा के रूप में बृजेंद्र काला जमे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा असर छोड़ा है प्रभाकर भैया के रूप अमित सियाल ने। उनका कानपुरी लहजा और स्टाइल बेहद प्रभावशाली है। गीत-संगीत कुछ खास नहीं है, बस ‘ऐवईं’ है। कुल मिला कर यह एक साधारण मनोरंजक फिल्म है और एक बार देखने में कोई हर्ज नहीं है। |
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